बुधवार, 9 जनवरी 2013

आचार्य चाणक्य



सिंहादेकं वकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्वायसात्पञ्च शेक्षेच्च षट् शुनस्वीणि गर्दभात्।।

          ‘‘मनुष्य को शेर से एक, बगुले से एक तथा मुर्गे से चार, कौऐ से पांच, कुत्ते से छह और गधे से तीन गुण ग्रहण करना चाहिए।’

प्रभूतं कार्यमल्पं चन्नर, कर्तुमिच्छति।सर्वारम्भेण तत्कार्य सिंहादेकं प्रचक्षते

             ‘‘बड़ा हो या छोटा कार्य उसे संपन्न करने के लिये पूरी शक्ति लगाना शेर से सीखना चाहिए।’’

इंद्रियाणि च संयम्य वकवत् पण्डितो नरः।देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्।।

             ‘‘बगुले की भांति अपनी इंद्रियों को वश मे कर देश काल अपने बल को जानकर ही अपने सारे कार्य करना चाहिए।’

‘‘प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागं च बंधुषुस्वयमाक्रम्य भुक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।।

      ‘‘ठीक समय पर जागना, सदैव युद्ध के लिये तैयार रहना, बंधुओं को अपना हिस्सा देना और आक्रामक होकर भोजन करना मुर्गे से सीखना चाहिए।

गूढमैथनचरित्वं च काले काले च संग्रहम।अप्रमत्तमविश्वासं पञ्च शेक्षेच्च वायसात्।।

               ‘‘छिपकर प्रेमालाप करना, ढीठता दिख्.ाना, नियम समय पर संग्रह करना सदा प्रमादरहित होकर जागरुक रहना तथा किसी पर विश्वास न करना ये पांच गुण कौऐ से सीखना चाहिए’’

बह्वाशी स्वल्पसंतुष्टः सुनिद्रो लघुचेतनःस्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेते श्वानतो गुणाः।।

          ‘‘बहुत खाने की शक्ति रखना, न मिलने पर भी संतुष्ट हो जाना, खूब सोना पर तनिक आहट होने पर भी जाग जाना, स्वामीभक्ति और शूरता यह छह गुण कुत्ते से सीखना चाहिए।

सुश्रान्तोऽपि वहेद् भारं शीतोष्णं न च पश्यति।संतुष्टश्चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात्।।

       ‘‘बहुत थक जाने पर भी भार उठाना, सर्दी गर्मी से बेपरवाह होन और सदा शांतिपूर्ण जीवन बिताना यह तीन गुण गधे से सीखना चाहिए।