मंगलवार, 4 मई 2010

मैं और मेरा जीवन चार

पेरेंट्स
क्या बताऊं इनके बारे में। पहले पिताजी से काफी डरता था। मुझे लगता था कि वे मुझे प्यार नहीं करते हैं। लेकिन हॉस्टल आने के बाद पता चला कि वे भी मुझसे प्यार करते हैं, तभी तो हर सप्ताह मुझे देखने आते हैं और पैसे भी देते हैं। मां के बारे में कभी भी संदेह नहीं रहा। उन्हीं के ममता के बदौलत तो मैं बचपन की सभी कठिनाइयों से पार पाया। यदि वह नहीं होती तो॥मैं कुछ नहीं होता और यह लिखने की स्थिति में भी नहीं होता। वह बचपन से ही साहसी थीं और हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहती थी। वह भी रविवार को मुझसे मिलने के लिए पैदल ही आ जाती थी। उनके पैर में चप्पल भी नहीं रहते थे। अब तो मुझे खुद आश्चर्य होता है कि पिताजी कमाते हुए भी एक धोती और कुर्ता तथा मां बिना चप्पल के कैसे चल लेती थीं।
पटना यात्रा
उस समय आठवीं कक्षा में पढ़ता था। भैया काफी मेहनत के बाद पटना कॉलेजियट स्कूल में एडमिशन करा दिए। घरवाले भी खुश थे कि अब यह बेहतर पढ़ाई करेगा। मैं भी अंदर से खुश था कि वहां जाकर खूब पढ़ूंगा। अनेक तरह के सपने भी देखने लगा था। कपड़े भी ढंग का था। भैया के साथ पटना बस से सफर कर रहा था। उसके पहले पूर्णियां भी नहीं गया था। रात की बस थी। सभी सो रहे थे और मैं आने जानेवाले सभी बसों और ट्रकों को देखता और रोमांचित भी हो उठता था। कभी-कभी भैया को भी देखने की सलाह दे देता था। भैया सिर्फ मुस्कुरा देते थे। पटना में अलग वातावरण था। उस समय उनके साथ लाल भैया रहते थे। जाते वक्त यही डर लग रहा था कि फिर लाल भैया पढ़ने के लिए मारेंगे। उनके सामने जाने से डरता था। जब अपने कमरे में पहुंचा, तो लाल भैया के बदले स्वभाव से हिम्मत बंधी। उस समय न हीं बोलने का तरीका मालूम था और न ही शिष्टाचार से वाकिफ था। भैया अपने दोस्तों से मिलाते और खुद ही मेरे बारे में बताते रहते थे। वे जिन्हें कहते, प्रणाम कर लेते अन्यथा सिर्फ वे लोग बातें करते थे और मैं सुनता रहता था।
हॉस्टल में प्रवेश
स्कूल में एडमिशन के बाद हॉस्टल में रहने लगा। एक कमरे में मुझे लगाकर पांच स्टूडेंट्स थे। जाने के साथ ही पढ़ाई शुरू कर दिया। रात को एकाएक रोने लगा। घर की याद खूब आ रही थी। भैया के कमरे में नहीं जाना चाहता था, क्योंकि वहां लाल भैया थे। कोई भी मुझसे मिलने आता, तो रोने लगता। इस तरह की स्थिति लगभग एक वर्ष तक रही। यहां तो इससे भी बदतर स्थिति थी। स्कूल बहुत अच्छा था। हॉस्टल में भी टॉप स्टूडेंट्स रहते थे, लेकिन मेरे कमरे में मैं ही तेज था। इस कारण पहले का डर खत्म हो गया। यहां भी पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस कारण फिर पढ़ाई से दूर हो गया। महीने में कभी भी यदि भैया के यहां जाता तो मैथ छोड़कर अन्य किताब ले जाता। यदि लाल भैया कहीं से किताब लेकर मैथ बनाने देते तो हाथ-पांव कांप उठते थे। नहीं बनाने पर मारने की कोशिश करते तो इतना रोने लगता कि लाचारी में भैया बचा लेते और उनसे न पढ़ाने