मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

कुत्ता और आदमी का संवाद

आजकल, कुत्ते भी कई प्रकार के हो गये हैं! जर्मन, अमेरिकी और न जाने किस नस्ल और जाति के हो गये हैं! आदमी के कितने जात हैं, यह तो लगभग सबको याद हो ही गया है! इसमें नेतवा का बडा रोल हो गया है! आए दिन चुनाव में हर जाति का नया नेता बनकर आ रहा है और अपनी जाति के गरीबी का बखान कर रहा है! बिहार में ही देखिए न, मांझी कह रहा है कि हम डोम हैं, इसी कारण बिहार के सीएम से हटाया जा रहा है! उस ससुरा को आखिर में नीतिो न बैठाया था!नीतिा बोला तो हट जाता, लेकिन नहीं!समझ में नहीं आता है ई आदमी रूपी कुत्ता का कौन सा नस्ल है!लगता है बौरा गया है! अक्षय कुमार की फिल्म इंटरटेनमेंट में यही दिखाया था कि आदमी बेबफा हो सकता है, लेकिन कुत्ता हमेाा वफादार होता है! यह सही भी है! जो दो रोटी खिला देगा, उसी का हो जाता है! आदमी को देखो,उसे तो कुत्ता भी नहीं कहा जा सकता है! साला जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है!आजकल के आदमी के व्यवहार से कुत्ता भी ’ारमा जाएगा कि इसे किस जाति में रखूं! किस जाति का है, यह तो अब याद हो गया है!  मैं उनकी बातों से आचर्य में पड गया कि आदमी भी कहीं कुत्ता होता है! लेकिन उसकी बातों से आवस्त हो गया कि यह सही कह रहा है! राजनीतिक समझ देखकर लगा कि ये बडे ज्ञानी हैं! इन्हीं समझ को देखकर किसी ने सही ही कहा था कि यूपी और बिहार में धर्म और राजनीति खून में बसा हुआ है!

