शुक्रवार, 10 जून 2011

हुक्म मेरे आका

कायनात कहेगी, हुक्म मेरे आका
संजय खाती


जिंदगी में जोश भरने वाली किताबों का जैसा चलन हाल के बरसों में दिखा है, वह लाजवाब है। पुराने जमाने में हमारी मदद के लिए सिर्फ धर्म होता था। हालांकि डेल कार्नेगी, स्वेट मार्डेन और विन्सेंट पील की किताबों से लोगों ने अपनी जिंदगी को पॉजिटिव मोड़ देने की कोशिश शुरू कर दी थी, लेकिन इस ट्रेंड ने जोर तब पकड़ा, जब वेस्टर्न स्टाइल यहां भी आम होने लगी। यंग प्रफेशनल्स के लिए धार्मिक प्रवचन उतने आसान और नजदीक नहीं थे। वे मॉडर्न स्टाइल में जो प्रेरणाएं चाहते थे, वे उन्हें इन किताबों में मिलीं। आज चिकन सूप फॉर सोल जैसी किताबों का बिजनेस करोड़ों डॉलर का है। बहरहाल, इस कैटिगरी की सबसे पॉपुलर या फिर विवादित किताब अलकेमिस्ट रही। ओम शांति ओम फिल्म में शाहरुख के डायलॉग के बाद हमारे यहां कई लोगों का ध्यान इसकी ओर गया, लेकिन तब तक यह पूरी दुनिया में फेमस हो चुकी थी। अलकेमिस्ट की थीम या मेसेज है - अगर आप किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहते हैं, तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने की तैयारी में जुट जाती है। अलकेमिस्ट के कुछ बरस बाद एक और किताब आई - द सीक्रेट। इसमें बताया गया है कि दुनिया में एक ऐसा रहस्य है, जिसे सदियों से दबाया जाता रहा, लेकिन हर महान शख्स को इसका पता था। द सीक्रेट इस सबसे बड़े राज को हम सबके लिए खोलने का दावा करती है और वह राज है : आप अपनी दुनिया खुद बनाते हैं। सब कुछ वैसे ही होगा, जैसा आप चाहेंगे, इसलिए वह सब कुदरत से मांगिए, जिसकी आपको चाहत है - पैसा, शोहरत और प्यार, कुछ भी।
अलकेमिस्ट और द सीक्रेट की थीम एक ही है - कायनात आपके हुक्म का पालन करती है, बस आपको हुक्म देना आना चाहिए। अलकेमिस्ट में यह बात वैसे भड़काऊ तरीके से नहीं कही गई, जैसे द सीक्रेट में, लेकिन ये दोनों किताबें मोटिवेशन और सेल्फ हेल्प की तमाम बिरादरी से अलग हो जाती हैं, क्योंकि ये सीधे-सीधे खुशी की गारंटी देने लगती हैं।
मैंने अलकेमिस्ट पढ़ी और द सीक्रेट पर बनी एक फिल्म देखी। सोचने की बीमारी वाले तमाम लोगों की तरह मेरे मन में भी यह खयाल आया - क्या ऐसा मुमकिन है? क्या महज सोचने भर से कोई भी ख्वाहिश पूरी हो सकती है? क्या दुनियावी तौर पर कामयाब हो जाना इतना आसान है? क्या हमारे हाथ अलादीन का चिराग लग गया है?
क्या ये किताबें महज शोशेबाजी हैं या फिर इनके लेखकों को सचमुच में खुदा का पैगाम सुनने का मौका मिला है? मैंने इन किताबों के कट्टर प्रशंसकों की बातें सुनी हैं। मैंने कई कॉरपोरेट लीडर्स को इन्हें अपनी रीडिंग लिस्ट में गिनाते पाया है। क्या इन किताबों ने अपनी लफ्फाजी से उन लोगों को बेवकूफ बना लिया है?
क्या कुदरत को हु्क्म देने के इस फॉर्म्युले की साइंटिफिक जांच मुमकिन है? इन किताबों का यह दावा मुझे सही लगता है कि सारी कायनात एक सिस्टम में बंधी हुई है। हम और सब कुछ दरअसल एक हैं, इसलिए हमारे विचार कुदरत से रिएक्शन कर सकते हैं और काफी हद तक उस पर असर भी डाल सकते हैं। लेकिन यह असर हमारी बड़ी-से-बड़ी कल्पना को सच में बदलने के लिए घटनाओं को मोड़ने की ताकत रखता है, यह बड़ा सवाल है।



क्या कुदरत की चेतना होने के नाते हमें यह पावर हासिल है, इस सवाल का जवाब मुझे नहीं मिलता। और जब मैं यह देखता हूं कि किसी चमत्कारिक ईश्वर को बीच में न लाते हुए भी इन किताबों ने तमाम संदेहों से परे चले जाने की जो शर्त रखी है, वह इन्हें धर्म के बराबर पहुंचा देती है -जरा भी संदेह रखा तो कुछ हासिल नहीं होगा, यानी अगर आपकी ख्वाहिश पूरी नहीं हुई तो हमारे फॉर्म्युले में नहीं, आपकी निष्ठा में ही कोई खोट रहा होगा।



यह एक ट्रिकी बात है, जो इन किताबों के दावों को साइंटिफिक जांच से परे कर देती है। लेकिन जब मैं यह सोच रहा था, तभी अचानक मुझे हकीकत की झलक मिल गई।



अलकेमिस्ट और द सीक्रेट महज इसलिए हिट नहीं हैं कि वे आपकी ख्वाहिश पूरी करने की गारंटी देती हैं, वे इसलिए इतनी पॉपुलर हैं कि वे आपको इसका सपना देखने की ताकत देती हैं। वे हमें जिंदगी में पॉजिटिव को अपनाना सिखाती हैं। उजाले को देखो, यह तमाम लोग कहते हैं, लेकिन ये किताबें इस उजाले को हमारे स्वार्थ का हिस्सा बनाकर उसे देखने और लंबे अरसे तक देखते रहने की आदत डाल देती हैं।

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