रविवार, 14 अगस्त 2011
द ओल्ड मैन एण्ड द सी
मैं अंग्रेजी उपन्यास नहीं पढता हूं, क्योंकि उसे समझने के लिए अतिरिक्त उर्जा खपानी पडती है। लेकिन यह उपन्यास पढने से नहीं बच पाया। इसकी भी रोचक घटना है। 15 अगस्त पर दैनिक जागरण जोश के लिए स्टोरी लखि रहा था, कि उसी में हेमिग्वे का कोट था।इंटरनेट से पता किया तो वे लेखक के रूप में जाना। उसी समय बॉस ने इसके बारे में बताया और ओल्ड मैन एंड सी का नाम बताया। फिर क्या था, लग गया उसे पढने के लिए। आज खुश हूं कि इसके बारे में कुछ लखि पा रहा हूं।
नोबेल पुरस्कार विजेता उपन्यासकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे की विश्वविख्यात कृति ‘द ओल्ड ऐण्ड द सी’ काफी रोचक और दिल को दहलानेवाली है। हेमिंग्वे को सन् 1954 में इसी उपन्यास पर साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था। सात वर्ष बाद सन् 1961 में हेमिंग्वे ने स्वयं को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी। हेमिंग्वे के पिता ने भी आत्महत्या की थी, तब उन्होंने अपने पिता को पलायनवादी कहा था। यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि जिस लेखक ने अपने पिता की हत्या की आलोचना की एवं ‘द ओल्ड मैन एण्ड द सी’ के नायक संतियागो का जीवन-दर्शन था कि मनुष्य ध्वस्त हो सकता है परन्तु पराजित नहीं, उस लेखक ने अपने पिता के ही पिस्टल से आत्महत्या कर ली क्योंकि जिन शर्तों के साथ वह जीना चाहता था, उनके साथ जी नहीं सका। बूढ़ा मछुआरा संतियागो एक बड़ी मछली पकड़ने के लिए लगातार चैरासी दिनों तक समुद्र में जाता है और बिना मछली पकड़े वापस आ जाता है। उपन्यास में संतियागो की रोमांचक कथा है। उपन्यास की कथावस्तु के गठन में अर्नेस्ट हेमिंग्वे काफी सतर्क रहे हैं। वे अपनी बात सीधी भाषा में बिना वाग्जाल के कहने में माहिर हैं। बूढ़े मछुआरे की रोमांचक कथा मनुष्य की जिजीविषा एवं जीवन जीने की जद्दोजहद की कथा है। मछुआरा बूढ़ा, दुबला-पतला, मरियल एवं विपन्न है। चैरासी दिनों तक वह एक बड़ी मछली पकड़ने का स्वप्न लेकर समुद्र में दूर-दूर तक जाता है। चालीस दिनों तक एक छोटा लड़का उसके साथ नाव में जाता है, वह बूढ़े अनुभवी मछुआरे से मछली मारने का हुनर सीखना चाहता है। लेकिन, बूढ़े मछुआरे की लगातार असफलता से बच्चे के माता-पिता उसे भाग्यहीन करार देते हैं फिर भी लड़का बूढ़े के प्रति अगाध श्रद्धा रखता है और समुद्र से लौटने पर बूढ़े के खाने-पीने की व्यवस्था में लग जाता है। चालीस दिनों के पश्चात बूढ़ा मछुआरा समुद्र में अकेले नाव लेकर जाता है। अगले चैवालिस दिनों तक बूढ़े को बड़ी मछली पकड़ने में सफलता नहीं मिलती है। पचासिवां दिन वह पुनः अपना भाग्य आजमाने नौका लेकर अकेले निकल पड़ता है। ‘द ओल्ड मैन एण्ड द सी’ में इसी पचासिवें दिन के अभियान की रोमांचक कथा का वर्णन है। बूढ़ा भाग्यवादी नहीं है। वह जीवन के प्रत्येक दिन को एक नये जीवन के रूप में आरंभ करता है। वह जीवन में सदा सटीक होना चाहता है। जीवन के विषय में बूढ़े का दर्शन सचमुच प्रेरणादायक है। उसका कहना है कि अगर कोई भाग्यवादी है तो भाग्य साथ दे, इसके लिए भी मनुष्य को पहले से तैयार रहना चाहिए। जो जीवन में सफल होना चाहते हैं उन्हें मछुआरे की तरह समुद्र में मछली मारते समय, की उसकी एकाग्रता से प्रेरणा लेनी चाहिए। मछली मारना बूढ़े मछुआरे का जन्मना पेशा है। जिन्दगी में अन्य पेशा अख्तियार करने का उसके पास विकल्प नहीं है। बूढ़े के आत्मालाप का उपन्यासकार ने जीवंत वर्णन किया है। पचासी दिनों के पश्चात एक विशाल मछली बूढ़े की बंसी में फंस जाती है। मछली विशाल है, जब तक थक नहीं जाती है तब