बुधवार, 30 दिसंबर 2009

मैं भी आंखें रखता हूं।

कल काफी परेशान हो गया। क्योंकि एक वरिष्ठ मित्र कमाने का फंडा बता रहे थे। वे काफी वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनका कहना था कि आज के युग में यदि गांधी की तरह सत्यवादी रहोगे, तो कभी भी अमीर नहीं बन पाओगे। यदि अमीर बनना है, तो गलत रास्ते अपनाना ही होगा। कुछ समय के लिए मैं भी उनके प्रलोभन में आ गया। लेकिन बाद में हिम्मत नहीं हुई और ईमानदारी से दो रोटी खाना ही बेहतर समझा। वे मुझे कायर कहते हैं, जो रिस्क नहीं ले सकता। क्या इसे ही रिस्क लेना कहते हैं?यदि अमीर बनने का फंडा यही है, तो भाई हमें अमीर नहीं बनना है। यदि आप हमें कायर कहते हैं, तो भी चलेगा। क्योंकि इस निर्णय के बाद न जाने हम कायर कहलाने पर भी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। तुम भी मेरी तरह कायर बनोगे या बहादुर, यह तो आपका मामला है। लेकिन निर्णय लेते समय आत्मा की आवाज अवश्य सुनना। इससे फायदा यह होगा कि आप खुद के डिसिजन पर गौरवान्वित महसूस करेंगे। किसी शायर की पंक्ति में संशोधन करते हुए आप यह कह सकते हैं कि

मैं धीरे:धीरे चलता हूं
आधी रोटी खाता हूं।
सच कहने से डरता हूं।
लेकिन सच ही करता हूं।
मैं तेरा देखा क्यूं मानूं
मैं भी आंखें रखता हूं।

3 टिप्‍पणियां:

KK Mishra of Manhan ने कहा…

बहुत खूब भाई

संगीता पुरी ने कहा…

इस नए ब्‍लॉग के साथ नए वर्ष में हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. अच्‍छा लिखते हैं आप .. आपके और आपके परिवार वालों के लिए नववर्ष मंगलमय हो !!

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें