शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

12board preparation

For Class 12 Board Exams 2018

CBSE Class 12 NCERT Textbooks & NCERT Solutions

NCERT Exemplar: CBSE Class 12 Mathematics - All Chapters

NCERT Exemplar: CBSE Class 12 Physics – All Chapters

NCERT Exemplar: CBSE Class 12 Chemistry – All Chapters

NCERT Exemplar: Class 12 Biology - All Chapters

For Class 10 Board Exams 2018

CBSE Class 10 Mathematics and Science Tips and Strategies

CBSE Class 10 NCERT Textbooks & NCERT Solutions

Monthly Study Plan (from December onwards) for CBSE 10th and 12thBoard Exams 2018 is given below:

December 2017 # (Pre-rehearsal time: Time for Pre-Board Exams)

Sometimes, CBSE 10th and 12th students do not take pre-board exams seriously. Although, the marks of these pre-exams are not added to final CBSE results but one must attempt these exams with an honest effort.

Pre-board exams provide real time scenario similar to the CBSE board exams. From these exams, you can easily identify your weaknesses and understand what you need to study.  

Give pre board exams honestly and you will alsounderstand what you need to study on the last day before the exam. Before appearing in Pre – Board Examinations, you can also go through Class 12 Marking Scheme and CBSE toppers answer sheets (released by CBSE).

CBSE Class 12 Toppers' Answer Sheet

CBSE Class 10 Toppers' Answer Sheets 2016

CBSE Class 10 Board Exam 2017: Marking Scheme - All Subjects

CBSE Class 12 Marking Scheme 2017

January 2018 # (CBSE Board Exam 2018 Date Sheet will release)

CBSE 10th & 12th board exam 2018 Date Sheet is expected to be released in the first week of January. Students preparing for CBSE board exam 2018 should plan their study accordingly as soon as the Date Sheet will be released.

It is expected that every students must have studied the complete Syllabus, by then.

Also, you can’t score well until and unless you will solve CBSE 12th and 10th practice papers based on latest examination pattern.

Solving previous year CBSE question papers (at least 5 to 10 year) is the key to score above 90% in CBSE board examinations.

Questions based on the concept given in previous year CBSE question papers are repeated frequently in CBSE Class 12 board exams.

Jagranjosh will also release CBSE Guess papers specially prepared for students who are going to appear for CBSE 10th and 12th board exam 2018

CBSE has also issued sample papers (like every year) to help the student in understanding the latest examination pattern. You can go through these papers from the links given below

CBSE Board Exam 2017: Class 10 and Class 12 Question Papers

CBSE Class 10 Board Exam 2018: Sample Papers

CBSE Class 12 Sample Paper 2018: All Subjects

February 2018 # (Revise & Practice: Don’t study anything new)

One should devote this month for revision purpose only. Do not study anything new in this month as you may get stuck in any new topic during last moment and it may add more confusion and may also result in wastage of precious time.

Students should revise NCERT textbooks & hand written notes prepared by themselves. Try solving at least 2 papers on daily basis.

Avoid excess use of Facebook, Twitter, Whatsapp and other social media websites. Usually students get stuck in unnecessary conversations or activities on these social sites which leads to emotional stress and hence wastage of time.

So, be honest to yourself and uninstall these apps or else opt for the last solution: hide your Smartphone somewhere (or give it to your parents) and follow your study timetable.

CBSE Practice Paper for 10th and 12th

CBSE Board Exam: Paper Analysis and Review

March and April 2018 # (Give your 100% in CBSE Board Exams 2018)

Now for final days, avoid too much study. Only revise summary and highlighted content or self made (which you have already studied).

You can also solve CBSE guess paper prepared by Jagranjosh.com (to be released soon) as they are consist of questions which are extremely 

My life

Hairan hu main

सोमवार, 11 मई 2015

सुपरमैन वैभव


आजकल के बच्चे इतने इंटेलिजेंट होते हैं कि अगर उन्हें सही ’िाक्षा दी जाए तो वह अपनी इच्छानुसार अपने क्षेऋ में सुपरमैन बन सकता है...

वैभव टीवी देख रहा था! वह हमे’ाा टीवी ही देखा करता था! कभी डोरे माWम तो कभी कार्टून चैनल देखता रहता था! वैभव के इस व्यवहार से घर के सभी लोग काफी परे’ाान रहा करते थे! अगर कोई पूछता कि तुम क्या बनना चाहते हो, तो तपाक से बोलता कि मैं सुपरमैन बनना चाहता हूं! उसकी बातों से दादा जी नाराज हो जाते थे और गुस्से में बोलते थे कि आज के बच्चा का कोई करियर नहीं है, लेकिन वैभव की मम्मी काफी खु’ा हो जाती और कहने लगती कि मेरा बेटा सुपरमैन अव’य बनेगा!वैभव के दादा जी को समझ में नहीं आता कि आजकल के बच्चे को क्या हो गया है! हमारे जमाने में बच्चा सिर्फ राणा प्रताप या राजेंदz प्रसाद बनने की ही बात करता था! कहानी भी इसी के इर्द गिर्द घूमती रहती थी!टीवी में भी यही सब देखने को मिलता था! उनके समय में टीवी का इतना प्रचलन भी नहीं था! रेडियो भी सभी के घरों में नहीं रहता था! उस समय जिसके घर में रेडियो रहता था, उसे अमीर और रसूखदार माना जाता था! जब किसी लडके की ’ाादी की बात होती थी, दहेज में रेडियो और साइकिल मांगा जाता था और ’ाादी के बाद ससुराल का सफर इसी से होता था! वह दिन भी कुछ और थे! ससुराल जाने में किराया भी खर्च नहीं होता था और हवा भी प्रदूसित होने से बच जाती थी! आजकल सुविधा बढने से हवा इस तरह प्रदुसित हो गई है कि सांस लेना तक संभव नहीं रह गया है!
दादा जी बताते हैं कि उस समय 24 घंटे का न्यूज सुनने को नहीं मिलता था! 24 घंटे में दो बार ही न्यूज सुनने को मिलते थे! इतनी असुविधा के बावजूद हमलोगों को यह याद रहता था कि किस राज्य में किस दल की सरकार है और कौन इसका मुखिया है! वे कहते हैं कि आज का वातारण और सुविधा हमलोगों से भिन्न है, फिर भी आज का बच्चा उतना तेज नहीं हैं, जितना हमलोगों के समय में हुआ करता था! दादा जी अपने जमाने में बहुत तेज स्टूडेंट थे! उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी! उनके पिता किसान थे, इस कारण पढाई खेती पर निर्भर थी! कहते हैं कि उस समय कोई स्कूल के लिए कोई कपडा भी नहीं होता था! क्योंकि लोगों को घर में पहहने के लिए भी कपडे नहीं मिलते थे! उस समय इसका कोई महत्व भी नहीं था! अभी तो सिर्फ वैभव के कपडे में ही हजारों रूपये खर्च हो चुके हैं और फीस की इतनी मोटी रकम है कि इतनी फीस में उस समय के बीएससी की पूरी पढाई हो जाती थी! उस समय अंगzेजी स्कूल तो दूर, आसपास के दस किलोमीटर तक एक स्कूल भी नहीं हुआ करता था और आज की तरह घर बैठे बस की सुविधा भी नहीं थी! स्टूडेंट को बिना चप्पल के पैदल ही स्कूल जाना पडता था! फिर भी अंगzेजी अच्छी थी! खैर वह जमाना दूसरा था!
एक दिन वह वैभव को समझाने लगे कि देखो वैभव, सुपर मैन कोई नहीं होता है, जो तुम बनना चाहते हो! यह सिर्फ टीवी में दिखाया जाता है! टीवी लोगों को बेवकूफ बनाता है! इसलिए इसे इडियट बाWक्स कहा जाता है! यदि टीवी लोगों को बेबकूफ बना रहा है तो आप रोज रामायण और मम्मी सीरियल क्यों देखते हैं और पापा भी तो किzकेट देखते हैं दादा जी! आप मुझे उल्लू बना रहे हैं न दादा जी! आप सोचते हैं कि मैं टीवी न देखूं और आपलोग टीवी देखकर खूब मजे करें, यह नहीं हो सकता है! छोटा वैभव एक सांस में वह सबकुछ बोल गया,जो दादा जी सपने में भी नहीं सोचे थे! वह सोचने लगे कि आज का बच्चा कितना फास्ट हो गया! सुपर मैन एक कल्पना है! यह हकीकत में नहीं होता है! वास्तविक जीवन में सुपरमैन बनने से पेट भी नहीं भरता है! दादा जी की बात ख्त्म होते ही वैभव बोला- आप चिंता मत करिए दादा जी,सुपरमैन कुछ भी ला सकता है और किसी को भी मार सकता है! किसी के घर से खाना लाना तो उसके बाएं हाथ का खेल है! दादा जी समझ नहीं पा रहे थे कि इस बच्चे को किस तरह पटरी पर लाया जाए!उनकी सारी प्रतिभा यहां जवाब दे रही थी और इतने सालों का अनुभव भी वैभव को समझा पाने में असमर्थ हो रहा था! अंतिम प्रयास करते हुए दादा जी बोले- बेटा, बनना हो, तो आईएएस बनो, इंजीनियर बनो या डाWक्टर! इससे दे’ा और समाज का भी भला होगा और तुम्हें बहुत सारे पैसे भी मिलेंगे! ये डाWक्टर और इंजीनियर क्या होता है! ये तो पैसे नहीं कमाते हैं! पैसे तो इनके पास नहीं होते हैं! पैसे तो एटीएम में होते हैं दादा जी! आपको भी जब जरूरत पडती है, एटीएम से पैसे निकाल लेते हैं! मैं भी बडा होकर चार एटीएम रखूंगा और आपको काफी पैसे दूंगा! दादा जी वभव की बातों से परे’ाान हो गए! एक सुपरमैन ही है, जो सबकुछ एक साथ कर सकता है! पुरानी यादों में खेकर वह एकाएक रोने लगा औार तै’ा में आकर बोला कि जब मैं बीमार पडा था तो डाक्टर अंकल ने हमें कई सूई और कडवी दवाई दिए थे! सुपर मैन बनकर मैं भी उस डाWक्टर अंकल को सूई और दवाई दे दूंगा और उन्हें मजा चखाउंगा! अंत में दादा जी को वार्निंग देते हुए वैभव बोला- टीवी ये आईएएस और डाWक्टर के बारे में कभी नहीं दिखाता है! इस कारण मैं डाWक्टर के बारे में कुछ नहीं जानता हूं! मुझे सिर्फ सुपरमैन या डोरेमाWम बनना है! वैभव दादा जी को सपने की उडान में लेकर जाने लगा! और तोतली भासा में बोलने लगा कि सुपर मैन बनकर आपको आका’ा में लेकर उड जाउंगा और भगवान की पूजा आप रोज करते हैं, तो भगवान के पास पहुंचा दूंगा और फिर मम्मी को बहुत सारा सामान बाजार से खरीद दूंगा!दादी को भी बहुत सामान दूंगा! दादा जी वैभव की बातों से सीरियस हो गये और सोचने लगे कि सुपर मैन का यही अर्थ होता है ? फिर वैभव बोला कि सुपर मैन का मतलब ही यही होता है कि कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं हो! दादाजी अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए बोले कि यस सुपरमैन का मतलब यही होता है! इस कारण तुम पढकर आईएएस बन जाओ! इस पर तापाक से वैभव बोला कि दादा जी हमारी उमz पांच साल की है और हमारी यह उमz नहीं है आईएएस बनने का! उमz तो खेलने का है और आपलोगों को परे’ाान करने का! दादी ने हमें यही बताई थी, समझे आप! है न दादी! जब मैं कल स्कूल नहीं जा रहा था, तो तुमने तो यही मम्मी को बोली थी न! वैभव का उत्तर सुनकर दादा सहित सभी के आंखों में खु’ाी के आंसू टपक पडे और दादा जी चिल्लाकर बोले कि जो परिस्थिति को अपने हिसाब से मोड ले, उसे ही कहते हैं सुपर मैन! मेरा पोता है सुपर मैन! वैभव को दादा जी गोद में उठा लिए और घुमाने के लिए पार्क लेकर चले गए! वैभव भी इसका आनंद ले रहा था और दादा जी भी अपने पोते की बातों से फूले नहीं समा रहे थे!