को कहते। कुछ दिन लाल भैया प्रयास किए अंत में वे हार मान गए। इससे घाटा यह हुआ कि मैं कमजोर से कमजोर बनता गया। स्कूल में रिजल्ट से उन लोगों को कोई मतलब नहीं था। मैं किसी तरह पास करता गया और उन लोगों की डांट सुनकर और जिद्दी बनता गया। इस समय मुझे भैया के प्रति घृणा के रोगाणु लग चुके थे। न जाने क्यों, बचपन से ही मुझे झूठ से नफरत हो गई थी। भैया मेरे बारे में बहुत कुछ बिना देखे ही सभी को बोलते रहते थे। जैसे कि उस समय मुझे एडल्ट सिनेमा के बारे में जानकारी नहीं थी और मैं बाहर जाकर सिनेमा भी नहीं देखता था, लेकिन घर में सभी को बता दिए थे कि यह पढ़ाई छोड़कर इन्हीं सब बातों में लगा रहता है। हॉस्टल में महीने में एक बार वीडियो आता था और सभी स्टूडेंट्स इसके लिए चंदा देते थे। रात भर सिनेमा देखा जाता था। इससे कोई भी अलग नहीं हो सकता था। हमारी यह बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं रहता था और कहा जाता था कि ये तो रात भर सिनेमा देखता है। इन झूठ से भैया के प्रति काफी घृणा हो गई थी। जब भी घर जाता, तो पिताजी से काफी डांट लगती और फिर ढाक के तीन पात वाली स्थिति रहती। घर की तरफ से सभी परेशान ही करते थे। उस समय तक घर में यही धारणा थी कि मैथ के बिना स्टूडेंट्स आगे नहीं बढ़ सकता है। मैं मैथ में कमजोर हो गया था। इस कारण हमारी क्लास खूब लगती थी। धीरे-धीरे घर आना भी छोड़ दिया और पढ़ाई तो कब से छोड़ दिया था। जब कभी पढ़ने की इच्छा होती भी थी, तो घरवालों के व्यवहार से नहीं पढ़ पाता था। वे लोग हमारी स्थिति को सुनने के लिए तैयार नहीं थे और मैं उनके अनुरूप नहीं चल रहा था। धीरे-धीरे पिताजी को भी जवाब देने लगा। मेरे घर में बड़ों को जवाब देना घोर अपराध माना जाता था, लेकिन इसकी शुरुआत मैंने कर दी थी। अब पढ़ाई छोड़ मैं उन लोगों की बात का काट ढूंढने लगा और अपनीर थ्योरी विकसित करने लगा। इससे फायदा यह मिला कि मैं पढ़ाई के प्रति फिर से मुड़ गया और यह सिद्ध करने के लिए पढ़ने लगा कि मैथ न जानने के बावजूद भी सफल हुआ जा सकता है। इसमें जोखिम काफी था, लेकिन इसके सिवा मेरे पास कोई विकल्प भी नहीं था। लेकिन पटना में मेरी पढ़ाई न के बराबर हुई। कुछ टीचर और पिताजी यही मानते थे कि यह इंटेलिजेंट है। इस कारण पढ़ाई कर सकता है। दसवीं में सभी का रजिस्ट्रेशन फॉर्म भराया गया, मैं भी उनमें से एक था। पढ़ाई इस तरह की नहीं हुई थी कि मेरिट से बोर्ड परीक्षा पास कर सकें। लेकिन खुशी यह थी न जाने क्यों, दोस्तों के बीच मेरी गिनती अच्छे स्टूडेंट्स में होती थी और सभी यही कहते थे कि तुम प्रथम श्रेणी से अवश्य पास होगे। मैं यह सुनकर काफी खुशफहमी में रहता था। घर में जो मेरे क्लासमेट थे, उन्हें पटनिया स्टाइल में बेवकूफ बनाता रहता था और वे लोग भी काफी तेज समझते थे। एक बात घर में यह भी थी कि स्टूडेंट्स के समक्ष उसकी प्रशंसा करने से वह बिगड़ जाता है। इसके विपरीत उस समय मैं परिवार से अपने किए अच्छे कार्यो की प्रशंसा सुनना चाहता था ताकि फिर दोगुने हिम्मत से तैयारी में जुट सकूं। यहां से परिवार और मेरे विचार भिन्न होने लगे और मैं दृढ़ बनता गया, जो कि परिवारवालों को अच्छा नहीं लगता था।
