तुलसी वहां न जाइए, जन्मभूमि के ठाम।
गुण-अवगुण चीह्ने नहीं, लेत पुरानो नाम।
कुछ दिनों पहले दिल्ली गया था। वहां अपने परिवार के साथ ही दोस्तों से मिला। एक दोस्त कई वर्षों से घर नहीं गया है। पूछा तो बताया कि सभी संबंध स्वार्थ पर अवलंबित हैं। माता पिता सभी तभी तक प्यारे होते हैं, जब तक उन्हें कुछ देते रहो। मैं यहां दिल्ली में 25 लाख का एक फ़लैट भी नहीं ले पा रहा हूं और वे वहां पर रहने के लिए हमसे पैसे की डिमांड करते हैं। मैंने कहा कि ठीक ही तो है। तुम इकलौता बेटा हो, तुम्हें मदद करनी चाहिए। वह तिलमिला उठा और मेरे हाथ से कप की प्याली छिनने लगा। फिर रूक गया यह सोचकर कि मैं उसी के घर में चाय पी रहा था। खैर मैं भी बात को बढ1ाने के चक्क्र में उससे कहा कि जननी और जन्म भूमि स्वर्ग के समान होता है। वहां की खूशबू ही लोगों का मन मो ह लेती है। इस कारण वहां अवश्य जाना चाहिए। इस पर उन्होंने तुलसीदास की उपर वाली पंक्ति सुनाई और अर्थ समझाते हुए कहा कि गांव वाले को पता ही नहीं कि मैं कितना कमाता हूं और हमारी हैसियत दिल्ली में क्या है। गांव वाले सरकारी नौकरी को ही वरीयता देते हैं और मुझे कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कमाते हो। कमाते तो घर पक्क्ी इंट का होता और मां बाप को भी काफी पैसे होते। तुमसे तो अच्छा गांव का दिनेशवा है, जो रोज मजदूरी करता है और अपने फादर का खयाल रखता है। बताओ कहां दिनेशवा चमार और कहां हम। है कहीं तुलना। इसी कारण तुलसीदास कहते हैं कि तुलसी वहां न जाइए, जन्मभूमि के ठाम। गुण-अवगुण चीह्ने नहीं, लेत पुरानो नाम। मैं इसी कारण सभी को छोड दिया। मैं सोच में पड गया कि है तो तुलसीदास का कथन, लेकिन संदर्भ कुछ और था। वे उन दो साथियों को समझा रहे थे, जो उन्हें अभी तक बच्चा और अनपढ ही समझ रहे थे। धन्य हो ऐसी पढाई का, जो अपनी सुविधा के अनुरूप शब्दों के अर्थ गढ लेते हैं।
गुण-अवगुण चीह्ने नहीं, लेत पुरानो नाम।
कुछ दिनों पहले दिल्ली गया था। वहां अपने परिवार के साथ ही दोस्तों से मिला। एक दोस्त कई वर्षों से घर नहीं गया है। पूछा तो बताया कि सभी संबंध स्वार्थ पर अवलंबित हैं। माता पिता सभी तभी तक प्यारे होते हैं, जब तक उन्हें कुछ देते रहो। मैं यहां दिल्ली में 25 लाख का एक फ़लैट भी नहीं ले पा रहा हूं और वे वहां पर रहने के लिए हमसे पैसे की डिमांड करते हैं। मैंने कहा कि ठीक ही तो है। तुम इकलौता बेटा हो, तुम्हें मदद करनी चाहिए। वह तिलमिला उठा और मेरे हाथ से कप की प्याली छिनने लगा। फिर रूक गया यह सोचकर कि मैं उसी के घर में चाय पी रहा था। खैर मैं भी बात को बढ1ाने के चक्क्र में उससे कहा कि जननी और जन्म भूमि स्वर्ग के समान होता है। वहां की खूशबू ही लोगों का मन मो ह लेती है। इस कारण वहां अवश्य जाना चाहिए। इस पर उन्होंने तुलसीदास की उपर वाली पंक्ति सुनाई और अर्थ समझाते हुए कहा कि गांव वाले को पता ही नहीं कि मैं कितना कमाता हूं और हमारी हैसियत दिल्ली में क्या है। गांव वाले सरकारी नौकरी को ही वरीयता देते हैं और मुझे कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कमाते हो। कमाते तो घर पक्क्ी इंट का होता और मां बाप को भी काफी पैसे होते। तुमसे तो अच्छा गांव का दिनेशवा है, जो रोज मजदूरी करता है और अपने फादर का खयाल रखता है। बताओ कहां दिनेशवा चमार और कहां हम। है कहीं तुलना। इसी कारण तुलसीदास कहते हैं कि तुलसी वहां न जाइए, जन्मभूमि के ठाम। गुण-अवगुण चीह्ने नहीं, लेत पुरानो नाम। मैं इसी कारण सभी को छोड दिया। मैं सोच में पड गया कि है तो तुलसीदास का कथन, लेकिन संदर्भ कुछ और था। वे उन दो साथियों को समझा रहे थे, जो उन्हें अभी तक बच्चा और अनपढ ही समझ रहे थे। धन्य हो ऐसी पढाई का, जो अपनी सुविधा के अनुरूप शब्दों के अर्थ गढ लेते हैं।