कुछ दिनों पहले आफिस से घर जा रहा था,तो रास्ते में देखा कि एक कूडा फेंकनेवाला और कुत्ता आपस में लड रहा था! मैं यह वाकया दूर से देख रहा था! इस कारण इस घटना के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं हो पा रही थी! जिज्ञासाव मैं उस जगह पर पहुंचा तो देखकर सोच में पड गया! मैं सोचने लगा कि आखिर इन दोनों में लडाई क्यों हो रही है! दोनों लड रहे थे! मैं वहां से निकलना ही उचित समझा और अपने काम में मन लगाने लगा,लेकिन हमेवही वाकया सामने आ जाता था! इस कारण काफी परेाान रहने लगा! जब मैं दसवीं में था, तो भिक्षुक कविता चाट रहे हैं जूठी पत्तल, कभी सडक पर अडे हुए और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं खडे हुए, पढा था! मुझे लगा कि यही हालात यहां हैं, लेकिन उसमें तो कवि ने भिक्षुक का वर्णन किया था कि कुत्ते का जो हिस्सा था, वह भिक्षुक खा रहा था! इसी कारण कुत्ता लडाई कर रहा था! यहां कुडा वाला कुत्ता का अन्न फेंक रहा था! इस कारण लडाई चल रही थी! यही सोचते सोचते मैं कब सो गया,पता नहीं चला! एकाएक भगवान आ गये और हमसे पूछ बैठे कि बोलो तुम्हें क्या वरदान चाहिए! मैंने झट से मांग लिया कि मुझे कुत्ता का लैंग्वेज समझने का वरदान दो! वे एवमस्तु कहकर चले गये! मैं उसी कुत्ता को ढुंढने लगा जो कूडावाला से लडाई किया था! दो दिनों तक परेाान रहा, वह कुत्ता नहीं मिला! एक दिन उस कूडावाला से मुलाकात हो गयी! मुझे लगा कि वह बता देगा, उस कुत्ता के बारे में! लेकिन उसने कहा कि रोज इस तरह के घटना होते रहते हैं! कभी आदमी रूपी कुत्ते से तो स्वयं कुत्ता से मिलन होता ही रहता है!अगर इन सबका लिस्ट लिखने लगूं तो कभी सुबह नहीं हो पाएगा! वैसे, जिज्ञासावा उन्होंने यह पूछा कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम किस कुत्ते की बात कर रहे हो! भाई, आजकल, कुत्ते भी कई प्रकार के हो गये हैं! जर्मन, अमेरिकी और न जाने किस नस्ल और जाति के हो गये हैं! आदमी के कितने जात हैं, यह तो लगभग सबको याद हो ही गया है! इसमें नेतवा का बडा रोल हो गया है! आए दिन चुनाव में हर जाति का नया नेता बनकर आ रहा है और अपनी जाति के गरीबी का बखान कर रहा है! बिहार में ही देखिए न, मांझी कह रहा है कि हम डोम हैं, इसी कारण बिहार के सीएम से हटाया जा रहा है! उस ससुरा को आखिर में नीतिो न बैठाया था!नीतिा बोला तो हट जाता, लेकिन नहीं!समझ में नहीं आता है ई आदमी रूपी कुत्ता का कौन सा नस्ल है!लगता है बौरा गया है! अक्षय कुमार की फिल्म इंटरटेनमेंट में यही दिखाया था कि आदमी बेबफा हो सकता है, लेकिन कुत्ता हमेाा वफादार होता है! यह सही भी है! जो दो रोटी खिला देगा, उसी का हो जाता है! आदमी को देखो,उसे तो कुत्ता भी नहीं कहा जा सकता है! साला जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है!आजकल के आदमी के व्यवहार से कुत्ता भी ’ारमा जाएगा कि इसे किस जाति में रखूं! किस जाति का है, यह तो अब याद हो गया है!  मैं उनकी बातों से आचर्य में पड गया कि आदमी भी कहीं कुत्ता होता है! लेकिन उसकी बातों से आवस्त हो गया कि यह सही कह रहा है! राजनीतिक समझ देखकर लगा कि ये बडे ज्ञानी हैं! इन्हीं समझ को देखकर किसी ने सही ही कहा था कि यूपी और बिहार में धर्म और राजनीति खून में बसा हुआ है! मैं पूछना ही चाह रहा था कि उसका रेडियो फिर से आन हो गया और आकाावाणी की तरह सामाचार वाचन करने लगा! क्या कहते हो साहब, हमारा बास कुत्ता से भी बदतर है! कुत्ता तो एक बार ही परेाान करता है और उसके बाद भूल जाता है! लेकिन आदमी रूपी कुत्ता आपको जिंदगी भर परेाान करता रहता है! आप ही बताइये न कि कूडा फेंकना कितना टफ काम है, उसपर यह बाWस हमेाा यह हिसाब लगाता है कि उसमें कितने बोदका के बोतल थे, कितने बिसलरी और कितने रम के! और कितने पाWलीथिन थे! आप ही बताइये कि दिनभर कूडा उठाने के बाद दो चार बोतल मिलता है, उस पर भी इस बाWस का नजर रहता है!साला अपना पाWलीथिन पीता है और लोगों से अपेक्षा रखता है कि वह बोदका पीए और उस बोतल को कूडा में फेंक दे! बताइये न आज का दारूबाज इतना बेबकूफ है क्या! वह पीता तो है, लेकिन बोतल उसकी बीवी संभालकर रख लेती है! सोचती है कि इससे कुछ पैसे मिल जाएंगे! महीने भर में वह दस से बीस रूपया तो कमा ही लेती है!
एक बार तो गजब हो गया सर जी! मेरे बाWस का भाई आर्मी में है! कुछ दिनों पहले वह अपने भाई का चार बोतल चूरा लिया और सबको बताने लगा कि मेरा स्टैंडर्ड बढ गया है, क्योंकि मैं पाWलीथिन नहीं पीता हूं! और एक दिन पीकर बोल रहा था कि अब हमें क्या दिक्कत है! घर में मेरी बीवी भी कमाती है! हमलोगों को भी उस दिन खूब पिलाया! हमने पूछा कि सर जी भाभी क्या करती है, तो बोला कि तुम्हें समझ में नहीं आएगा, क्योंकि वह स्वरोजगार करती है! स्वरोजगार पर पूरा डाWयलाWग दिया! सही में हमलोगों को कुछ समझ में नहीं आया! यही समझ में आया कि स्वरोजगार का मतलब खुद का रोजगार होता है! हमने पूछा कि उसकी बीवी कौन सी रोजगार करती है! भक, रोजगार का करेगी गंवारू की पत्नी!तापका से कूडावला मुझे झल्लाते हुए बोला!वही दो चार बोतल जो बेचकर पैसा कमायी थी, उसी को वह स्वरोजगार कह रहा था! इतना कमीना है कि उसका भी पैसा नहीं छोडा! पी गया साला! क्या आप इसे आदमी कहेंगे! मैं भी उसकी बातों में इतना मागूल हो गया कि भूल गया कि हमें उस कुत्ता को खोजना है! जब मैं फिर उस कुत्ता के बारे में पूछा तो बोला कि आप आधे हैं या आप भी लेते हैं! दो चार गंदी गाली मुझे दिया और चला गया! इतना ही सुन पाया कि बेकार का टाइम खा रहा है साला! अंत में हमने यही सोचा कि इससे मुंह लगाना बेहतर नहीं है! और मैं कुत्ता खोजने में व्यस्त हो गया! अपना पूरा अनुभव लगा दिया, तब कहीं कुत्ता से मुलाकात हो पायी! उनसे बातचीत का प्रमुख अंा है

