रविवार, 27 दिसंबर 2009

मन का रेडियो खुलने दे जरा

लोगों ने कहा फेंक दो बैसाखी
लोगों ने कहा फेंक दो इस बैसाखी को
शोभा नहीं देती है तुम्हें इस वक्त।
मैं परेशान हो गया अपने आप से
क्योंकि मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था उस वक्त।
अगर मैं बैसाखी के साथ खड़ा होता हूं
तो मेरे नंबर कट सकते हैं।
यदि खड़ा नहीं होता हूं,
तो बैसाखी के साथ न्याय नहीं करता हूं।
दरअसल, उस समय आईआईएमसी में प्रशिक्षण के दौरान एंकरिंग कर रहा था
अंतत: मैं बैसाखी के साथ ही खड़ा रहा
यह सोचकर कि यही बैसाखी ने हमें यहां तक पहुंचाया है।
लोगों के सम्मुख पहचान दिलाई है।
इस तरह नहीं छोड़ सकता इन्हें
क्योंकि मेरी पहचान बैसाखी से है।
इसके बिना कोई अस्तित्व नहीं
क्योंकि लोग मुझे बैसाखी के कारण ही विकलांग कहते हैं।
बैसाखी देखकर ही प्रतिभा का आकलन कर लेते हैं।
सरकार भी नौकरी देते समय बैसाखी देखती हैं।
यदि यह मेरे साथ नहीं रहेगी, तो मैं जी नहीं पाऊंगा।
भले ही मुझे कम नंबर मिले।

आप चाहे जिस नजर से देखिए
जब मैं गया पार्टी में,
लोग परेशान थे मुझे देखकर
मैं भी परेशान था इन्हें देखकर
कि क्यों ये देखते हैं मुझे इस तरह?
मैंने पार्टी के आसपास नजर दौडाई,
कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
मुझे देखकर भी न देखने का अभिनय कर रहे थे वे लोग।
एकांत में जाकर सोचने लगा कि क्यों ये देखते हैं मुझे इस तरह?
दिमाग पर काफी जोर लगाया, तो बचपन की यादें ताजा हो गई।
लेकिन वह नजारा कुछ और था
उस समय मेरी प्रशंसा हो रही थी।
पापा ने तो यही बताया था।
आज हालात वही हैं लेकिन यहां पापा नहीं हैं।
पापा होते तो मन की उलझनें सुलझ पातीं?
शायद नहीं
क्योंकि अब पहचानता हूं लोगों की नजर
परख सकता हूं दूसरे की भावनाओं को।
फिर क्यों न परख सकता इन्हें
क्यों आती है पापा की याद।
जबकि वे इस दुनिया में नहीं हैं।
इसलिए कि पापा गलत होते हुए भी सही थे
वे वक्त की नजाकत को पहचानते थे।
इसलिए वे आज नहीं हैं,
क्योंकि उन्हें पता था कि बहुत दिनों तक नहीं ठग सकता इन्हें।
वे छोड़ गए हमें अपनी नजरों से लोगों को देखने के लिए।
अब समझने में देर नहीं लगी
आखिर इन्हीं नजरों को देखकर तो बड़ा हुआ हूं।
लोग हमें नहीं, हमारी बैसाखी को देख रहे थे।
अब इसमें नहीं उलझना चाहता कि वे हीन या दया की भावना से देख रहे थे

मैं आपसे यह भी नहीं कहूंगा कि आप किस नजर से देखते हैं?
आपकी नजर है, चाहे जिस नजर से देखिए।

2 टिप्‍पणियां:

विवेक भटनागर ने कहा…

विजय जी, ब्लागिंग की दुनिया में आपका स्वागत है। आपकी यह रचना बहुत अच्छी है। आपके सीधे-सादे भावों में गजब का असर है।

sunil ने कहा…

झा साहब...आप तो हम सबके लिए एक जीवंत आदर्श हैं। हमलोग तो हमेशा से आप से प्रेरणा ग्रहण करते हैं। आपके जैसे सच्चे मित्र पाकर ही जीवन संपूर्ण बनता है। हम धन्य हैं कि आपका साथ हमें मिला है।