रविवार, 20 फ़रवरी 2011

मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले

बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से

हमारे फन की बदौलत हमें तलाश करे
मजा तो जब है कि शोहरत हमें तलाश करे

तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो


कभी दिमाग, कभी दिल, कभी जिगर में रहो
ये सब तुम्हारे ही घर हैं, किसी भी घर में रहो


मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले
मिट्टी को किसी ताजमहल में नहीं रखा
मिल रहा था भीख में, सिक्का मुझे सम्मान का
मैं नहीं तैयार था, झुक कर उठाने के लिए

आज हम दोनों को फुरसत है, चलो इश्क करें
इश्क दोनों की जरूरत है, चलो इश्क करें
इसमें नुकसान का खतरा ही नहीं रहता है
ये मुनाफ़े की तिजारत है, चलो इश्क करें
आप हिन्दू, मैं मुसलमाँ, ये ईसाई, वो सिख
यार छोड़ो ये सियासत है, चलो इश्क करें

अंगुलियां यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो
जिन्दगी क्या है, खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नीम की पत्तियाँ चबाया करो
चाँद-सूरज कहाँ, अपनी मंजिल कहाँ
ऐसे वैसों को, मुँह न लगाया करो
बीमार को मरज की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ, पिला देनी चाहिए

जुल्फ घटा बनके लहराए, आँख कँवल हो जाए
शायर तुझको पल भर सोचे और ग़ज़ल हो जाए

मैं उसकी आँखों से छलकी शराब पीता हूँ
गरीब होकर भी महँगी शराब पीता हूँ
जब सायादार थे, जमाने के काम आए
जब सूखने लगे, जलाने के काम आए
कितने खुदगर्ज हैं ऊँचे मकानों के मकीं
अहले फुटपाथ का सूरज भी छुपा लेते हैं
इस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ बीच में आने से कट गया
उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है
कोई भी जहर को मीठा नहीं बताता है
कल अपने आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
ये देख कर पतंगें भी हैरान हो गईं
अब तो छतें भी हिन्दू-मुसलमान हो गईं

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