2 वैभव की होली

सुबह उठते ही वैभव का प्र’न था कि पापा होली क्यों मनाया जाता है ? मैं उसे ज्ञान बांटने के अंदाज में बताया कि एक राजा था, उसका नाम हिरण क’िापु था! बीच में टोकते हुए वैभव बोला कि ये हिरण क्या होता है! वह जानवर था क्या! अगर जानवर था, तो फिर राजा कैसे बन गया! क्या जानवर में भी राजा होता है?जानवर का राजा तो ’ोर होता है!

पापा होली कब है और इसमें क्या होता है ? वैभव अनायास ही यह प्र’न अपने पापा से पूछ बैठा! दरअसल, आज ही वैभव का स्कूल बंद हुआ है और इसलिए वह मस्ती के मूड में है! होली को लेकर उसमें एक अलग अहसास था! रंग और अबीर का पर्व है होली-पापा ने बताया! यह वर्ड वैभव के लिए नया था! वैभव के पापा ने रंग और अबीर जैसे टिपिकल हिंदी वर्ड इसलिए चुना, क्योंकि वह वैभव के हिंदी ज्ञान को बढाना चाहते थे! प्रतिकिzयाव’ा वैभव गुस्से में उत्तर दिया कि आप होली के बारे में कुछ नहीं जानते है पापा! मैम बताई है कि होली में एक दूसरे को कलर किया जाता है और वह कलर के बाद जोकर की तरह लगता है! जो भी पुरानी करवाहट है, उसे कलर के माध्यम से धुल दिया जाता है! सभी बच्चे एक ही कलर में हो जाते हैं, तो उस झूंड में कोई भी बडा नहीं होता है! सभी लोग खूब मस्ती करते हैं! हम भी होली खेलेंगे, खूब मस्ती करेंगे और घर में सभी को रंग देंगे! लेकिन पापा होली क्यों मनाया जाता है? वैभव ने यह प्र’न फिर अपने पापा से पूछ बैठा!
बच्चों की लैग्वेज में समझाते हुए वैभव के पापा बोले- एक राजा था! उसका नाम हिरण क’िापु था! बीच में टोकते हुए कान्वेंट किड वैभव बोला कि ये हिरण क्या होता है! वह जानवर था क्या! अगर जानवर था, तो फिर राजा कैसे बन गया! क्या जानवर में भी राजा होता है? जानवर का राजा तो ’ोर होता है! वैभव को रोकते हुए उसके पापा ने बताया कि हिरण क’िापु न जानवर था और न ही मावव! वह एक राक्षस था! यह बात वैभव को समझ में आ गया और बोला कि वह टीवी वाला माWन्सटर की तरह था, जो काफी ’ाक्ति’ााली होता है और लोगों का भेजा खाता है! वह अपनी ’ाक्ति से किसी को भी मार सकता है! पापा ने उसकी हां में हां मिलाते हुए कहानी को आगे बढाना चाहा, लेकिन जैसे ही आगे बढने का प्रयत्न करते वैभव फिर नया प्र’न सामने रख दिया कि पापा वह होली में क्या कर रहा था और राक्षस भी होली खेलता है क्या? वैभव के पापा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि पहले बाल मन के उलझनों को सुलझाया जाए या डांटकर कहानी बढाया जाए! अंत में उन्होंने उलझन को सुलझाते हुए बोले कि बेटा राक्षस कोई जन्म से नहीं होता है! वह कर्म से होता है! राक्षस कुल में रावण और विभीसन दोनों पैदा हुए, लेकिन रावण कर्म से पापी था! इस कारण मारा गया और उसी का भाई विभीसन सत्यवादी था, जो बाद में लंका का प्रतापी राजा बना! वैभव फिर प्र’न किया कि दोनों का पापा तो एक ही था न, फिर एक पापी कैसे बन गया! वे अलग कैसे हो गये ? हम दो भाई हैं! इसमें कौन पापी होगा पापा! ये पापी क्या होता है! वैभव के पापा सोचने लगे कि लगता है कि इसके प्र’न कभी खत्म नहीं होंगे, लेकिन इतने अच्छे प्र’न हैं कि इसका उत्तर न देना भी गलत होगा! जो मां और पिताजी की बात नहीं मानता है,स्कूल नहीं जाता है और झूठ बोलता है, उसे पापी कहते हैं! पापा ने उदाहरण देते हुए बताया कि हम पांच भाइयों में सबसे अधिक प्यार तुम्हें कौन करता है?ं बडे पापा-वैभव ने तुरंत जवाब दिया और बोला कि वे बहुत अच्छे हैं, हमें टाWफी भी देते हैं और दीपावली में बहुत सारे बैलून खरीदकर दिए थे और कzैक्स भी दिए थे! होली में बडे पापा भी आएंगे क्या ? वैसे यदि बडे पापा यहां आ जाते तो मजा आ जाता! वे यहां क्यों नहीं आते हैं पापा! वे नौकरी करते हैं, इस कारण तुम्हारे यहां नहीं आ सकते हैं-पापा ने कहा! जो नौकरी करते हैं, वे कहीं नहीं जाते हैं पापा? नौकरी गंदी होती है, वे हमारे बडे पापा को यहां आने नहीं देती है! मैं नौकरी कभी नहीं करूंगा और होली में आपके पास रहकर खूब होली खेलूंगा! घर में सभी को कलर करूंगा और मजे करूंगा! अब मैं आपकी बात नहीं सुनूंगा और जा रहा हूं आदित्य के साथ होली खेलने के लिए! बाय पापा, फिर मिलूंगा! वैभव के पापा आवाक रह गये और उसकी बातों का मनन करने लगे!सोचा कि सही में मस्ती ही होली है, फिर इसी बहाने यह काफी कुछ जान गया! असल में हिरण क’िापू के माध्यम से उनके पापा जो बताना चाह रहे थे, वह तो बता ही दिया!

3 मम्मी की डांट

मोहित अगर घर से बाहर नहीं जाता और मम्मी की डांट उसे कडवा नहीं लगती तो आज मोहित को किसी के घर में नौकर नहीं बनना पडता और वह भी पढ लिखकर अन्य दोस्तों की तरह बडा आदमी बनता.....