आग में घी का काम
परिवार वाले मुझसे नाराज थे ही कि आग में घी का काम यह हुआ कि क्लास टीचर की गलती से मेरा रजिस्ट्रेशन फॉर्म बोर्ड में जमा नहीं हो पाया। इस कारण मैं बोर्ड परीक्षा नहीं दे सका। परिवार वाले पहले से ही खार खाए बैठे थे। यह सुनकर वे आग बबूला हो गए और भैया घर में यह प्रचारित कर दिए कि यह जानकर परीक्षा नहीं देना चाहता था। इस कारण ऐसा किया। मुझे काफी गुस्सा भी आया और आश्चर्य भी हुआ कि उनकी दलील पर सभी सहमत हो गए। उस समय भैया से घृणा हो चुकी थी। उनकी शक्ल भी देखना नहीं चाहता था। हालांकि रजिस्ट्रेशन फॉर्म लाने के लिए काफी कोशिश किए, लेकिन सफल नहीं हो पाए। डांटने के बावजूद मेरी परेशानी उन्हें ही उठानी पड़ती थी। इस कारण कभी-कभी दया भी आ जाती थी। लेकिन उनसे चिढ़ बनी रही।
घर में एक वर्ष
अंत में पटना छोड़कर घर आ गया और यहीं रहने लगा। इस एक वर्ष में सभी ने अपना भड़ास खूब निकाला। इस वक्त सुनने के सिवा कुछ विकल्प भी नहीं था, लेकिन निडर हो गया था। आलोचना सुनने की आदत पड़ गई थी। सभी लोग कुछ न कुछ अवश्य कहते थे। खासकर पिताजी और भैया पीछे पड़ गए थे। मैं उनकी बातों को अनसुना करना सीख लिया था। घर आने के बाद मुझे ये नहीं समझ में आ रहा था कि पढ़ाई कहां से शुरू करूं? मेरे क्लास में चचेरी बहन गुडि़या पढ़ती थी। वह भी उस समय मुझसे काफी तेज थी। गांव के स्कूल में राघवेंद्र फ‌र्स्ट करता था। टुक्कू भी मेरे साथ था। मेरी ममेरी बहन भी उसी क्लास में पढ़ती थी। कहने का मतलब यह था कि बचपन के क्लासमेट के साथ मैं फिर आ गया। घर की तरफ से किसी तरह का सहयोग नहीं मिल रहा था। प्रमोद भैया पूर्णियां में रहते थे। घर में मैं अकेला रहता था। सभी लड़कों के साथ दिन भर क्रिकेट खेलता रहता था। पिताजी के आने के बाद मार भी पड़ती थी, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था।
जयशंकर मामा
इनकी नौकरी टीचर में हो चुकी थी। एमए तथा योग्य थे। उनकी नियुक्ति चार पांच महीने बाद होनी थी। पिताजी और मां मेरी पढ़ाई में अरुचि को देखकर उनको दो माह के लिए यहीं रख लिए। इनकी खासियत यह थी कि पढ़ाई करने पर प्रशंसा करते थे। इस कारण इनके साथ पढ़ने लगा और फिर से कुछ करने की इच्छा बलवती होने लगी। घरवाले भी मेरी पढ़ाई को देखकर खुश हो रहे थे। वे साइंस छोड़कर सभी पेपर पढ़ाते थे। इस कारण मैं भी पढ़ने लगा और काफी मेहनत करने लगा। उनके कारण इतिहास, अंग्रेजी और संस्कृत पर अच्छी पकड़ बन गई थी। न जाने क्यों, वे भी मुझे काफी इंटेलिजेंट समझते थे। दो महीने के बाद मैं पूर्णियां प्रमोद भैया के साथ रहने लगा। वे इंजीनियरिंग की तैयारी करते थे। उनके साथ लगभग दस घंटा रोज पढ़ता था, लेकिन कुछ भी याद नहीं रहता था। वे मुझे कुछ होमवर्क करने के लिए देते थे, जिसे मैं चाहकर भी पूरा नहीं कर पाता था। उनके साथ इस शर्त पर आया था कि यहां उनकी ही बातें मानूंगा। इस कारण वे जो कहते थे। चुपचाप सुनता रहता और कभी-कभी सभी के सामने मारते भी थे, लेकिन चुपचाप सहता रहता था। वहां की पढ़ाई पोजीटिव नहीं रही। अंत में फिर घर आ गया। अभी तक मैं सिर्फ मोहरा बना हुआ था। सभी लोग अपनी तरह से हमें यूज कर रहे थे। अंत में यह निर्णय लिया गया कि गांव के स्कूल में इसे पढ़ने दिया जाए, ताकि दिन भर खेल न सके।
