रविवार, 27 अक्टूबर 2013

आखिर गलती कहां हुई


यदि तुम नहीं बदलोगे, तो पीछे रह जाओगे. क्योंकि हर कोई उसी के साथ चलना चाहता है, जो खुद दौड़ना चाहता है. यह शब्द आचार्य जी के थे. वे पहले भी गांव में रहते थे और अब भी रह रहे हैं. स्कूल में हमलोंगों को गणित पढ़ाते थे. उन्हें दो बेटा और एक बेटी है. रिटायर्ड कर चुके हैं और अब उनके पास समय ही समय है बतियाने के लिए. इस बार घर गया था तो उनसे बात करने का अवसर मिला. मिलकर काफी खुश हुए. जब वे अपनी बारे में बताने लगो तो मेरा कलेजा मुंह को आ गया. मैं परेशान हो गया उनकी बातों पर. समझ में नहीं आ रहा था कि इतने प्रगतिशील और आधुनिक विचार रखनेवाले आचार्य जी की हाल भी ऐसी हो सकती है. सच कहूं तो इलाके भर में उनकी तूती बोलती है. उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई बच्चे को पढ़ाने में लगा दिये. बच्चे को पढ़ाने के लिये वे सभी से रिश्ता तोड़ लिये. वे हमेशा अपने बच्चे को यही शिक्षा देते थे कि तुम तीनों तभी एक साथ चल सकते हो, जब तीनो एक दूसरे को आगे बढ़ाने में सहयोग करोगे. उनकी इस बात को तीनों बच्चे गांठ बांध लिये और पढ़ाई में हमेशा अच्छा रहे. सामाजिक रिश्ता उनके लिये महत्वपूर्ण नहीं था. पढ़ाई ही महत्वपूर्ण थे. कहते हैं न कि खुदा देता है, तो छप्पड़ फाड़के देता है, वही आचार्य जी के साथ हुआ. उनका तीनों बच्च सेटल हो गया और दो बच्चा इंजीनियर और एक बेटी डॉक्टर बन गयी. समाज में आचार्य जी का रुतबा और हैसियत एकाएक बढ़ गया. अब उनके तीनों बच्चे विदेश में रह रहे हैं. रिटायर्ड के बाद वे भी बच्चे के साथ रहनेवाले थे. लेकिन एकाएक दो महीने में ही गांव आ गये और कभी भी विदेश नहीं जाने का मन भी बना लिये हैं. अब उन्हें पछतावा हो रहा है अपने किए पर. उन्हें यह दुख है कि वे अपने बच्चे के भविष्य के लिये सबको छोड़ दिये और उन्हें काबिल भी बनाया. लेकिन दुख है कि उनका बच्च उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. आचार्य जी बोले कि जब मैं अमेरिका अपने बेटा के पास गया तो वहां रहने लगा. वहां का लाइफस्टाइल अलग है और वहां लोग भी.  मेरी पत्नी की तबियत खराब हो गयी. उसे डॉक्टर के पास दिखाना था. एक दिन वह डॉक्टर के पास ले गया. सुधार न होने पर मैं उसे किसी और डॉक्टर के पास दिखाने की सलाह दे डाली. इस पर वह काफी गुस्सा हो गया और बोला कि आप अपना केयर खुद करिये. आप लोगों को कोई उंगली पकड़कर नहीं चला सकता है. आपने ही कहा था कि यदि कोई साथ चल सकता है, तो चले अन्यथा उसे छोड़कर आगे बढ़ना ही समझदारी है. आप हमारे साथ नहीं चल सकते हैं. इस कारण बेहतर होगा कि आप यहां से चले जाएं और मुङो आगे बढ़ने में सहयोग करें. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा डॉयलॉग मेरे बच्चे मुझ पर इस तरह प्रयोग करेंगे. बच्चों को पढ़ाने के सिलसिले में मैं सभी रिश्ते तोड़ दिये. अब उन लोगों के साथ कोई संबध नहीं रहा. अब कोशिश कर रहा हूं तो वे लोग अवसरवादी कहकर संबंध तोड़ रहे हैं. वे अपनी जगह सही है, लेकिन मैं खुद को समझा नहीं पा रहा हूं कि मेरी गलती कहां हुई.