मोहित घर में इकलौता बेटा था! इस कारण वह काफी जिददी हो गया था! किसी भी काम को वह सीरियसली नहीं लेता था! इस कारण उसे भी कोई सीरियस नहीं लेता था! उसकी मम्मी जब उसे डांटती थी, तो खाना नहीं खाता था! उसकी मम्मी बेटे को खाना खाते न देखकर खूब रोने लगती थी और मोहित से माफी मांगती थी, तभी मोहित खाना खाता था! अपनी पत्नी के व्यवहार से मोहित के पापा काफी परे’ाान रहा करते थे! वह बार बार मोहित को समझाने की को’िा’ा करते थे, लेकिन मोहित उनकी बातों को अनसूना कर देता था! मोहित के व्यवहार से उसके पापा काफी दुखी रहा करते थे! हर समय मोहित के ही बारे में सोचा करते थे!
एक दिन मोहित के स्कूल में फंक्’ान था! सभी बच्चे बाहर घुमने का प्लान बनाए थे! मोहित उस टीम का लीडर था! यह बात वह अपनी मम्मी को नहीं बताया था! जब जाने के लिए कुछ दिन ही बचे थे, तो मोहित ने एकाएक मम्मी से एक हजार की डिमांड कर दी! मम्मी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि बच्चे को किस तरह अपनी हालात बताउं! वह मोहित से इतना ही बोली कि बेटा अभी घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है! पापा की नौकरी छूट गई है! इस कारण अभी तुम्हें पैसा नहीं दे सकती हूं! मोहित अपने स्वभाव के अनुरूप तै’ा में आ गया और बोला कि यदि तुम पैसा नहीं दोगी तो मैं खाना नहीं खाउंगा! मम्मी भी काफी गुस्से में थी और वहां से कुछ कहे बिना ही चली गयी! यह बात वह अपने पति को नहीं बताई! मोहित के पापा प्राइवेट जाWब करते थे! वहां नये बाWस आ गए और उन्होंने मोहित के पापा को बिना कारण बताये नौकरी से निकाल दिए! नौकरी से निकाले तो लगभग एक महीना हो चुका था, लेकिन वे अपनी पत्नी को एक दिन पहले ही बताए! मेहित के पापा सोच रहे थे कि नौकरी कुछ दिनों में मिल जाएगी, तो उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगने देंगे! रोज तैयार होकर आWफिस जाते थे और नियत समय पर आ जाते थे! काफी दिनों से गुमसुम रहने कारण पूछती थी, तो कोई न कोई बहाना बना लेते थे! एक दिन मोहित की मम्मी ने मैरेज एनीवर्सरी पर कुछ गिफट देने के लिए कही तो वे लाचार हो गये और अपनी पूरी बात पत्नी के सामने बता दिए! मोहित रात भर खाना नहीं खाया, उसकी मां बार बार समझाती रही, लेकिन मोहित अपनी जिद पर अडा हुआ था! पति को खिलाकर वह भी भूखी सो गयी! उसकी मां बार बार यही सोच रही थी कि हे भगवान, यह कैसी परीक्षा की घडी है! मम्मी की इस तरह की कठोरता से मोहित अनजान था! वह यही सोच रहा था कि काफी ना नुकूर के बाद आखिरकार मम्मी उसे पैसा दे ही देगी! लेकिन यह क्या, वह उसे दुलारने भी नहीं आ रही है! अंदर ही अंदर मोहित को काफी गुस्सा आ रहा था! वह मम्मी के पास गया और बोला कि तुम पैसे क्यों नहीं दे रही हो! मुझे नौकरी से कोई मतलब नहीं है! हमें अभी पैसे चाहिए! मम्मी मोहित के वचन को सुनकर रोने लगी और खुद के भाग्य को कोसने लगी! एकाएक मोहित के पापा की तबियत बिगडने लगी और उनकी मनोद’ाा दिन प्रतिदिन बदतर होने लगी! अंत में मोहित बोला कि मम्मी अगर तुम पैसे नहीं दोगी, तो मैं घर से भाग जाउंगा! यह सुनकर मम्मी को काफी गुस्सा आया और उस दिन मोहित को खूब डांट पिलाई! इस तरह का रूप मोहित कभी नहीं देखा था! वह गुस्से में घर से बाहर निकल गया और कोई अनजान ’ाहर चला गया! उसकी मम्मी और पापा सभी जगह ढूंढे, लेकिन वह नहीं मिला! मोहित को किसी ने बहला फुसलाकर अपने घर से काफी दूर लेकर चला गया और किसी अमीर घर में उसे बेच दिया! उसे नौकर बनाकर काम कराता था! वह मम्मी और पापा के बारे में कुछ बोलता था, तो खूब मार पडती थी! खाना भी उसे ठीक से नहीं मिलता था! दिन रात उसे घर का काम करना पडता था! उसे पता नहीं था कि उसकी मम्मी और पापा कहां रहते हैं! उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था! इसी तरह चार पांच साल बीत गये! मोहित को बार बार मम्मी और उसकी डांट याद आ रहा था! जब वह बडा हुआ तो यही सोचता रहता था कि का’ा मैं मम्मी की बात मान लेता तो आज मुझे नौकर नहीं बनने पडते और मेरी यह हालत नहीं होती!
सीख
बच्चे को जिद नहीं करनी चाहिए!
हमे’ाा मम्मी की बात सुननी चाहिए!
किसी भी हालत में घर से बाहर नहीं जाना चाहिए!
हर पैरेंटस बच्चे को खु’ा रखना चाहते हैं, लेकिन बच्चों की सभी इच्छा पूरी नहीं हो सकती है!                  

4 26 जनवरी

26 जनवरी हम इसलिए मनाते हैं, क्योंकि इसी दिन भारत का संविधान लागू हुआ था और भारत राजतंऋ न होकर एक गणतंऋ बना था और संविधान से हमें कई मौलिक अधिकार प्राप्त हुए थे......

सौरव डीपीएस में पढता था! पढने में वह काफी तेज था! उसकी मम्मी उसे रोज पढाती थी! इस कारण वैभव अपने दोस्तों से काफी अलग था! वह बहुत आज्ञाकारी भी था! सौरव की सबसे बडी खासियत यह थी कि वह जैसे ही स्कूल से आता था,सबसे पहले साबुन से हाथ धोता था और स्कूल डेस खोलकर पढाई करने के लिए बैठ जाता था! यही कार्य सौरव को उसके अन्य दोस्तों से अलग करता था! सौरव सबसे पहले अपना होमवर्क पूरा करता था, तभी आराम करता था! यही कारण था कि स्कूल में सभी लोग उसे खूब प्यार करते थे! एक महीने के बाद 26 जनवरी आनेवाला था! इसे लेकर सौरव के मन में कई तरह के प्र’न आ रहे थे! अपने पापा से कई तरह के सवाल भी करता रहता था कि 26 जनवरी क्या होता है ? इसमें बच्चे क्यों भाग लेते हैं आदि! आWफिस से आने के बाद सौरव के पापा उसके सभी प्र’नों का जवाब देते थे और इससे उसका उत्साह चरम पर हो जाता था और ज्ञान भी बढता था!
 स्कूल में 26 जनवरी की तैयारी जोरों से चल रही थी, क्योंकि स्कूल का यह मैन फंक्’ान होता था! इसमें कई बडे लोग आते थे और सभी को बच्चों की प्रतिभा को देखने का एक अवसर मिलता था! अपने बच्चे की प्रतिभा को निखारने और लोगों से प्र’ांसा पाने के लिए गार्जियन के साथ साथ स्कूल प्र’ाासन भी खूब मेहनत करता था! 26 जनवरी के बहाने कई तरह के कल्चरल और मोटिवे’ानल प्रोगzाम दो दिनों तक चलता रहता था! इस कारण वहां रहनेवाले सभी लोग आते थे और छोटे बच्चे अपनी प्रतिभा से सभी को हैरान करने के लिए कोई कसर नहीं छोडते थे! सौरव पांचवीं में पढता था! उसकी मैम उसे 26 जनवरी पर स्टेज पर कुछ बोलने के लिए कही थी और इसकी तैयारी सौरव अभी से ’ाुरू कर दिया था! इसके पहले वह इस दिन के बारे में बिल्कुल अनजान था और सिर्फ यही जानता था कि इस दिन स्कूल में बहुत बडा प्रोगzाम होता है और जो बच्चे चुने जाते हैं, उन्हें प्राइज दिया जाता है! यही उसके लिए 26 जनवरी का सबसे महत्व था! उसके टीचर ने एक दिन क्लास में बताया कि बच्चो, 26 जनवरी हम इसलिए मनाते हैं, क्योंकि इसी दिन हमारे दे’ा में संविधान लागू हुआ था! हमारा संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था! इसी कारण हम 26 जनवरी को हर साल मनाते हैं! हमारा संविधान वि’व का सबसे बडा लिखित संविधान है! इसमें हमारे मौलिक अधिकार सुरक्षित हैं! यह मौलिक अधिकार क्या होता है सर जी- सौरव यह प्र’न अपने टीचर से पूछ लिया! वैभव के इस प्र’न से उसके टीचर काफी खु’ा हुए और बोले कि संविधान में हम सभी को कुछ ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जिसे कोई नहीं छिन सकता है, उसे ही हम मौलिक अधिकार कहते हैं बच्चो! संविधान लागू होने से पहले भारत में अंगzेजों के अधीन कई राजा का ’ाासन था और राजा अपनी मर्जी से ’ाासन चलाता था, लेकिन संविधान लागू होने के बाद अब दे’ा में कोई राजा नहीं है! हम सभी लोग अपने खुद का मालिक हैं और हमलोग जिसे चाहे वोट देकर सरकार बना सकते हैं!सभी बच्चे बडे ध्यान से टीचर की बात सुन रहे थे! अब सभी बच्चे आपस में बात कर रहे थे कि हमलोग किसी की भी सरकार बना सकते हैं और उसे हटा भी सकते हैं! आखिर में वह दिन आ ही गया, जिसका इंतजार सभी बच्चों को था! दो दिन से कोई भी बच्चा अपना घर नहीं गया था और स्टेज पर अपना परफाWर्मेंस देने के लिए जी जान से तैयारी में जुटा हुआ था! सभी बच्चे को अलग अलग तरह की भूमिका मिली हुई थी और सभी को बेहतर करने के लिए कई तरह के टिप्स दिए जा रहे थे! कई बच्चे 26 जनवरी के महत्व के बारे में स्टेज पर बोलने का अभ्यास कर रहे थे तो कई बच्चे अपनी सुरीली और तोतली आवाज में दे’ा भक्ति गाना गाने का अभ्यास कर रहे थे! उस समय सभी बच्चों में एक अलग उत्साह था और बेस्ट देने के लिए एक अलग तरह का जुनून भी था! तय समय के अनुसार सभी बच्चे ने अपनी प्रतिभा से वहां आनेवाले सभी लोगों को लुभाया और बदले में परफाWर्मेंस के आधर पर सभी बच्चे को स्कूल की तरफ से कई सारे प्राइज और अवार्ड भी दिए गए! सभी लोग काफी खु’ा थे और बच्चे फिर से अपनी पढाई में जी जान से जुट गए! सौरव को कई सारे पुरस्कार मिले और स्कूल में वह बेस्ट परफाWर्मर बनकर मम्मी पापा के साथ ही स्कूल के सभी टीचर का दिल जीत लिया!