स्कूल में आगमन
इस निर्णय का मैं इसलिए विरोध कर रहा था कि मुझे यह डर बना हुआ था कि मैं कुछ नहीं जानता हूं और वहां जाने के बाद मेरी रही सही इज्जत भी खत्म हो जाएगी। मेरा कुछ नहीं चला। अंत में लाचार होकर स्कूल जाने की तैयारी करने लगा। उस रात नींद नहीं आई। एक बार आत्महत्या करने के बारे में भी सोचा, लेकिन न जाने क्यों इरादा बदल दिया और अंदर से कुछ करने की हिम्मत जागी। सुबह तैयार होकर स्कूल जाने लगा। वहां सभी बचपन के दोस्त थे। इस कारण अधिक समस्या नहीं आई। राघवेंद्र क्लास में फ‌र्स्ट आता था, जिससे पहले से ही जान-पहचान थी। टुक्कू के अलावा चेचेरी और मेमेरी बहन भी पढ़ती थी। वे लोग भी पढ़ने में ठीक थे। सभी दोस्त मुझे चार क्लासवाले तेज ही समझते थे। इस कारण हमें पहली बेंच पर बैठाया गया। अंदर से काफी परेशान था। लेकिन उन लोगों को प्रभावित करने के लिए सर्वस्व झौंक दिया। घर पर आकर पढ़ाई करने लगा। इस समय यही स्ट्रेटेजी अपनाया कि कल जो पढ़ाया जाएगा, उसे आज ही पढ़कर जाना है। यह आइडिया काम कर गया और स्कूल में टीचर के प्रश्नों का उत्तर देने लगा। मेरे सभी भाई यहीं से पढ़े थे। इस कारण टीचर भी हमें तेज समझते थे और मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरा भी उतर रहा था। अब मुझे पढ़ने में काफी मन लगने लगा, लेकिन पहले से पढ़ाई में इतना वीक था कि बहुत कुछ पढ़ने के लिए था। अंत में मैंने यही निश्चय किया कि मैथ सिर्फ पास करने के लिए पढ़ूंगा और शेष विषयों में जी जान लगा दूंगा। मेरी यह रणनीति किसी को पसंद नहीं आई, लेकिन मैं अपने निर्णय पर दृढ़ रहा। अंत में वे लोग हार गए और मैं पढ़ाई में लग गया। मुझे याद है कि मैं दिन को स्कूल और खेलने में लगाता और रात भर पढ़ता था। चार बजे से पहले मैंने कभी नहीं सोया। सभी भाई व्यंग्य करते थे कि दिन भर पत्ता चुनता है और रात को पढ़ता है, लेकिन उनकी बातों पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। मैं अपनी धुन पर ही काम करता था। धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ गया। जब सब कुछ बढि़या चल रहा था, तो एक दिन उस स्कूल के हेडमास्टर फिजिक्स पढ़ाने आए। मैं पहले से तैयारी करके आया था। इस कारण संयोग से उनके पूछे गए सभी प्रश्नों का जवाब सिर्फ मैं ही दिया। इससे वे काफी प्रभावित हुए और दुखी भी हुए कि इस स्कूल का स्टूडेंट्स जवाब नहीं दिया। दूसरे दिन आकर बोले कि आप यहीं से परीक्षा दीजिए ताकि इस स्कूल से अच्छे रिजल्ट आ सकें। यह मेरे लिए असंभव था। क्योंकि पटना से पास करने का