यदि तुम नहीं बदलोगे, तो पीछे रह जाओगे. क्योंकि हर कोई उसी के साथ चलना चाहता है, जो खुद दौड़ना चाहता है. यह शब्द आचार्य जी के थे. वे पहले भी गांव में रहते थे और अब भी रह रहे हैं. स्कूल में हमलोंगों को गणित पढ़ाते थे. उन्हें दो बेटा और एक बेटी है. रिटायर्ड कर चुके हैं और अब उनके पास समय ही समय है बतियाने के लिए. इस बार घर गया था तो उनसे बात करने का अवसर मिला. मिलकर काफी खुश हुए. जब वे अपनी बारे में बताने लगो तो मेरा कलेजा मुंह को आ गया. मैं परेशान हो गया उनकी बातों पर. समझ में नहीं आ रहा था कि इतने प्रगतिशील और आधुनिक विचार रखनेवाले आचार्य जी की हाल भी ऐसी हो सकती है. सच कहूं तो इलाके भर में उनकी तूती बोलती है. उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई बच्चे को पढ़ाने में लगा दिये. बच्चे को पढ़ाने के लिये वे सभी से रिश्ता तोड़ लिये. वे हमेशा अपने बच्चे को यही शिक्षा देते थे कि तुम तीनों तभी एक साथ चल सकते हो, जब तीनो एक दूसरे को आगे बढ़ाने में सहयोग करोगे. उनकी इस बात को तीनों बच्चे गांठ बांध लिये और पढ़ाई में हमेशा अच्छा रहे. सामाजिक रिश्ता उनके लिये महत्वपूर्ण नहीं था. पढ़ाई ही महत्वपूर्ण थे. कहते हैं न कि खुदा देता है, तो छप्पड़ फाड़के देता है, वही आचार्य जी के साथ हुआ. उनका तीनों बच्च सेटल हो गया और दो बच्चा इंजीनियर और एक बेटी डॉक्टर बन गयी. समाज में आचार्य जी का रुतबा और हैसियत एकाएक बढ़ गया. अब उनके तीनों बच्चे विदेश में रह रहे हैं. रिटायर्ड के बाद वे भी बच्चे के साथ रहनेवाले थे. लेकिन एकाएक दो महीने में ही गांव आ गये और कभी भी विदेश नहीं जाने का मन भी बना लिये हैं. अब उन्हें पछतावा हो रहा है अपने किए पर. उन्हें यह दुख है कि वे अपने बच्चे के भविष्य के लिये सबको छोड़ दिये और उन्हें काबिल भी बनाया. लेकिन दुख है कि उनका बच्च उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. आचार्य जी बोले कि जब मैं अमेरिका अपने बेटा के पास गया तो वहां रहने लगा. वहां का लाइफस्टाइल अलग है और वहां लोग भी. मेरी पत्नी की तबियत खराब हो गयी. उसे डॉक्टर के पास दिखाना था. एक दिन वह डॉक्टर के पास ले गया. सुधार न होने पर मैं उसे किसी और डॉक्टर के पास दिखाने की सलाह दे डाली. इस पर वह काफी गुस्सा हो गया और बोला कि आप अपना केयर खुद करिये. आप लोगों को कोई उंगली पकड़कर नहीं चला सकता है. आपने ही कहा था कि यदि कोई साथ चल सकता है, तो चले अन्यथा उसे छोड़कर आगे बढ़ना ही समझदारी है. आप हमारे साथ नहीं चल सकते हैं. इस कारण बेहतर होगा कि आप यहां से चले जाएं और मुङो आगे बढ़ने में सहयोग करें. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा डॉयलॉग मेरे बच्चे मुझ पर इस तरह प्रयोग करेंगे. बच्चों को पढ़ाने के सिलसिले में मैं सभी रिश्ते तोड़ दिये. अब उन लोगों के साथ कोई संबध नहीं रहा. अब कोशिश कर रहा हूं तो वे लोग अवसरवादी कहकर संबंध तोड़ रहे हैं. वे अपनी जगह सही है, लेकिन मैं खुद को समझा नहीं पा रहा हूं कि मेरी गलती कहां हुई.