5 अवि

अवि पैदा होते ही विकलांग बन गया! वह चलने में असमर्थ था! नहीं अच्छी तरीके से बोल पाता था और न ही लोगों को अपनी बात बता ही पाता था! धीरे धीरे वह 11 साल का हो गया! उसे सिर्फ मम्मी और पापा का प्यार मिलता था और उसकी जिंदगी वहीं तक सीमित थी! वह घर से बाहर का नजारा नहीं देख पाता था! यह सोचकर वह अंदर अंदर डिप्रे’ान का ’िाकार हो गया था और सोचता रहता था कि मैं कब सामान्य बच्चों की तरह चलूंगा! उसके पापा अवि को लेकर दे’ा भर के सभी ’ाहरों और डाWक्टरों के पास गए, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही निकले!अवि के मम्मी और पापा काफी चिंतित रहते थे! वे लोग किसी दूसरे के यहां कम ही आते और जाते थे! उन्हें अवि के बारे में लोगों का कुछ बोलना अच्छा नहीं लगता था! एक दिन अवि अपने पापा से बोला कि पापा मैं यहां रहकर भी पढाई कर सकता हूं! प्लीज मुझे बुक खरीद दो! अवि का यह वचन सुनकर उनके पापा फूले नहीं समाए! उन्होंने बहुत सारी पुस्तकें खरीदकर ला दिए और अब अवि किताबों की दुनिया में  खोया रहता था! उसके पापा अपने बच्चों की पढाई से काफी खु’ा थे! उसकी मम्मी भी काफी खु’ा थी! एक दिन अवि अपने पापा से बोला कि पापा मुझे पेंटिंग सीखना है! उसके पापा बोले कि अवि यह घर में संभव नहीं है! इसके लिए तुम्हें घर से बाहर जाना पडेगा! अपने बारे में तुम मुझसे ज्यादा जानते हो! अवि बोला कि मैं पेंटिंग सीखना चाहता हूं पापा! प्लीज मुझे किसी तरह सीखा दो! उसके पापा ने बहुत सारे जगह खोजे, लेकिन घर में सिखाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ! अगर एक तैयार भी हुए तो इतनी रकम मांगे कि अवि के पापा देने में असमर्थ थे!अंत मेें थक हारकर बगल वाले अंकल के पास गए! वे पेटिंग सिखाते थे! वे इस ’ार्त पर तैयार हुए कि इसके लिए उन्हें ज्यादा रकम मिले और वह यहां आकर सीखे! मरता तो क्या नहीं करता है आदमी! अक्सर जब आपको किसी की जरूरत रहती है, तो उसके भाव आसमान पहुंच जाते हैं और हर व्यक्ति उसे किसी न किसी तरह खरदता ही है! उसके पापा रोज अवि को लेकर टीचर के यहां ले जाते और फिर उन्हें लाते! यह काफी दिनों तक चला! धीरे धीरे समय बीतता गया! अवि को पेंटिंग में इतना मन लगने लगा कि टीचर भी उस पर काफी ध्यान रखने लगे! और सच कहिए तो टीचर को अवि से प्यार हो गया! अवि धीरे धीरे टीचर का मन जीत लिया! धीरे धीरे अवि में आत्मवि’वास बढता गया और वह मन लगाकर पेंटिंग सीखने में जुट गया! टीचर भी उससे काफी खु’ा थे और उसे खूब सिखाते थे! अवि की लगन से टीचर इतने प्रभावित हुए कि उसे अपने घर पर ही रख लिया! भगवान इस धरती पर सभी को कुछ खास बनाकर भेजता है, जो लोगों की नजरों में कमी दिखती है, वह कभी कभी संबल बन जाता है. अवि के साथ ऐसा ही हुआ! विकलांगता जो उसके लिए अभि’ााप बनकर आया था, अब वही विकलांगता उसका संबल बन गया! उसकी ’ाक्ति बन गई! वह भूल गया कि मैं चल नहीं सकता हूं! वह अब सपने में खोने लगा और नई पेंटिंग के बारे में ही सोचता रहता था! जिस तरह की दुनिया की वह कल्पना करता था, उसे पेंटिंग के माध्यम से कागज पर उतार लेता था! अवि के जो दोस्त चल सकते थे, वे पेंटिंग में कम और घूमने पर अधिक जोर देते थे! इसके विपरीत अवि हमे’ाा पेंटिंग के बारे में ही सोचा करता था और जो भी नया आइडिया आता, उसे कैनवास पर उतारकर ही दम लेता था! धीरे धीरे वह पेंटिंग में मास्टर हो गया और सभी दोस्तों में सबसे तेज भी! अब उसकी एक पेंटिंग करोडों में बिकती है और उसके पास बनाने के लिए टाइम तक नहीं है! आज उसकी कहानी सबके जुबान पर है! किसी को भी कभी भी चूका हुआ नहीं समझना चाहिए! हर व्यक्ति अपने आप में खास होता है, जरूरत होती है तो उसे सिर्फ उसकी प्रतिभा को जांचने और उस पर वर्क करने की! आज अगर उनके पापा कठिन मेहनत नहीं करते तो दुनिया में अवि जैसा कलाकार नहीं आता और गुमनामी के चेहरे बनकर दम तोड देता!

6 पिंटू

पिंटू जब पैदा हुआ था, तो उसके पापा गांव में भोज किए थे! काफी खु’ा थे पिंटू के जन्म पर! आखिर खु’ा क्यों न होते, उन्हें चार बेटी के बाद जो बेटा हुआ था! पिंटू के दादा पोते के जन्म पर इतने खु’ा हुए कि वे घर में सभी को नए कपडे बांट दिए! आज पिंटू जब दस साल का हो गया तो उन्हें समझाने वाले घर में कई हैं! उनका पापा चाहते हैं कि पिंटू बडा होकर आईएएस बने तो दादा जी का एक ही सपना है कि पिंटू डाWक्टर बने! कोई भी यह जानने की इच्छा नहीं कर रहा है कि आखिर पिंटू क्या बनना चाहता है! इसी तरह समय बीतता गया! इन सबसे अनजान पिंटू अपना लाइफ जी रहा था! पिंटू को पता नहीं था कि उसे क्या बनना है! दसवीं परीक्षा पास होते ही पिंटू को लेकर घर में महाभारत ’ाुरू हो गया! कोई उसे बायोलाWजी लेने की सलाह देता तो कोई उसे मैथ्स लेने की तो कोई काWमर्स लेकर सीए बनने की बात कहता! पिंटू की इच्छा कोई जाननेवाला नहीं था कि वह क्या लेना चाहता है और वह क्या बनना चाहता है! अंत में दादा जी बात रही और पिंटू को बाWयोलाWजी लेकर बडा डाWक्टर बनने के लिए कहा गया! इसके लिए पहले से ही दादा जी पैसे और जगह का प्रबंध कर चुके थे! उस गांव से काफी लोग कोटा गए थे इंजीनियरिंग और मेडिकल पढने के लिए! कोटा को वे लोग का’ाी की तरह मानते थे! जिस प्रकार हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि अगर का’ाी में मरते हैं, तो सीधे स्वर्ग जाते हैं! उसी प्रकार हर स्टूडेंट का गार्जियन यह समझता है कि कोटा जाकर इंजीनियर या मेडिकल कंप्लीट अव’य कर लेगा! खैर कोटा भेजकर वे लोग पिंटू के बारे में हवाई किले बनाना ’ाुरू कर दिए! पिंटू वहां जाकर अलग इन्वायरमेंट में एडजस्ट नहीं कर पाया और परिणाम यह हुआ कि वह खाली हाथ लौटकर घर आ गया! सभी का सपना चकनाचूर हो गया और घर के सभी लोग पिंटू को चूका हुआ समझने लगे! उसे समझ में नहीं आ रहा था कि घर में जो लोग उनके हित के बारे में ही सोचा करते थे, वे अब उनकी बात तक सुनना पसंद नहीं करते हैं! घर पर आकर उन्होंने खुद का बिजनेस खोला और अपनी मर्जी से उसे चलाया! इस मामले में पिंटू का घर से कोई सपोर्ट नहीं मिला और सभी उसे देखकर हंसते थे कि जो कोटा में इतनी सुविधा मिलने के बावजूद कुछ नहीं कर पाया, वह इस साधनहीन जगहों में क्या कर लेगा! लेकिन पिंटू का आत्मवि’वास सातवें आसमान पर था! उसे पता था कि वह जो कुछ भी कर रहा है, उससे उसका अस्तित्व जुडा हुआ है और उसे इस तरह के वर्क करने में मजा आ रहा है, क्योंकि वह अपनी मन का कर रहा है! दो सल के बाद उसका बिजनेस बेहतर होता चला गया और दस साल के बाद आज पिंटू एक सफल बिजनेस मैन हो गया है! घर ही नहीं गांव के सभी लोग पिंटू की कहानी सुनाते हैं और कई युवाओं का वह आदर्’ा भी बन चुका है! घर के सभी लोग अब पिंटू से काफी खु’ा हैं!

7 2015 का भूकंप

 सुबह का 11 बज रहा था! घर से सभी बच्चे स्कूल गए थे और वहीं पढाई कर रहे थे! मैथ्स की मैम मैथ्स का प्राWब्लम साWल्व करा रही थी और सभी बच्चे पढने में म’ागूल थे! एकाएक धरती जोर से कांपने लगी! सभी बच्चे चिल्लाने लगे! टेबल और बेंच आपस में टकराने लगे और क्लास रूम का दरवाजा हिलने लगा! जब तक मैम कुछ समझ पाती कि दीवार भी हिलने लगी! मैम एकाएक चिल्लाई कि बच्चों, भागो भूकंप आ गया है! नादान बच्चे कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि यह भूकंप क्या होता है और इसमें किस तरह की सावधानी जरूरी है! वे लोग सभी मैम के पास आ गए और रोने लगे! बाहर का वातावरण इतना भयानक था कि क्लास रूम से बाहर निकलना असंभव था! मैम सभी बच्चे को इस हाल में छोडकर नहीं जाना चाहती थी! अंत में हारकर सभी बच्चे का जान बचाने के लिए वह क्लास रूम में ही सभी बच्चे को एक कोने में ले गई और एक बडा से टेबल के नीचे बैठने के लिए कह दी! सभी बच्चे इतने डरे और सहमे हुए थे कि एक साथ सभी टेबल के नीचे छिप गए! इस तरह का अनुभव बच्चों के साथ साथ मैम के लिए भी नया था! स्कूल का अन्य मकान काफी क्षतिगzस्त हो गया था और कई स्कूलों में बच्चे भूकंप से कम और अफरातफरी में अधिक मारे गए! लेकिन मैम की चतुराई से उस क्लास के एक बच्चे को खरोंच तक नहीं आई! सभी बच्चे को सकु’ाल घर पहंुचाया गया और बच्चे अपने पैरेंटस को भूकंप से बचने का तरीका बताने में व्यस्त हो गए! यह बात स्कूल ही नहीं चारों ओर फैल गई और स्कूल प्र’ाासन की ओर से उन्हें कई तरह के पुरस्कार दिए गए! बिहार सरकार ने भी उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कई पुरस्कार दिए और उस दिन से हर स्कूल में महीने में एक घंटा डिजास्टर मैनेजमेंट की पढाई करने के लिए अनिवार्य कर दिया गया! इस पढाई के अंतर्गत इस बात पर फोकस किया जाता है कि अगर कोई आपदा आ जाए तो उससे किस प्रकार बचा जा सकता है! हमें इस तरह के आपदा को रोकने के लिए किस तरह के उपाय करना चाहिए आदि! उस दिन से बच्चे इतने डर गए थे कि डिजास्टर मैनेजमेंट का क्लास सभी करते थे! सभी बच्चों ने उस दिन से यह भी प्रण लिया कि हम लोग धरती को बचाने के लिए कम से कम दस पौधा गोद लेंगे और उसकी आजीवन देखभाल करेंगे! बच्चे को यह बताया गया कि अगर हम प्र्यावरण को संतुलित रखने में कामयाब हो जाते हैं, तो हमें इस रह के आपदा कम झेलने पडेंगे! इस तरह के आपदा दोबारा न आए, इसके लिए सभी बच्चे पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव को’िा’ा कर रहे हैं और आपदा से बचने के लिए कई तरह के टेनिंग भी ले रहे हैं!

8 एक पौधा का महत्व

अवि बहुत ही नटखट लडका था! घर में हमे’ाा ’ारारत ही करता रहता था! घर में सभी लोग अवि के व्यवहार से काफी परे’ाान रहा करते थे! तमाम खामियों के बावजूद उसमें एक खासियत यह था कि वह दादा जी की बात आंख मूंदकर मानता था!दादा जी उनके लिए भगवान के समान थे! रोज सुबह उठता था और दादा जी के साथ सैर करने निकल जाता था! दादा जी भी काफी खु’ा रहते थे! दादा जी के प्यार का ही असर था कि वह घर में इतना नटखट करता था! अगर परिवार का कोई सदस्य उसे डांटता था, तो दादा जी के पास वह रोकर चला जाता था! अवि को रोते देखकर उसके दादा जी आग बबूले हो जाते थे और फिर उसका खैर नहीं रहता था! एक दिन की बात है! अवि अपने स्कूल गया था! दोस्तों के साथ खेल रहा था! स्कूल में पौधे लगाने का कंपटी’ान था! एक दिन स्कूल में इसके लिए मीटिंग बुलाई गई और उसमें यह डिसाइड हुआ कि स्कूल का तीन कोना हरियाली रखना है! इससे जहां स्कूल का वातारण सुवासित रहेगा, वहीं पर्यावरण को संतुलित रखने में भी मदद मिलेगा! इस तरह का काम सभी को करना होगा, तभी यह संभव हो पाएगा! काम सफल हो, इसके लिए यह निर्णय लिया गया कि स्कूल के टीचर और स्टूडेंट का अलग अलग स्पेस होगा और सभी को दस पौधे लगाने की इजाजत दी जाएगी और उसमें जिस टीचर का बेस्ट रहेगा, उसे कई तरह के पुरस्कार दिए जाएंगे, वहीं स्टूडेंट का इसके लिए हर साल 20 माक्र्स दिए जाएंगे! यह सभी स्टूडेंट के लिए अनिवार्य होगा और जो स्टूडेंट इस तरह का वर्क नहीं करेगा, उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा! अवि भी इस स्कूल में पढता था! उसे भी इस तरह के वर्क मिले थे, लेकिन वह इतना ’ारारती था कि इस बात पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया! उसे वि’वास था कि दादा जी स्कूल में कह देंगे,तो मेरा काम आसान हो जाएगा! जब 6 महीने बीत गए तो उसके क्लास टीचर ने अवि से इस संबंध में पूछा! अवि कुछ भी जवाब नहीं दे पाया और अंत में क्लास टीचर ने उसे स्कूल से निकाल दिया! अवि टीचर के व्यवहार से काफी गुस्से में था! सबसे पहले घर पहुंचा! घर में किसी से बात नहीं किया और खूब रो रहा था! वह अपने दादा जी को खोज रहा था! करीब दो घंटे के बाद दादा जी आए तो अवि ने स्कूल की पूरी कहानी सुनाई! अवि दादा जी को बोला कि वह गंदा स्कल है! उसमें वह कभी भी पढाई नहीं करेगा! दादा जी ’ाांत होकर अवि की बात सुनते रहे! दादा जी बोले कि बेटा स्कूल में ही नहीं घर में भी पौधा लगाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है! अगर ये पौधे नहीं रहेंगे, तो हम सांस नहीं ले पाएंगे! अवि उत्सुकताव’ा यह प्र’न किया कि आखिर पौधा का आदमी के सांस से क्या मतलब है! सांस तो खुद हम लेते हैं और छोडते हैं! यह तो हमारी मर्जी पर डिपेंड करता है कि हम पौधा के पास संास लें या नहीं! दादा जी अवि की बात सुनकर मुस्कुराने लगे और बोले कि बेटा हम रोज आWक्सीजन लेते हैं और कार्बनडायक्साइड छोडते हैं! पौधा इसके विपरीत आWक्सीजन छोडता है और कार्बनडायक्साइड गzहण करता है! अगर पौधे नहीं रहेंगे, तो कार्बनडायक्साइड जमा हो जाएंगे और आWक्सीजन के अभाव में सांस लेने में परे’ाानी होगी! इसके विपरीत अगर हम पौधे लगाते हैं, तो हमें घूप में छांव भी मिलेंगे और इसमें जो फल लगेंगे, वे हमारे ’ारीर को ’ाक्ति प्रदान करेंगे! इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पौध ही जीवन है! अगर ये पौधे नहीं रहेंगे, तो आदमी एक पल भी जिंदा नहीं रह पाएगा और अनेक तरह के आपदा भी आते रहेंगे! दादा जी की बात अवि ध्यान से सुन रहा था! उसे पौधे का महत्व समझ में आ गया और बोला कि दादा जी मैं स्कूल में ही नहीं, घर में भी हर एक पौधा की रक्षा करूंगा! अवि की बातों से दादा जी काफी खु’ा हुए! दूसरे दिन दस प्रकार के पौधे लेकर अवि स्कूल पहुंचा और उसकी अच्छी तरह से देखभाल की! अवि के बदले व्यवहार से स्कूल के टीचर भी काफी खु’ा थे! उसे हर साल पौधा लगाने के कारण 20 में 20 माक्र्स आते थे! जब वह दसवीं में गया तो वह स्कूल में लगभग 100 पौधा लगा चुका था और कई तो फल भी देने लगे थे! स्कूल में पूरी तरह हरियाली देखकर सरकार ने इसे गzीन स्कूल नाम रख दिया और कई तरह की सुविधाएं भी अलग से दिए! 5 जून को धरती की रक्षा के लिए हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है! इस साल पर्यावरण दिवस पर स्कूल में डीएम आनेवाले हैं और कई स्टूडेंट को अवार्ड देनेवाले हैं! सभी स्टूडेंट काफी उत्साहित हैं! अवि भी तैयार होकर स्कूल जा रहा था! अवि ने दादा जी से कहा कि आज डीएम आनेवाले हैं! इसलिए आप भी स्कूल के फंक्’ान में चलिए! दादा जी भी अवि के स्कूल गए! डीएम साहब ने स्कूल के प्रयास को खूब सराहा और अवि को बेस्ट परफाWर्मर का पुरस्कार भी दिया! इससे उसके दादा जी के साथ साथ स्कूल के सभी टीचर फूले नहीं समाए और सभी अवि को गले से लगा लिए!                     

रविवार, 8 मार्च 2015

कैसे जलाये रखें अपने अन्दर की चिंगारी को ?

Good Morning everyone ,  मुझे  यहाँ  बोलने  का  मौका   देने  के  लिए  आप  सभी  का  धन्यवाद . ये  दिन  आपके  बारे  में  है . आप , जो  कि  अपने  घर  के  आराम ( और  कुछ  cases में  दिक्कतों ) को  छोड़  के  इस  college में  आए  हैं  ताकि  ज़िन्दगी  में  आप  कुछ  बन  सकें . मैं  sure हूँ  कि  आप  excited हैं . ज़िन्दगी  में  ऐसे  कुछ  ही  दिन  होते  हैं  जब  इंसान  सच -मुच बहुत  खुश  होता  है . College का  पहला  दिन  उन्ही  में  से  एक  है .जब   आज   आप   तैयार  हो  रहे  थे , आपके  पेट  में  हलचल सी हुई होगी . Auditorium कैसा  होगा , teachers कैसे  होंगे , मेरे  नए  classmates कौन  होंगे —इतना  कुछ  है  curious होने  के  लिए . . मैं  इसे  excitement कहता  हूँ , आपके  अन्दर  कि  चिंगारी  (spark) जो  आपको  एकदम  जिंदादिल  feel कराती  है . आज  मैं  आपसे  इस  चिंगारी  को  जलाये  रखने  के  बारे  में  बात  करने  आया  हूँ . या  दुसरे  शब्दों  में  हम  अगर  हमेशा  नहीं  तो   ज्यादा  से  ज्यादा  समय  कैसे  खुश  रह  सकते  हैं ?

इस  चिंगारी  कि  शुरआत कहाँ  से  होती  है ? मुझे  लगता  है  हम  इसके  साथ  पैदा  होते  हैं .  मेरे   3 साल  के  जुड़वाँ  बच्चों  में  million sparks हैं . वो  Spiderman का  एक  छोटा  सा  खिलौना  देख  के  बिस्तर  से  कूद  पड़ते  हैं .  Park में  झूला  झूल  के  वो  thrilled हो  जाते  हैं . पापा  से  एक  कहानी  सुनके  उनमे  उत्तेजना  भर  जाती  है . अपना  Birthday आने  के  महीनो  पहले  से  वो  उलटी  गिनती  करना  शुरू   कर  देते  हैं  कि  उस  दिन  cake काटने  को  मिलेगा .
मैं  आप  जैसे  students को  देखता  हूँ  और  मुझे  आपके  अन्दर   भी  कुछ  spark नज़र  आता  है . पर  जब  मैं  और  बड़े  लोगों  को  देखता  हूँ  तो  वो  मुश्किल  से  ही  नज़र  आता  है . इसका  मतलब  , जैसे -जैसे  हमारी  उम्र  बढती  है  , spark कम  होते  जाते   हैं . ऐसे  लोग  जिनमे  ये  चिंगारी  बिलकुल  ही  ख़तम   हो  जाती  है  वो  मायूस , लक्ष्यरहित और  कडवे  हो  जाते  हैं . Jab We met के  पहले  half की  करीना  और  दुसरे  half की   Kareena याद  है  ना ? चिंगारी  बुझ  जाने  पे  यही  होता  है . तो  भला  इस  Spark को  बचाएँ  कैसे ?
Spark को  दिए  की  लौ  की  तरह  imagine कीजिये . सबसे  पहले  उसे  nurture करने  ki ज़रुरत  है —उसे  लगातार  इंधन  देने   की  ज़रुरत  है . दूसरा , उसे  आन्धी -तूफ़ान  से  बचाने  की  ज़रुरत  है .
Nurture करने  के   लिए , हमेशा  लक्ष्य  बनाएं .यह  इंसान  कि  प्रवित्ति  होती  है  कि  वह  कोशिश  करे , सुधार  लाये  और  जो  best achieve कर  सकता  है  उसे  achieve करे .  दरअसल  इसी  को  Success कहते  हैं . यह  वो  है  जो  आपके  लिए  संभव  है . ये  कोई  बाहरी   माप -दंड  नहीं  है – जैसे  company द्वारा  दिया  गया  Package, कोई  car या  कोई  घर .
हममे  से  ज्यदातर  लोग  middle-class family से   हैं . हमारे  लिए   , भौतिक  सुख -सुविधाएं  सफलता  की  सूचक  होती  हैं , और  सही भी  है . जब  आप  बड़े  हो  जाते  हैं  और  पसिया  रोज़ -मर्रा  कि  ज़रूरतों  को  पूरा  करने  के  लिए  ज़रूरी  हो जाता  है , तो  ऐसे  में  financial freedom होना  एक  बड़ी  achievement है .
लेकिन   यह  ज़िन्दगी  का  मकसद  नहीं  है .  अगर  ऐसा  होता  तो  Mr. Ambani काम  पर  नहीं  जाते .Shah Rukh Khan घर  रहते  और  और -ज्यादा  dance नहीं  करते . Steve Jobs और  भी  अच्छा  iPhone बनाने  के  लिए  मेहनत  नहीं  करते  , क्योंकि  Pixar बेच  कर   already उन्हें  कई  billion dollars मिल  चुके  हैं .  वो  ऐसा  क्यों  करते  हैं ? ऐसा  क्या  है  जो  हर  रोज़  उन्हें  काम  पर  ले  जाता  है ?
वो  ऐसा  इसलिए  करते  हैं  क्योंकि  ये  उन्हें  ख़ुशी  देता  है . वो  ऐसा  इसलिए  करते  हैं  क्योंकि  ये  उन्हें  जिंदादिली  का  एहसास  करता  है . अपने  मौजूदा  स्तर  में  सुधार  लाना  एक  अच्छा  अहसास  दिलाता  है . अगर  आप  मेहनत  से  पढ़ें  तो  आप  अपनी  rank सुधार  सकते  हैं . अगर  आप  लोगों  से  interact करने  का  प्रयत्न  करें  तो  आप  interview में  अच्छा  करेंगे . अगर  आप  practice करें  तो  आपके  cricket में  सुधार  आएगा . शायद  आप  ये  भी  जानते  हों कि  आप  अभी  Tendulkar नहीं  बन  सकते  , लेकिन  आप  अगले  स्तर  पर   जा  सकते  हैं . अगले  level पे  जाने  के  लिए  प्रयास  करना ज़रूरी  है .
प्रकृति   ने  हमें   अनेकों  genes के  संयोग  और  विभिन्न  परिस्थितियों  के  हिसाब  से  design किया  है .खुश  रहने  के  लिए  हमें  इसे  accept करना  होगा , और  प्रकृति  कि  इस  design का अधिक  से  अधिक  लाभ  उठाना  होगा . ऐसा  करने  में  Goals आपकी  मदद  करेंगे .
अपने  लिए  सिर्फ  career या  academic goals ही  ना  बनाएं . ऐसे  goals बनाएं  जो  आपको  एक balanced और  successful life दे . अपने  break-up के  दिन  promotion पाने  का  कोई  मतलब  नहीं  है . कार  चलाने  में  कोई  मज़ा   नहीं  है  अगर  आपके  पीठ में दर्द हो .दिमाग  tension से  भरा  हो  तो भला  shopping करने  में  क्या  ख़ुशी होगी ?
आपने  ज़रूर  कुछ  quotes पढ़े  होंगे  —  ज़िन्दगी  एक  कठिन  race है , ये  एक  marathon है  या  कुछ  और . नहीं , जो  मैंने  आज  तक  देखा  है  ज़िन्दगी  nursery schools में  होने  वाली  उस  race की  तरह  है  जिसमे  आप  चम्मच  में  रखे  मार्बल  को  अपने  मुंह  में  दबा  कर  दौड़ते  हैं . अगर  मार्बल  गिर  जाये  तो  दौड़  में  first आने  का  कोई  अर्थ  नहीं  है . ऐसा  ही  ज़िन्दगी  के  साथ  है  जहाँ  सेहत  और  रिश्ते  उस  मार्बल  का  प्रतीक  हैं . आपका  प्रयास  तभी  सार्थक  है  जब   तक  वो   आपके  जीवन  में  सामंजस्य  लाता  है .नहीं  तो , आप  भले  ही  सफल  हो  जायें , लेकिन  ये  चिंगारी , ये  excited और  जिंदा  होने  की  feeling धीरे – धीरे  मरने  लगेगी . …..
Spark को  nurture करने  के  बारे  में  एक  आखिरी  चीज —ज़िन्दगी  को  संजीदगी  से  ना  लें ….don’t take life seriously. मेरे  एक  योगा  teacher class के  दौरान  students को  हंसाते  थे . एक  student ने  पूछा  कि  क्या  इन  Jokes कि  वजह  से  योगा   practice का  समय  व्यर्थ  नहीं  होता ? तब  teacher ने  कहा  – Don’t be serious be sincere. तबसे  इस  Quote ने  मेरा  काम  define किया  है . चाहे  वो  मेरा  लेखन  हो , मेरी  नौकरी  हो , मेरे  रिश्ते  हों  या  कोई  और  लक्ष्य . मुझे  अपनी  writings पर  रोज़  हज़ारों  लोगों  के  opinions मिलते  हैं . कहीं  खूब  प्रशंशा  होती  है  कहीं  खूब  आलोचना . अगर  मैं  इन  सबको  seriously ले  लूं , तो  लिखूंगा  कैसे ? या  फिर  , जीऊंगा  कैसे ?ज़िन्दगी  गंभीरता  से  लेने  के  लिए  नहीं  है , हम  सब  यहाँ  temporary हैं .हम  सब  एक  pre-paid card की  तरह  हैं  जिसकी  limited validity hai. अगर  हम  भाग्यशाली  हैं  तो  शयद  हम   अगले  पचास  साल  और  जी  लें . और  50 साल  यानि सिर्फ  2500 weekends .क्या  हमें  सच -मुच  अपने  आप  को  काम  में  डुबो  देना  चाहिए ? कुछ  classes bunk करना , कुछ  papers में  कम  score करना  , कुछ  interviews ना  निकाल  पाना , काम  से  छुट्टी  लेना , प्यार   में  पड़ना , spouse से  छोटे -मोटे  झगडे  होना …सब  ठीक  है …हम  सभी  इंसान  हैं , programmed devices नहीं ….
मैंने  आपसे  तीन  चीजें  बतायीं – reasonable goals, balance aur ज़िन्दगी  को  बहुत  seriously नहीं  लेना – जो  spark को  nurture करेंगी .  लेकिन  ज़िन्दगी  में  चार  बड़े  तूफ़ान  आपके  दिए  को  बुझाने  की  कोशिश  करेंगे . इनसे  बचने  बहुत  ज़रूरी  है . ये  हैं  निराशा  (disappointment),कुंठा ( frustration),  अन्याय (unfairness) और जीवन में कोई उद्देश्य ना होना (loneliness of purpose.)
निराशा  तब  होगी  जब  आपके  प्रयत्न  आपको  मनचाहा  result ना  दे  पाएं  . जब  चीजें  आपके  प्लान  के  मुताबिक  ना  हों  या  जब  आप  असफल  हो जायें . Failure को  handle करना  बहुत  कठिन  है , लेकिन  जो  कर  ले  जाता  है  wo और  भी  मजबूत  हो  कर  निकलता  है . इस  failure से  मुझे  क्या  सीख  मिली ?  इस  प्रश्न  को  खुद  से  पूछना  चाहिए . आप  बहुत  असहाय  feel करेंगे   , आप  सबकुछ  छोड़  देना  चाहेंगे  जैसा  कि  मैंने  चाहा   था  , जब  मेरी  पहली  book को  9 publishers ने  reject कर  दिया  था . कुछ  IITians low-grades की  वजह  से  खुद  को  ख़तम कर  लेते  हैं , ये  कितनी  बड़ी   बेवकूफी  है ? पर  इस  बात  को  समझा  जा  सकता  है  कि  failure आपको  किस  हद्द  तक  hurt कर  सकता  है .
पर ये ज़िन्दगी है . अगर चुनौतियों  से हमेशा पार पाया जा सकता तो , तो चुनौतियाँ चुनौतियाँ नहीं रह जातीं. और याद रखिये — अगर आप किसी चीज में fail हो रहे हैं,तो इसका मतलब आप अपनी सीमा या क्षमता तक पहुँच रहे हैं. और यहीं आप होना चाहते हैं.
Disappointment का भाई है  frustration, दूसरा तूफ़ान . क्या आप कभी frustrate  हुए हैं? ये तब होता है जब चीजें अटक जाती हैं. यह भारत में विशेष रूप से प्रासंगिक है. ट्राफिक जाम से से लेकर अपने योग्य job पाने तक. कभी-कभी चीजें इतना वक़्त लेती हैं कि आपको पता नहीं चलता की आपने अपने लिए सही लक्ष्य निर्धारित किये हैं.Books लिखने के बाद, मैंने bollywood के लिखने का लक्ष्य बनाया, मुझे लगा उन्हें writers  की ज़रुरत है. मुझे लोग बहुत भाग्यशाली मानते हैं पर मुझे अपनी पहली movie release  के करीब पहुँचने में पांच साल लग गए.
Frustration excitement  को ख़त्म करता है, और आपकी उर्जा को नकारात्मकता में बदल देता है, और आपको कडवा बना देती है.मैं इससे कैसे deal  करता हूँ? लगने वाले समय का realistic अनुमान लगा के. . भले ही movie  देखने में कम समय लगता हो पर उसे बनाने में काफी समय लगता है, end-result  के बजाय उस result तक पहुँचने के  प्रोसेस को एन्जॉय करना , मैं कम से कम script-writing तो सीख रहा था , और बतौर एक  side-plan  मेरे पास अपनी तीसरी किताब लिखने को भी थी और इसके आलावा दोस्त, खाना-पीना, घूमना ये सब कुछ frustration से पार पाने में मदद करती हैं. याद रखिये, किसी भी चीज को  seriously  नहीं लेना है.Frustration  , कहीं ना कहीं एक इशारा है कि आप चीजों को बहुत seriously ले रहे हैं.Frustration excitement को  ख़तम  करता  है , और  आपकी  energy को  negativity में  बदल  देता  है , वो  आपको  कडवा  बना  देता  है . मैं  इससे  कैसे  deal करता  हूँ ?
Unfairness ( अन्याय ) – इससे  deal करना  सबसे  मुश्किल  है , लेकिन  दुर्भाग्य  से  अपने  देश  में  ऐसे  ही  काम  होता  है . जिनके  connections होते  हैं , बड़े  बाप  होते  हैं , खूबसूरत  चेहरे  होते  हैं ,वंशावली  ( pedigree) होती  है , उन्हें   सिर्फ  Bollywood में  ही  नहीं  बल्कि  हर  जगह  आसानी  होती  है . और  कभी -कभी  यह  महज  luck की  बात  होती  है . India में  बहुत  कम   opportunities हैं , इसलिए   कुछ  होने  के  लिए  सारे  गृह -नक्षत्रों  को  सही  इस्थिति  में  होना   होगा . Short-term में  मिलने  वाली  उपलब्धियां  भले  ही  आपकी   merit और  hard –work  के  हिसाब  से   ना  हों  पर  long-term में  ये   ज़रूर  उस  हिसाब  से  होंगी , अंततः   चीजें  work-out करती  हैं . पर  इस  बात  को  समझिये  कि  कुछ  लोग  आपसे  lucky होंगे .
दरअसल  अगर  Indian standards के  हिसाब  से  देखा  जाये  तो  आपको  College में  पढने  का  अवसर  मिलना  , और  आपके  अन्दर  इस  भाषण  को  English में  समझने  की   काबिलियत  होना  आपको  काफी  lucky बनता  है . हमारे  पास  जो  है  हमें  उसके  लिए  अहसानमंद  होना  चाहिए  , और  जो  नहीं  है  उसे  accept करने  कि  शक्ति  होनी  चाहिए .  मुझे  अपने  readers से  इतना  प्यार  मिलता  है  कि  दुसरे  writers उसके  बारे  में  सोच  भी  नहीं  सकते . पर  मुझे  साहित्यिक प्रशंशा  नहीं  मिलती  है . मैं  Aishwarya Rai की  तरह  नहीं  दीखता  हूँ  पर  मैं  समझता  हूँ   कि   मेरे  दोनों  बेटे   उनसे  ज्यादा  खूबसूरत  हैं . It is OK . Unfairness को  अपने  अन्दर  कि  चिंगारी  को  बुझाने  मत  दीजिये .
और  आखिरी  चीज  जो  आपके  spark को  ख़तम  कर  सकती  है  वो  है  Isolation( अलग होने की स्थिति )आप  जैसे  जैसे  बड़े   होंगे  आपको  realize होगा  कि  आप  unique हैं . जब  आप  छोटे  होते  हैं  तो  सभी  को  ice-cream और  spiderman अच्छे  लगते  हैं . जब  आप  college में  जाते  हैं  तो  भी  आप  बहुत  हद  तक  अपने   बाकी  दोस्तों  की  तरह  ही  होते  हैं . लेकिन  दस  साल  बाद  आपको  पता  लगता  है  कि  आप   unique हैं . आप  जो  चाहते  हैं , आप  जिस  चीज  में  विश्वास  राखते  हैं , वो  आपके  सबसे  करीबी  लोगों  से  भी  अलग  हो  सकती  है . इस  वजह  से  conflict हो  सकती  है  क्योंकि  आपके  goals दूसरों  से  match नहीं  करते . और  आप  शायद   उनमे  से  कुछ  को  drop कर  दें . College में  Basketball के  कप्तान  रह  चुके , दूसरा  बछा  होते -होते  ये  खेल  खेलना  छोड़  देते  हैं . जो चीज  उन्हें  इतनी  पसंद  थी  वो  उसे  छोड़  देते  हैं . ऐसा  वो  अपनी  family के  लिए  करते  हैं . पर  ऐसा  करने   में  Spark ख़तम  हो  जाता  है . कभी  भी  ऐसा  compromise ना  करें . पहले  खुद   को  प्यार  करें  फिर  दूसरों  को .
मैंने  आपको  चारों  thunderstorms – disappointment, frustration, unfairness and isolation के  बारे  में  बताया . आप  इनको  avoid नहीं  कर  सकते , मानसून  की  तरह  ये  भी  आपके  जीवें  में  बार -बार  आते  रहेंगे . आपको  बस  अपना  raincoat तैयार  रखना  है  ताकि  आपके  अन्दर  कि  चिंगारी  बुझने  ना  पाए .
मैं  एक  बार  फिर  आपका  आपके  जीवन  के  सबसे  अच्छे समय  में  स्वागत  करता  हूँ . अगर  कोई  मुझे  समय  में  वापस  जाने  का  option दे  तो  निश्चित  रूप  से  मैं  college वापस  जाना  चाहूँगा . मैं  ये आशा  करता  हुनक  की  दस  साल  बाद  भी  , आपकी  आँखों  में  वही  चमक  होगी  जो  आज  है , कि  आप  अपने  अन्दर  की  चिंगारी  को  सिर्फ  college में  ही  नहीं  बल्कि  अगले  2500 weekends तक  ज़िन्दा  रखेंगे . और  मैं  आशा करता  हूँ  की  सिर्फ  आप  ही  नहीं  बल्कि  पूरा  देश  इस  चिंगारी  को  ज़िन्दा  रखेगा , क्योंकि  इतिहास  में  किसी  भी  और  पल  से  ज्यादा  अब  इसकी  ज़रुरत  है . और  ये  कहना  कितना   अच्छा लगेगा कि —मैं  Billion Sparks की भूमि से वास्ता रखता हूँ .
 Thank You.