 आप कहां चले गये थे! मैं आपको चार दिनों से ढूंढ रहा हूं!

 आपको हम जैसे आम कुत्तों की कैसे याद आ गयी एकाएक!बिना काम के तो आप किसी को पहचानते नहीं है और न ही बिना स्वार्थ के किसी को अपने घर में रखते हैं! पहले अपना काम बताइये कि आप मुझसे क्या चाहते हैं!भाई आजकल आप लोगों का नेचर इस तरह बदल रहा है कि नेचर को भी समझ में नहीं आता है कि माजरा क्या है!हमारे दादा बताते थे कि व्यक्ति का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता है! लेकिन आजकल दोनों बदल रहा है! डिजिटल सिग्नेचर के बावजूद रोज एक दूसरे के नाम पर घपले हो रहे हैं! जिसका सही में सिग्नेचर है,उसे भगा दिया जाता है और जो फर्जी है, उसे उसका हक मारने के लिए सबकुछ दे दिया जाता है! नेचर के बारे में कुछ कहना ही बैमानी है! अब तो अमीर घर की लडकी सुंदर कुत्ते पर भी डोरे डालने लगी है! धन्य है भारत और धन्य है भारत के लोग! जहां तक मेरा सवाल है, तो मैं चार दिनों के लिए बाहर चला गया था! इस कारण आपसे मुलाकात नहीं हो पाई! बताइये क्या काम था आपको मुझ जैसे आम कुत्ते से! वैसे यदि आप आम कुत्ता पार्टी बनाना चाहते हैं, तो मैं आपको इस मामले में काफी सहयोग कर सकता हूं! लेकिन पद और पैसे मिलेंगे, तभी यह वर्क कर पाउंगा! वैसे यह आपको आवस्त करना चाहता हूं कि यदि मैं आपके साथ जुट गया तो गली मुहल्ले के सभी कुत्ते आपके साथ हो जाएंगे!भ्ज्ञले ही सभी कुत्ते वोट न दे पाए, लेकिन रोड ’ाो में इतनी भीड रहेगी कि टीवी पर सिर्फ आप और आपकी भीड ही दिखेगी और हो सकता है कि कुछ बाजारू सर्वे आपको जीतते हुए भी बोल दे!!   

 आप आम आदमी को ओवरस्टीमेट तो नहीं कर रहे हैं
  सर जी हमलोग भी खास आदमी के पास रहते हैं! वहां आम आदमी के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है, वह रोज देखता हूं!कभी कभी तो सोच में पड जाता हूं कि आम आदमी के दिल पर क्या गुजरता होगा,जब उसे आदमी की तरह सलूक न किया जाता है! हाल ही में दिल्ली चुनाव में आम आदमी के साथ जिस तरह का सलूक किया गया, उसे देखकर तो दंग रह गया हूं! आपने देखा कि हमारे पीएम उन्हें क्या नहीं कह गए और कई केसों में फंसाने लगे! भला हो केजरीवाल का कि वह आम आदमी नहीं था! अगर वह आम आदमी होता तो न जाने कब का इतिहास बन जाता! वैसे भी हममें और आप लोगों में कोई अंतर नहीं रह गया है! सभी जगह फूट डालो और राज करो की नीति ही चल रहा है! यदि ऐसा नहीं होता तो आदमी के कहने पर कहीं एक कुत्ता दूसरे कुत्ता को काटता और भौंकता है! वही हाल आम आदमी का है! जो नेता बोलता है, वही आदमी करता है! फिर भी हम कहते हैं कि ज्ञानी मानव हैं!