ब्रेकिंग न्यूज है

दस वर्ष दिल्ली में नौकरी करने के बाद पटना नौकरी करने के लिए आया. संयोग से दुर्गा पूजा में दो दिनों के लिए छुट्टी मिली. सुबह से फैलिन का कहर जारी था. इस कारण बीवी का बीपी लो था. ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है कि उसका बीपी नॉर्मल हो. बहुत खुश था कि इस बार मेले में जो पैसा चूना लगना था, वह बच गया. अभी तक कमरा भी नहीं मिला है. साले के यहां सभी फैमिली एक महीने से डेरा जमाए हुए हैं. डर लग रहा है कि वे गेट पर यह बोर्ड न लगा दे कि अतिथि कब भागोगे. बगल में प्रोफेसर कॉलोनी हैं, जहां किसी न किसी बात पर हर दिन वाद-विवाद होता रहता है. सोचा कि वहां बात भी हो जायेगी और रूम भी मिल जाएगा. वे सभी रिटायर्ड कर चुके हैं. इस कारण करेंट न्यूज पर पकड़ हमसे ज्यादा उनको रहता है. अखबार का एक कोना भी वे पढ़ने से नहीं छोड़ते हैं. टीवी इसलिए नहीं देख पाते हैं कि बीवी और पतौहू सीरियल देखने के लिए कहती है तो पोता काटरून देखने की जिद करने लगता है. न्यूज सुनने की आदत किसी को नहीं है. वे उसे बकवास समझते हैं. इस कारण वे लोग अखबार पढ़ते हैं. संयोग से उस दिन मैं भी उनके पास पहुंच गया. वे लोग मजाक के मूड में थे. समझ सकते हें कि अगर रिटायर्ड  प्रोफेसर मजाक मूड में हो, तो कितने घातक होते हैं. मुङो देखकर सभी काफी खुश हुए. मुङो लगा कि जैसे मां दुर्गा का चढ़ावा मैं ही हूं. मुङो अंदर से अहसास हो गया कि आज दुर्गा मां के लिए बलि मैं ही चढ़नेवाला हूं. आओ पत्रकार साब आओ. आपकी कमी थी. क्या हाल है तुम्हारे फैलिन का. ब्रेकिंग न्यूज तो उड़ीसा में आने की थी, कई रिपोर्टर दस दिन पहले से वहां भौंक रहे हैं.  लेकिन बिहार में किसी का पता नहीं है. कम से कम उड़ीसा वाले तो दो दिन पहले ही दशहरा मना लिए. लेकिन हम बिहारवाले तो कहीं के नहीं रहे. न खुदा ही मिला और न बिसाले सनम. लगता है कि यहां आने की खबर तूफान ने नहीं दिया होगा. यह कहकर सभी ठहाका लगाने लगे. खराब लगा, गुस्सा भी आया लेकिन फिर अपने को ऑल इज वेल कहकर कंट्रोल किया. एक प्रोफेसर ने पूछा कि ये बताओ पत्रकार क्या है, उसका शाब्दिक अर्थ क्या है. मैं बोला कि ये क्या बेहूदा सवाल है. ये भी कोई बताने की बात है. यह तो गली मुहल्ला का कुत्ता भी जानता है. मैं तैश में आकर कहा.  वे बोले कि गुस्सा मत होओ. तुमने सही कहा कि आधी रात को जब तुम आते हो, तो गली मुहल्ले के कुत्ते ही जगे रहते हैं. इस कारण वे तुम्हारे बारे में अच्छी तरह से जानते हैं. और तुमलोगों  को मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई में यह बताया जाता है कि अगर कुत्ता आदमी  को काट ले, तो कोई खबर नहीं है, लेकिन अगर आदमी कुत्ता को काट ले, तो बहुत बड़ी खबर होती है. सही कहा न पत्रकार साब. मैं उनकी बातों पर कुछ भी नहीं बोल सका.  वे बोले कि हमलोग सिर्फ अपनी जानकारी बढ़ाना चाहते हैं. एक हिंदी के प्रोफेसर थे. वे बोले कि भाई हिंदी में इसका अर्थ तो कहीं से भी लिखने पढ़ने से नहीं लगता है. पत्रकार का यदि अर्थ निकालें तो पत्र का मतलब चिट्रठी है, जो अब टेलीग्राम के बाद इतिहास बननेवाला है. अब कोई भी लेटर वेटर नहीं लिखता है. एक समय था कि पत्र में प्रेमिका अपनी वह बात भी लिख देती थी, जो वह अपने प्रेमी के सामने नहीं बोल पाती थी. प्रेमी एक पत्र को प्रमाण मानकर आजीवन कुंवारा रह जाता था. अपना सबकुछ उसे दे देता