Chetan Bhagat

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

कुत्ता और आदमी का संवाद

आजकल, कुत्ते भी कई प्रकार के हो गये हैं! जर्मन, अमेरिकी और न जाने किस नस्ल और जाति के हो गये हैं! आदमी के कितने जात हैं, यह तो लगभग सबको याद हो ही गया है! इसमें नेतवा का बडा रोल हो गया है! आए दिन चुनाव में हर जाति का नया नेता बनकर आ रहा है और अपनी जाति के गरीबी का बखान कर रहा है! बिहार में ही देखिए न, मांझी कह रहा है कि हम डोम हैं, इसी कारण बिहार के सीएम से हटाया जा रहा है! उस ससुरा को आखिर में नीतिो न बैठाया था!नीतिा बोला तो हट जाता, लेकिन नहीं!समझ में नहीं आता है ई आदमी रूपी कुत्ता का कौन सा नस्ल है!लगता है बौरा गया है! अक्षय कुमार की फिल्म इंटरटेनमेंट में यही दिखाया था कि आदमी बेबफा हो सकता है, लेकिन कुत्ता हमेाा वफादार होता है! यह सही भी है! जो दो रोटी खिला देगा, उसी का हो जाता है! आदमी को देखो,उसे तो कुत्ता भी नहीं कहा जा सकता है! साला जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है!आजकल के आदमी के व्यवहार से कुत्ता भी ’ारमा जाएगा कि इसे किस जाति में रखूं! किस जाति का है, यह तो अब याद हो गया है!  मैं उनकी बातों से आचर्य में पड गया कि आदमी भी कहीं कुत्ता होता है! लेकिन उसकी बातों से आवस्त हो गया कि यह सही कह रहा है! राजनीतिक समझ देखकर लगा कि ये बडे ज्ञानी हैं! इन्हीं समझ को देखकर किसी ने सही ही कहा था कि यूपी और बिहार में धर्म और राजनीति खून में बसा हुआ है!

