किसी को किसी से शिकायत का क्या हक
न मासूम रूपम थीं और न बेदाग केसरी साहब थे।
यदि रामायण की बात करें, तो सीता भी मिथिला की थीं, लेकिन हमलोग गर्व से उसका नाम लेते हैं। आप कहेंगी कि उसमें देवी शक्ति थी। इस कारण इज्जत बचाने में सफल रही। सही है, लेकिन यहां तो दूसरी बात है
किसी को किसी से शिकायत का क्या हक
न मासूम रूपम थीं और न बेदाग केसरी साहब थे। दोनों अपनी स्वार्थ सिद़ध में लगे थे। हां यह अफसोसजनक बात है कि विधायक जी को हर जवान युवतियों पर, फिर वह चाहे बेटी के तुल्य क्यों न हो, दिल आ जाता है, और आज की मॉडर्न और देश की शासन चलानेवाली औरतों का दिमाग अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए इज्ज्त को अपना बहुमूल्य और सटीक मानकर न्यौछावर करने की डिमांड बढ रही है। तभी तो निन्त्यानंद बाबा जैसे लोग सेक्स बाबा बन रहे हैं। मुझे लगता है कि यदि कोई एक सही हो, तो इस तरह की स्िथति नहीं आ सकती। वैसे मैं भी पूर्णयां का हूं और दैनिक जागरण में काम करते हुए भी इन दोनों के बारे में कुछ नहीं जानता। हमें दुख है कि औरत अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए केसरी जैसे विधायक से संपर्क करना चाह रही है और जहां तक पुरुष की बात है, तो जब मुन्नी अपनी बदनामी का डंका चारों तरफ फैला रही है और शीला अपनी जवानी दिखाकर ही नहीं गाकर रिझा रही है, तो पुरुष की मानसिकता पहले से अिधक खराब होना लाजिमी है। जब सीता जैसी बदन ढकाउ औरत पर रावण का दिल आ सकता है, तो आज के पुरुष शीला और मुन्नी जैसी लडकी का क्या करे।
हमें लगता है कि समाज तभी नष्ट होने से बच सकता है, जब औरत अपनी महत्वाकांक्षा कम करेंगी एवं मुन्नी और शीला बनने से बचेगी। क्योंकि यदि पुरुष के भरोसे समाज को सुधारने का दायित्व दिया जाए, तो स्वामी दयानंद, विवेकानंद जैसे कुछ लोग ही मिलेंगे। लेकिन यदि औरत मुन्नी और शीला बनने से इनकार कर दे, तो आज देशभर की मुन्नी और शीला को सिर नहीं छिपाना पडता। और दबंगई पर उतरे पुरुषों को कुचला जा सकता है। आज रावण से हमें दुश्मनी तो इसिलए है कि वे सीता जैसी नारी को अपने घर ले गया और सीता की कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी। इस कारण रावण मरने पर सभी को सुख मिला। रावण के पाप की महत्ता इसलिए और बढ गई कि सीता सही थी। कल्पना किजिए कि यदि सीता में कुछ खामी रहती तो क्या उसे सिर्फ अग्िन्परीक्षा से ही गुजरना पडता। नहीं न। औरत ही क्यों त्याग करे, यह इसलिए कि वह जननी है। बचाने के लिए किसी को तो आगे आना ही पडेगा। आप इस गलतफहमी में न रहिए कि पुरुष भी आगे आ सकता है। उसे इनमें दिलचस्पी कम रहती है।