था. लेकिन अब ईमेल का जमाना है, फेसबुक है. एक सेंकेंड में दोस्ती होती है और टूट भी जाती है. शक्ल भी नहीं देखा गया होता है. सरकारी कार्यालय में भी अब इंटरनेट से सब कुछ हो रहा है. आज यदि इंटरनेट नहीं होता तो प्रधानमंत्री पर जो कोयला घोटाले के स्टेटस रिपोर्ट पर छेड़छाड़ की बात सामने आई है, वो कभी नहीं आती. लेटर ही गुम कर दिए जाते. लेकिन अब कंप्यूटर पर दूसरी जगह भी सेव रहता है. पत्र के बाद आता है कार. कार भी नहीं है तुम्हारे पास. अगर तुम्हारे पास कार हो, तो आधा पत्रकार कहा जा सकता है. इसलिए भाई हम अपने किरायेदारों से सबसे पहले पूछते हैं कि तुम पत्रकार तो  नहीं हो. यदि वह पत्रकार होता है, तो उसे मकान किराया पर नहीं देता हूं. एक तो निशाचर की तरह रात में काम करता है और दिन भर सोया रहता है. दस मिनट बात करने भी जाओ या कुछ काम हो, तो घर से जवाब मिलता है कि चार बजे रात को सोए हैं, उठेंगे तो बता दूंगी.  अगर कहीं जाने की इच्छा भी होती है तो न उनके पास बहुत सारे पैसे होते हैं और नहीं कार होता है कि कहीं जा भी सकूं. ऐसे किरायादार रखने से क्या फायदा.  तुम किस टाइप के पत्रकार हो भाई. यह सुनकार सभी जोर से हंसने लगे और मैं उनकी तरफ सिर्फ देखता रहा. सोचा कि रिटायरमेंट के बाद लोग ऐसे ही सठियाता है. इसके साथ ही यह भी समझ में आया कि पटना में पत्रकार को क्यों नहीं रूम दिया जाता है.    

सोने से सोना मिलता है

जब से शोभन सरकार को सोने का सपना आया है, उस दिन से हम काफी परेशान चल रहे हैं. कई सपने देख रहे हैं लेकिन सोने का सपना नहीं देख रहे हैं. दस साल की नौकरी करने के बाद भी एक किलो सोना तक नहीं खरीद पाया हूं. बचपन से एमए तक अमीर बनने के लिए कई किताबें पढ़ीं, लेकिन कमबख्त एक किताब में भी ऐसी तरकीब नही थी, जिससे अमीर बन सकें. जब किताब पढ़कर सो जाते थे, तो रात को सपने में कई बार अमीर बने लेकिन नींद खुलते ही मार पड़ने लगती थी. उस समय पटना कॅलेजिएट के हॉस्टल में रहता था. हॉस्टल का वार्डन काफी खरूस था, वे हमेशा पढ़ने के लिए कहते थे. सोए हुए स्टूडेंट्स का शिकार करना उनकी आदत में शुमार था. वे हमेशा कहा करते थे कि सोने से कोई फायदा नहीं है. मूर्ख लोग सोते हैं और विद्वान लोग पढाई करते हैं. मैं उनकी बातों में आ गया और सोना छोड़कर पढाई करने लगा. सोचा कि सोने के लिए तो जिंदगी है. एक बार सफल आदमी बन जाउं, जिंदगी भर सोता रहूंगा. जब से शोभन सरकार के बारे में सुना हूं, तब से वार्डन के साथ ही उन लोगों पर गुस्सा आ रहा है, जिन्होंने हमें सोने नहीं दिया. गलती से पत्रकार बन गया हूं, जिसे रात को सोना नसीब नहीं है और दिन को इतना उजाला रहता है कि ठीक से सो नहीं पाता हूं. आखिर सोने में भी तो डिवोशन चाहिए, तभी सोना मिलेगा न. यानी कि सौ फीसदी प्रदर्शन के बल पर ही कामयाब बन सकते हैं. वैसे भी पत्रकार का काम सपना देखना नहीं, सपना बेचना होता है. लोगों का डेली कैरियर बनाता हूं, लेकिन अपना नहीं.  हर एग्जाम  की तैयारी के बारे में जानकारी है. लेकिन एक भी परीक्षा पास नहीं कर पाया हूं. अंत में गृहस्थी की परीक्षा भी पास नहीं कर पा रहा हूं. किसी तरह घर की जमीन बेचकर बेटे को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रहा हूं.  