कुछ दिनों पहले आफिस से घर जा रहा था,तो रास्ते में देखा कि एक कूडा फेंकनेवाला और कुत्ता आपस में लड रहा था! मैं यह वाकया दूर से देख रहा था! इस कारण इस घटना के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं हो पा रही थी! जिज्ञासाव मैं उस जगह पर पहुंचा तो देखकर सोच में पड गया! मैं सोचने लगा कि आखिर इन दोनों में लडाई क्यों हो रही है! दोनों लड रहे थे! मैं वहां से निकलना ही उचित समझा और अपने काम में मन लगाने लगा,लेकिन हमेवही वाकया सामने आ जाता था! इस कारण काफी परेाान रहने लगा! जब मैं दसवीं में था, तो भिक्षुक कविता चाट रहे हैं जूठी पत्तल, कभी सडक पर अडे हुए और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं खडे हुए, पढा था! मुझे लगा कि यही हालात यहां हैं, लेकिन उसमें तो कवि ने भिक्षुक का वर्णन किया था कि कुत्ते का जो हिस्सा था, वह भिक्षुक खा रहा था! इसी कारण कुत्ता लडाई कर रहा था! यहां कुडा वाला कुत्ता का अन्न फेंक रहा था! इस कारण लडाई चल रही थी! यही सोचते सोचते मैं कब सो गया,पता नहीं चला! एकाएक भगवान आ गये और हमसे पूछ बैठे कि बोलो तुम्हें क्या वरदान चाहिए! मैंने झट से मांग लिया कि मुझे कुत्ता का लैंग्वेज समझने का वरदान दो! वे एवमस्तु कहकर चले गये! मैं उसी कुत्ता को ढुंढने लगा जो कूडावाला से लडाई किया था! दो दिनों तक परेाान रहा, वह कुत्ता नहीं मिला! एक दिन उस कूडावाला से मुलाकात हो गयी! मुझे लगा कि वह बता देगा, उस कुत्ता के बारे में! लेकिन उसने कहा कि रोज इस तरह के घटना होते रहते हैं! कभी आदमी रूपी कुत्ते से तो स्वयं कुत्ता से मिलन होता ही रहता है!अगर इन सबका लिस्ट लिखने लगूं तो कभी सुबह नहीं हो पाएगा! वैसे, जिज्ञासावा उन्होंने यह पूछा कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम किस कुत्ते की बात कर रहे हो! भाई, आजकल, कुत्ते भी कई प्रकार के हो गये हैं! जर्मन, अमेरिकी और न जाने किस नस्ल और जाति के हो गये हैं! आदमी के कितने जात हैं, यह तो लगभग सबको याद हो ही गया है! इसमें नेतवा का बडा रोल हो गया है! आए दिन चुनाव में हर जाति का नया नेता बनकर आ रहा है और अपनी जाति के गरीबी का बखान कर रहा है! बिहार में ही देखिए न, मांझी कह रहा है कि हम डोम हैं, इसी कारण बिहार के सीएम से हटाया जा रहा है! उस ससुरा को आखिर में नीतिो न बैठाया था!नीतिा बोला तो हट जाता, लेकिन नहीं!समझ में नहीं आता है ई आदमी रूपी कुत्ता का कौन सा नस्ल है!लगता है बौरा गया है! अक्षय कुमार की फिल्म इंटरटेनमेंट में यही दिखाया था कि आदमी बेबफा हो सकता है, लेकिन कुत्ता हमेाा वफादार होता है! यह सही भी है! जो दो रोटी खिला देगा, उसी का हो जाता है! आदमी को देखो,उसे तो कुत्ता भी नहीं कहा जा सकता है! साला जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है!आजकल के आदमी के व्यवहार से कुत्ता भी ’ारमा जाएगा कि इसे किस जाति में रखूं! किस जाति का है, यह तो अब याद हो गया है!  मैं उनकी बातों से आचर्य में पड गया कि आदमी भी कहीं कुत्ता होता है! लेकिन उसकी बातों से आवस्त हो गया कि यह सही कह रहा है! राजनीतिक समझ देखकर लगा कि ये बडे ज्ञानी हैं! इन्हीं समझ को देखकर किसी ने सही ही कहा था कि यूपी और बिहार में धर्म और राजनीति खून में बसा हुआ है! मैं पूछना ही चाह रहा था कि उसका रेडियो फिर से आन हो गया और आकाावाणी की तरह सामाचार वाचन करने लगा! क्या कहते हो साहब, हमारा बास कुत्ता से भी बदतर है! कुत्ता तो एक बार ही परेाान करता है और उसके बाद भूल जाता है! लेकिन आदमी रूपी कुत्ता आपको जिंदगी भर परेाान करता रहता है! आप ही बताइये न कि कूडा फेंकना कितना टफ काम है, उसपर यह बाWस हमेाा यह हिसाब लगाता है कि उसमें कितने बोदका के बोतल थे, कितने बिसलरी और कितने रम के! और कितने पाWलीथिन थे! आप ही बताइये कि दिनभर कूडा उठाने के बाद दो चार बोतल मिलता है, उस पर भी इस बाWस का नजर रहता है!साला अपना पाWलीथिन पीता है और लोगों से अपेक्षा रखता है कि वह बोदका पीए और उस बोतल को कूडा में फेंक दे! बताइये न आज का दारूबाज इतना बेबकूफ है क्या! वह पीता तो है, लेकिन बोतल उसकी बीवी संभालकर रख लेती है! सोचती है कि इससे कुछ पैसे मिल जाएंगे! महीने भर में वह दस से बीस रूपया तो कमा ही लेती है!
एक बार तो गजब हो गया सर जी! मेरे बाWस का भाई आर्मी में है! कुछ दिनों पहले वह अपने भाई का चार बोतल चूरा लिया और सबको बताने लगा कि मेरा स्टैंडर्ड बढ गया है, क्योंकि मैं पाWलीथिन नहीं पीता हूं! और एक दिन पीकर बोल रहा था कि अब हमें क्या दिक्कत है! घर में मेरी बीवी भी कमाती है! हमलोगों को भी उस दिन खूब पिलाया! हमने पूछा कि सर जी भाभी क्या करती है, तो बोला कि तुम्हें समझ में नहीं आएगा, क्योंकि वह स्वरोजगार करती है! स्वरोजगार पर पूरा डाWयलाWग दिया! सही में हमलोगों को कुछ समझ में नहीं आया! यही समझ में आया कि स्वरोजगार का मतलब खुद का रोजगार होता है! हमने पूछा कि उसकी बीवी कौन सी रोजगार करती है! भक, रोजगार का करेगी गंवारू की पत्नी!तापका से कूडावला मुझे झल्लाते हुए बोला!वही दो चार बोतल जो बेचकर पैसा कमायी थी, उसी को वह स्वरोजगार कह रहा था! इतना कमीना है कि उसका भी पैसा नहीं छोडा! पी गया साला! क्या आप इसे आदमी कहेंगे! मैं भी उसकी बातों में इतना मागूल हो गया कि भूल गया कि हमें उस कुत्ता को खोजना है! जब मैं फिर उस कुत्ता के बारे में पूछा तो बोला कि आप आधे हैं या आप भी लेते हैं! दो चार गंदी गाली मुझे दिया और चला गया! इतना ही सुन पाया कि बेकार का टाइम खा रहा है साला! अंत में हमने यही सोचा कि इससे मुंह लगाना बेहतर नहीं है! और मैं कुत्ता खोजने में व्यस्त हो गया! अपना पूरा अनुभव लगा दिया, तब कहीं कुत्ता से मुलाकात हो पायी! उनसे बातचीत का प्रमुख अंा है

 आप कहां चले गये थे! मैं आपको चार दिनों से ढूंढ रहा हूं!

 आपको हम जैसे आम कुत्तों की कैसे याद आ गयी एकाएक!बिना काम के तो आप किसी को पहचानते नहीं है और न ही बिना स्वार्थ के किसी को अपने घर में रखते हैं! पहले अपना काम बताइये कि आप मुझसे क्या चाहते हैं!भाई आजकल आप लोगों का नेचर इस तरह बदल रहा है कि नेचर को भी समझ में नहीं आता है कि माजरा क्या है!हमारे दादा बताते थे कि व्यक्ति का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता है! लेकिन आजकल दोनों बदल रहा है! डिजिटल सिग्नेचर के बावजूद रोज एक दूसरे के नाम पर घपले हो रहे हैं! जिसका सही में सिग्नेचर है,उसे भगा दिया जाता है और जो फर्जी है, उसे उसका हक मारने के लिए सबकुछ दे दिया जाता है! नेचर के बारे में कुछ कहना ही बैमानी है! अब तो अमीर घर की लडकी सुंदर कुत्ते पर भी डोरे डालने लगी है! धन्य है भारत और धन्य है भारत के लोग! जहां तक मेरा सवाल है, तो मैं चार दिनों के लिए बाहर चला गया था! इस कारण आपसे मुलाकात नहीं हो पाई! बताइये क्या काम था आपको मुझ जैसे आम कुत्ते से! वैसे यदि आप आम कुत्ता पार्टी बनाना चाहते हैं, तो मैं आपको इस मामले में काफी सहयोग कर सकता हूं! लेकिन पद और पैसे मिलेंगे, तभी यह वर्क कर पाउंगा! वैसे यह आपको आवस्त करना चाहता हूं कि यदि मैं आपके साथ जुट गया तो गली मुहल्ले के सभी कुत्ते आपके साथ हो जाएंगे!भ्ज्ञले ही सभी कुत्ते वोट न दे पाए, लेकिन रोड ’ाो में इतनी भीड रहेगी कि टीवी पर सिर्फ आप और आपकी भीड ही दिखेगी और हो सकता है कि कुछ बाजारू सर्वे आपको जीतते हुए भी बोल दे!!   

 आप आम आदमी को ओवरस्टीमेट तो नहीं कर रहे हैं
  सर जी हमलोग भी खास आदमी के पास रहते हैं! वहां आम आदमी के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है, वह रोज देखता हूं!कभी कभी तो सोच में पड जाता हूं कि आम आदमी के दिल पर क्या गुजरता होगा,जब उसे आदमी की तरह सलूक न किया जाता है! हाल ही में दिल्ली चुनाव में आम आदमी के साथ जिस तरह का सलूक किया गया, उसे देखकर तो दंग रह गया हूं! आपने देखा कि हमारे पीएम उन्हें क्या नहीं कह गए और कई केसों में फंसाने लगे! भला हो केजरीवाल का कि वह आम आदमी नहीं था! अगर वह आम आदमी होता तो न जाने कब का इतिहास बन जाता! वैसे भी हममें और आप लोगों में कोई अंतर नहीं रह गया है! सभी जगह फूट डालो और राज करो की नीति ही चल रहा है! यदि ऐसा नहीं होता तो आदमी के कहने पर कहीं एक कुत्ता दूसरे कुत्ता को काटता और भौंकता है! वही हाल आम आदमी का है! जो नेता बोलता है, वही आदमी करता है! फिर भी हम कहते हैं कि ज्ञानी मानव हैं!


मोसेरा भाई क्या होता है

मोसेरा भाई क्या होता है

अस्मित गांव में रहता था! उसके पापा टीचर थे!इस कारण उसकी परवरिा अच्छी तरीके से हुई! इकलौता बेटा होने के कारण उसकी पढाई के लिए काफी पैसे खर्च किए गए! उसकी मां भी इकलौती थी!  अस्मित जब पांच साल का था, तभी उसका एडमिान बोर्डिंग स्कूल में कर दिया गया और वह हास्टल में ही रहने लगा! होनहार की तरह वह बचपन से ही मेधावी था और मां व पिताजी का सपना साकार करने के लिए तैयार रहता था! अस्मित को पढने में डिस्टर्बेंस न हो, इसके लिए वे दोनों सभी से रिलेान तोड चुके थे!कुछ साल बाद स्कूल में पढाई अच्छी तरीके से नहीं हो रही थी! इस कारण अस्मित के पापा उन्हें घर पर ही रखने लगे और वे सारी सुविधाएं उन्हें दिए, जो उस समय उन्हें मिलनी चाहिए! एक दिन वह अपनी मां से यह पूछ बैठा कि मम्मी, मोसेरा भाई क्या होता है! उसकी मां उन्हें बताई कि मां की बहन का जो बेटा होता है, उसे ही मेासेरा भाई कहा जाता है!उत्सुकतावा बालक ने पूछा कि आपकी बहन क्यों नहीं है! मम्मी हंसने लगी और बोली कि यह सवाल नाना से पूछो!बात आई और गयी हो गई!उस दिन के बाद से अस्मित कभी भी इस तरह का प्रन अपनी मम्मी से नहीं किया! लेकिन उसकी मम्मी उस दिन से काफी परेाान रहने लगी और सोचने लगी कि यदि इसी तरह की व्यवस्था रही तो सौ साल बाद मोसेरा भाई खोजने पर भी नहीं मिलेगा! मोसेरा भाई किताब की ’ाोभा ही बढाएगा और उसे बताने वाले भी किताब पढकर बताएंगे! जैसे इस समय इंटरनेट आने से लेटर लिखना भूल गया है!