मोसेरा भाई क्या होता है

मोसेरा भाई क्या होता है

अस्मित गांव में रहता था! उसके पापा टीचर थे!इस कारण उसकी परवरिा अच्छी तरीके से हुई! इकलौता बेटा होने के कारण उसकी पढाई के लिए काफी पैसे खर्च किए गए! उसकी मां भी इकलौती थी!  अस्मित जब पांच साल का था, तभी उसका एडमिान बोर्डिंग स्कूल में कर दिया गया और वह हास्टल में ही रहने लगा! होनहार की तरह वह बचपन से ही मेधावी था और मां व पिताजी का सपना साकार करने के लिए तैयार रहता था! अस्मित को पढने में डिस्टर्बेंस न हो, इसके लिए वे दोनों सभी से रिलेान तोड चुके थे!कुछ साल बाद स्कूल में पढाई अच्छी तरीके से नहीं हो रही थी! इस कारण अस्मित के पापा उन्हें घर पर ही रखने लगे और वे सारी सुविधाएं उन्हें दिए, जो उस समय उन्हें मिलनी चाहिए! एक दिन वह अपनी मां से यह पूछ बैठा कि मम्मी, मोसेरा भाई क्या होता है! उसकी मां उन्हें बताई कि मां की बहन का जो बेटा होता है, उसे ही मेासेरा भाई कहा जाता है!उत्सुकतावा बालक ने पूछा कि आपकी बहन क्यों नहीं है! मम्मी हंसने लगी और बोली कि यह सवाल नाना से पूछो!बात आई और गयी हो गई!उस दिन के बाद से अस्मित कभी भी इस तरह का प्रन अपनी मम्मी से नहीं किया! लेकिन उसकी मम्मी उस दिन से काफी परेाान रहने लगी और सोचने लगी कि यदि इसी तरह की व्यवस्था रही तो सौ साल बाद मोसेरा भाई खोजने पर भी नहीं मिलेगा! मोसेरा भाई किताब की ’ाोभा ही बढाएगा और उसे बताने वाले भी किताब पढकर बताएंगे! जैसे इस समय इंटरनेट आने से लेटर लिखना भूल गया है! 

संबंधों का मकडजाल

संबंधों का मकडजाल भी कितना भयानक होता है! अगर आप अपने रिलेटिव से बिना पैसे के प्यार से मिलते हैं, तो वे आपको इग्नोर करते हैं! इसके उलट अगर आप पैसे के साथ मिलते हैं, तो अहसास ही दूसरा होता है! इग्नोर का अहसास रूह से महसूस होता है, जबकि दूसरा अहसास बडा आदमी होने का दंभ भरता है! दोनों के अपने तर्क हैं! कोई भी गलत नहीं है और कोई सही भी नहीं है! चाल्र्स मैके का सैम्पेथी ऐसे लोग के लिए बेकार है! जिसे खाने और इलाज करने के लिए पैसे नहीं हैं, उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए, सैम्पेथी नहीं!~ इसलिए जो लोग उन्हें पैसा देते हैं, उन्हें वे सर पर बैठाते हैं! उस समय वे उनके लिए भगवान की तरह होते हैं! इस अहसास को पाने के लिए व्यक्ति कठिन मेहनत करता है और रात दिन पैसे कमाने के लिए वह सबकुछ करता है, जो उन्हें नहीं करना चाहिए! पैसे के लिए संबंधों का बलिदान भी उनके लिए संभव है! आचर्य तब होता है, जब आदमी पैसा कमाने के लिए अपने मां बाप को भी छोड देता है और जब काफी पैसे हो जाते हैं, उन्हें उनका बेटा छोड देता है! क्या बिना संबंध तोडे यह संभव नहीं है! आधुनिकता के इस युग में ’ाायद संभव नहीं है! यदि ऐसा होता तो बडे लोग इस तरह की हरकतें नहीं करते! जबकि एक रिटायर्ड अधिकारी को, जिनके सभी बच्चे विदेा में हैं और उन्हें उनके बच्चे अपनी हाल पर मरने के लिए छोड दिए हैं, उन्हें पैसा नहीं, सैम्पेथी चाहिए! एक पैसे के लिए परेाान हैं, तो दूसरा सैम्पेथी के लिए! दोनों यहीं हैं, लेकिन जरूरतमंद लोगों से दूर! कुछ ऐसे खुानसीब हैं, जिसे दोनों मिलता है, लेकिन उनकी उम बहुत कम होती है! इसी मकडजाल में न जाने कब जिंदगी की ’ााम हो जाए, पता नहीं चलता है.........