जो कुछ भी पढ़ाई के दौरान हमने नहीं पढ़ी, वे सभी बुक हमने बच्चे को पढ़ा दिया है. इतने कष्ट के बाद भी संतोष इसलिए कर रहा था कि वृक्ष कभी नहीं फल खाता है, नदी नहीं पानी पीती है और साधु कभी भी अपनी भलाई नहीं सोचता है. लेकिन जब से आशाराम बापू और निर्मल बाबा, बाबा रामदेव की संपत्ति के बारे में पता चला है, तब से  बैचेन हो गया और पटना में एक साधु के पास पहुंच गया. वे काफी बिजी चल रहे थे. हालांकि आज से दस वर्ष पहले जब मैं पटना आया था, तो वे मक्खी मारते थे. अब उनका पेशा बदल गया है, अब वे कई तरह के शिकार समय समय पर करने लगे हैं. उन्होंने बताया कि आज वही आगे रह सकता है, जो साम, दाम, दंड, भेद अपनाता  है. अपनी सफलता के बारे में वे बोले कि मैं कभी आंखों से शिकार करता हूं, तो कभी बातों से, कभी लातों से. साधु और संत को जब तक देश में पूजनीय माना जाएगा, तब तक आशाराम बापू और निर्मल बाबा धरती पर आते रहेंगे और सभी युवक- युवतियों पर कृपा करते रहेंगे. भले ही मीडिया इसे यौन शोषण कहे लेकिन बीजेपी की शाइनिंग इंडिया की तरह यह शोषण शब्द भी भविष्य में इतिहास बन जाएगा. ऐसा हम साधु का श्रप है. वैसे भी आजकल बाबा को बदनाम मीडिया कर रहा है, जबकि खुद वह बेइमान है.  हाल ही में जी मीडिया के संपादक के बारे में सुना था, उसका कैरियर खत्म हो गया है, लेकिन वह मालिक का आदमी था. इस कारण फिर से नौकरी कर रहा है. नाम अलग से कमाया है. आज मीडिया इंडस्ट्री में उन्हें सब रखना चाहता है. लेकिन तुम जैसे पत्रकार को आईबीएन 7 ने एक साथ निकाल दिया. सभी खुद को अपडेट नहीं कर पाए. उन्हें इससे भी कम वेतन पर किसी तरह नौकरी मिली है. अगर वे कुछ काम नहीं करके सिर्फ सोते तो हो सकता था कि जो सपना शोभन सरकार को सोने का आया, वह उन्हें भी आता. मैने टोकते हुए कहा कि सभी को सोना का सपना कैसे आ सकता है? बाबा गुस्सा गए और बोले कि तुम्हें भारतीय इतिहास की जानकारी नहीं है, नहीं तो तुम ऐसी बातें नहीं बोलते. अरे तुमने नहीं सुना है कि प्राचीन काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. अब ग्लोबल वार्मिग के कारण चिड़िया तो खत्म हो गए हैं, लेकिन उनकी अस्थी जमीन के अंदर सोना उगल रहा है. इस कारण भारत भर में सोने की खान मौजूद  है. वैसे भी अंग्रेजी में कहावत है कि पैसा से पैसा बनता है, उसी तरह उसी तरह अब हिंदी कहावत बनेगी कि सोने से सोना मिलता है. जिस तरह अभी सुन रहे हैं कि आसाराम बापू का भविष्य खत्म हो गया, लालू का राजनीतिक जीवन खत्म हो गया, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होनेवाला है. ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि उन्होंने खुद को जमाने के अनुरूप ढाला है और लोगों के पैसे से अपना पैसा स्विस बैंक में जमा किया है. उसके पास इतने पैसे हैं कि उसका सात खानदान बैठकर खाएगा. भारत में यह प्राचीन काल से चला आ रहा है कि एक की कुर्बानी से उसका परिवार ऐश करता है. यदि ऐसा नहीं होता तो गांधी परिवार अभी तक राज नहीं करता. अगर आसाराम बापू को जेल हो ही गया तो वे कृष्ण की तरह अमर हो जाएंगे. अंतर सिर्फ यह होगा कि कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था और आसाराम बापू अब जेल गए हैं. कृष्ण भगवान खुद को अपडेट नहीं कर पाए  लेकिन उनका नेक्स्ट जेनरेशन आसाराम उनसे आगे निकला और उसका बेटा उससे भी आगे यानी देश से बाहर. तुम्हें भी सही में पत्रकार बनना है, तो जी मीडिया वाले पत्रकार की तरह सोचो. अगर यह नहीं कर सकते तो सिर्फ सोओ. हो सकता है कि सपने में सोना आ जाए.