सोमवार, 27 अगस्त 2012

होके मायूस न आंगन से उखाड़ो पौधे, धूप बरसी है तो बारिश भी यहीं पर होगी।


मिल ही जाएगी ढूंढने वाले को बहार,
हर गुलिस्तां में खिजां हो यह जरूरी नहीं।

-'इकबाल'

1. खिजां - पतझड़ की ऋतु 'इकबाल' 

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मेरे दिले-मायूस में क्यों कर न हो उम्मीद,
मुरझाए हुए फूलों में क्या बू नहीं होती।

-'अख्तर' अंसारी

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मेरे दोस्तों की दिलआजारियों में,
मेरी बेहतरी की कोई बात होगी।

-अब्दुल हमीद 'अदम'

1.दिलआजारी- कोई ऐसी बात कहना या करना, जिससे किसी का दिल दुखे, सताना, कष्ट देना 
हजार बर्क गिरें, लाख आंधियां उठें,
वह फूल खिल के रहेंगे, जो खिलने वाले हैं।
-'साहिर' लुधियानवी

1.बर्क - बिजली
होके मायूस न आंगन से उखाड़ो पौधे,
धूप बरसी है तो बारिश भी यहीं पर होगी।

उसके दामन में अगर शब हैं, सितारे भी तो हैं,


अदा परियों की, सूरत हूर की, आंखें गिजालों की,
गरज माँगे कि हर इक चीज हैं इन हुस्न वालों की।

-हाफिज जौनपुरी

1.हूर - स्वर्ग में रहने वाली सुन्दर स्त्री, स्वर्गांगन 2. गिजाल - हिरण का बच्चा, मृगशावक

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अदा निगाहों से होता है फर्जे-गोयाई,
जुबां की हद से जब शौके-बयां गुजरता है।

1 फर्जे-गोयाई- बात कहने का फ़र
ज़

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अश्क बनकर आई हैं वह इल्तिजाएं चश्म तक,
जिनको कहने के लिए होठों पै गोयाई नहीं।

-आनन्द नारायण मुल्ला
 
1.इल्तिजाएं - प्रार्थनाएं, दरखास्त
2.चश्म - आँख, नेत्र 3.गोयाई - बोलने की ताकत

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असर न पूछिए साकी की मस्त आंखों का,
यह देखिये कि कोई होशमंद बाकी है।
-हफीज जौनपुरी

उम्मीद वक्त का सबसे बड़ा सहारा है,
गर हौसला है तो हर मौज में किनारा है।

-'साहिर' लुधियानवी
इक नई बुनियाद डालेंगे तजस्सुम की 'शफा'
हर गुबारे-कारवां में कारवाँ ढूढ़ेंगे हम।
-'शफा' ग्वालियरी 

1. तजस्सुम - खोज, तलाश।



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उसके दामन में अगर शब हैं, सितारे भी तो हैं,
गर्दिशे-अफलाक से मायूस होना छोड़ दे।

1.गर्दिशे-अफलाक - दैवी प्रकोप, आसमान से आने वाली मुसीबत

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एक हैं दोनों, यास हो कि उम्मीद,
एक तड़पाए, एक बहलाए।
-तमकीन सरमस्

1.यास - निराशा, नाउम्मेदी

कांटों पर अगर चलना ही पड़े,
मायूस न हो जाना राही,
जब फूल हों दिल के दामन में,
फिर क्या है जो इन्सां कर न सके।

खिजां अब आयेगी तो आयेगी ढलकर बहारों में,
कुछ इस अन्दाज से नज्मे-गुलिस्तां कर रहा हूँ मैं।
-'शफक' टौंकी

1.खिजां - पतझड़ की ऋतु 2. नज्म - प्रबन्ध, व्यवस्था 

जो गम हद से जियादा हो, खुशी नजदीक होती है,
चमकते हैं सितारे रात जब तारीक होती है।

-'अपसर' मेरठी

1.तारीक - अंधेरी
दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।
-फैज अहमद 'फैज'
नई सुबह पर नजर है मगर आह यह भी डर है,
यह सहर भी रफ्ता-रफ्त कहीं शाम तक न पहुंचे।

-शकील बंदायुनी
1.सहर - सुबह, प्रातः 2.रफ्ता-रफ्त - अहिस्ता-अहिस्ता, धीरे -धीरे