रविवार, 27 अक्टूबर 2013
आखिर गलती कहां हुई
यदि तुम नहीं बदलोगे, तो पीछे रह जाओगे. क्योंकि हर कोई उसी के साथ चलना चाहता है, जो खुद दौड़ना चाहता है. यह शब्द आचार्य जी के थे. वे पहले भी गांव में रहते थे और अब भी रह रहे हैं. स्कूल में हमलोंगों को गणित पढ़ाते थे. उन्हें दो बेटा और एक बेटी है. रिटायर्ड कर चुके हैं और अब उनके पास समय ही समय है बतियाने के लिए. इस बार घर गया था तो उनसे बात करने का अवसर मिला. मिलकर काफी खुश हुए. जब वे अपनी बारे में बताने लगो तो मेरा कलेजा मुंह को आ गया. मैं परेशान हो गया उनकी बातों पर. समझ में नहीं आ रहा था कि इतने प्रगतिशील और आधुनिक विचार रखनेवाले आचार्य जी की हाल भी ऐसी हो सकती है. सच कहूं तो इलाके भर में उनकी तूती बोलती है. उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई बच्चे को पढ़ाने में लगा दिये. बच्चे को पढ़ाने के लिये वे सभी से रिश्ता तोड़ लिये. वे हमेशा अपने बच्चे को यही शिक्षा देते थे कि तुम तीनों तभी एक साथ चल सकते हो, जब तीनो एक दूसरे को आगे बढ़ाने में सहयोग करोगे. उनकी इस बात को तीनों बच्चे गांठ बांध लिये और पढ़ाई में हमेशा अच्छा रहे. सामाजिक रिश्ता उनके लिये महत्वपूर्ण नहीं था. पढ़ाई ही महत्वपूर्ण थे. कहते हैं न कि खुदा देता है, तो छप्पड़ फाड़के देता है, वही आचार्य जी के साथ हुआ. उनका तीनों बच्च सेटल हो गया और दो बच्चा इंजीनियर और एक बेटी डॉक्टर बन गयी. समाज में आचार्य जी का रुतबा और हैसियत एकाएक बढ़ गया. अब उनके तीनों बच्चे विदेश में रह रहे हैं. रिटायर्ड के बाद वे भी बच्चे के साथ रहनेवाले थे. लेकिन एकाएक दो महीने में ही गांव आ गये और कभी भी विदेश नहीं जाने का मन भी बना लिये हैं. अब उन्हें पछतावा हो रहा है अपने किए पर. उन्हें यह दुख है कि वे अपने बच्चे के भविष्य के लिये सबको छोड़ दिये और उन्हें काबिल भी बनाया. लेकिन दुख है कि उनका बच्च उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. आचार्य जी बोले कि जब मैं अमेरिका अपने बेटा के पास गया तो वहां रहने लगा. वहां का लाइफस्टाइल अलग है और वहां लोग भी. मेरी पत्नी की तबियत खराब हो गयी. उसे डॉक्टर के पास दिखाना था. एक दिन वह डॉक्टर के पास ले गया. सुधार न होने पर मैं उसे किसी और डॉक्टर के पास दिखाने की सलाह दे डाली. इस पर वह काफी गुस्सा हो गया और बोला कि आप अपना केयर खुद करिये. आप लोगों को कोई उंगली पकड़कर नहीं चला सकता है. आपने ही कहा था कि यदि कोई साथ चल सकता है, तो चले अन्यथा उसे छोड़कर आगे बढ़ना ही समझदारी है. आप हमारे साथ नहीं चल सकते हैं. इस कारण बेहतर होगा कि आप यहां से चले जाएं और मुङो आगे बढ़ने में सहयोग करें. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा डॉयलॉग मेरे बच्चे मुझ पर इस तरह प्रयोग करेंगे. बच्चों को पढ़ाने के सिलसिले में मैं सभी रिश्ते तोड़ दिये. अब उन लोगों के साथ कोई संबध नहीं रहा. अब कोशिश कर रहा हूं तो वे लोग अवसरवादी कहकर संबंध तोड़ रहे हैं. वे अपनी जगह सही है, लेकिन मैं खुद को समझा नहीं पा रहा हूं कि मेरी गलती कहां हुई.
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