रोमांच ही अलग था। इस कारण मैं मना कर दिया, बदले में वे मुझे कल से स्कूल न आने का आदेश दे दिए। घर पर आकर बताया और स्कूल जाना छोड़ दिया। हीरो की तरह स्कूल छोड़ा था। इस कारण काफी खुश था और दोस्तों के बीच काफी क्रेज भी बन गया था। अब मैं अपनी पूरी रंगत में आ गया और जमकर पढ़ाई करने लगा। खेलता भी खूब था। घरवाले की बात न मानकर खुद अपनी ही मर्जी से चलता था। एक दिन सुबह से ही क्रिकेट खेल रहा था। पिताजी दो बार मना कर चुके थे, लेकिन फिर भी खेलता रहा। अंत में पिताजी बुलाए और पूछे कि तुम्हारी परीक्षा दो महीने के बाद हैं और तुम पढ़ाई नहीं कर रहे हो। इससे पढ़ाई से पास कर पाओगे? वह मारने के लिए तैयार हुए कि मैने उन्हें रोका और बोला कि यदि मैं प्रथम श्रेणी से परीक्षा पास नहीं करूंगा, तो आप मुझे घर से बाहर कर देंगे। पिताजी नहीं मारे और बोले कि रिजल्ट के बाद तुम्हें पूछूंगा। मैं भी निश्चिंत होकर चला गया और काफी खुश था कि आज मार से बच गया। लेकिन रात भर यही चिंता सता रही थी कि यदि प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण नहीं होऊंगा, मेरी खैर नहीं। उस दिन से मैं और पढ़ने लगा और पिताजी उस दिन से हमें पढ़ने के लिए कभी नहीं मारे। एक दिन तो वे मुझे रात भर पढ़ते देखकर हैरान हो गए। इससे मुझे और बल मिला और खूब मेहनत किया। अब मैं अपनी स्टाइल में पढ़ता था। भैया कहते भी तो उनकी बातों पर विशेष ध्यान नहीं देता। सेंटर में चोरी तो हो रही थी, लेकिन उसमें मेरा कोई दोस्त नहीं था, क्योंकि जब मैं पढ़ रहा था, तो वे लोग हमसे जूनियर थे। मैं एक भी किताब नहीं ले गया और जो जानता था, उसे लिख दिया। अच्छे मा‌र्क्स की आशा तो नहीं थी, लेकिन विश्वास जरूर था कि प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो जाऊंगा। घरवाले भी बदले-बदले नजर आए। मेरे साथ गांव के काफी स्टूडेंट्स थे। इस कारण थोड़ा तनाव में था। दो-तीन महीने पढ़ाई छोड़कर खूब घूमे। रात को कभी डर भी सताता था कि यदि प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण नहीं हुआ तो पिताजी नहीं छोड़ेंगे। रिजल्ट आने से पहले मां के बक्सा में ही दो सौ रुपये अलग करके रख दिया था कि यदि प्रथम श्रेणी से पास नहीं करूंगा, तो घर से भाग जाऊंगा। यह आभास मां को हो चुका था। इस कारण वह हमें समझा रही थी कि पिताजी इस तरह की बातें सिर्फ पढ़ने के लिए कह रहे थे। कोई भी पिता अपने बेटे को इस तरह नहीं कर सकता, लेकिन मुझे उन पर विश्वास नहीं था। इस कारण पहले से तैयार था। खैर जो भी हो, रिजल्ट निकला और मैं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो गया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, लेकिन भाई लोग इस कारण नाराज थे कि अच्छे मा‌र्क्स नहीं आए हैं। पिताजी के व्यवहार में गजब का परिवर्तन दिखा। वे काफी खुश थे कि मैं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ हूं। मामा पचास रुपये मुझे मिठाई के लिए दिए। सभी जगह मेरी इज्जत काफी बढ़ गई थी।