तक बूढ़ा बंसी की डोर खींच नहीं सकता। पूरी रात मछली समुद्र तट में तैरती रही। उसने न अपना मार्ग बदला न दिशा। बूढ़े मछुआरे को रात के अकेलेपन में सहयोगी लड़के की याद आती है। भूख भी लगती है। ताकत के लिए उसे टुना मछली का कच्चा मांस खाना पड़ता है। वह सोचता है कि बुढ़ापे में अकेला नहीं रहना चाहिए। लेकिन वह विवश है। बुढ़ापे में आजीविका के लिए अकेले उस समुद्र में जाना पड़ता है। शायद यह अमेरिकी समाज में बूढ़े व्यक्तियों के आत्मसंघर्ष का ही रूपक है। बूढ़ा यथार्थवादी है, वह समझता है कि जीवन में ऐसी स्थितियों से बचना संभव नहीं है। अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने अमेरिकी जीवन स्थितियों का वर्णन किया है। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में बूढ़ों का जीवन कम कठिन नहीं रह गया हैं बूढ़े मछुआरे का महात्मय के विषय में कल्पना एवं अंत संवाद विलक्षण एवं मोहक हैं। उपन्यासकार दिखाता है कि एक ओर महामत्स्य का जीवन है जो मनुष्य के जाल-फंदों एवं कपट से दूर समुद्र की स्याह अटल गहराइयों में निरापद महसूस करता हैं दूसरी ओर बूढ़ा मछुआरा मनुष्य है जो आजीविका की तलाश में समुद्र में जाता है और बड़ी मछली को खोजता है। दोनों के सामने कोई विकल्प नहीं है। दोनों को अपने अस्तित्व के लिए एक-दूसरे के खिलाफ लड़ना है। बूढ़ा मछुआरा थक कर चूर है। उसका अनुमान है कि फंसी हुई मछली आधा दिन और एक रात के पश्चात एक और दिन में थक जायेगी और वह अपने शिकार पर पूर्ण विजय पा लेगा। उसके बायें हाथ की अंगुलियां थककर अकड़ गयी है। उसे उम्मीद है कि काफी धूप मिलने से या बोनिटो के कच्चा मांस खाने से अंगुलियों की अकड़न खत्म हो जायेगी। यहां बूढ़े मछुआरे की मनःस्थिति के थकने की प्रतीक्षा कर रहा है। शीघ्र ही दूसरी रात आनेवाली है। वह पशु-पक्षी समुदाय से मानव जीवन की तुलना करता है। छत्तीस घंटे तक बूढ़ा जगा रहा। वह भूखा था। डाल्फिन की दो पट्टियां खाकर उसने भूख शांत की। धीरे-धीरे महामत्स्य थक गई। बूढ़े का संघर्ष जारी रहा। मछली काफी थक चुकी थी। उसका प्रतिरोध समाप्त हो चुका था। अब वह डोरी के खिंचाव के अनुसार दिशा बदल रही थी। मछली थक कर नौका से सटकर तैरने लगी। बूढ़े मछुवारे के लिए शिकार करने का अनुकूल अवसर था। नौका में रखे बरछी से बूढ़े ने विशाल मछली के पंजर में प्रहार किया। मछली पूरी ताकत से सतह के ऊपर उछली और धड़ाम से जल में गिर गयी। बूढ़े मछुआरे ने मछली को नौका में बांध दिया। बरछी के घाव से मछली के कलेजे का रक्त समुद्र के जल में फैल गया। बूढ़ा मछली के साथ तट की ओर लौट रहा था। रक्त की गंध पाकर विशालकाय शार्क मछलियां नौका की ओर आकर्षित होने लगी। पहली शार्क मछली का चालीस पाउंड मांस काट कर ले गयी। शार्क के साथ बूढ़े मछुआरे के संघर्ष का रोमांचक एवं अविस्मरणीय वर्णन उपन्यास में है। ऐसा जैसे युद्ध का आंखों देखा हाल का वर्णन हो। ऐसे अद्भुत संघर्ष का वर्णन अर्नेस्ट हेमिंग्वे जैसा उपन्यासकार ही कर सकता था। अंत तक बूढ़ा मछुआरा शार्क को मार गिराता है, पर तब तक शिकार मछली काफी क्षतिग्रस्त हो चुकी है। मरते-मरते शार्क मछुआरे की बरछी अपने सिर में लेती गयी। बूढ़ा हथियारविहीन हो गया। मनुष्य जीवन के संघर्ष में शायद ऐसे ही निहत्था हो जाता है। ऐसे विकट काल में बूढ़ा मछुआरा असीम धैर्य एवं मानसिक संतुलन का परिचय देता है। उसने सोचा कि मनुष्य पराजय के लिए नहीं बना है। मनुष्य ध्वस्त हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं। और कई शार्कों ने आक्रमण जारी रखा। इन आक्रमणों के बीच बूढ़ा मछुआरा लगातार तट की ओर नौका के साथ बढ़ता रहा। अंत में वह शार्कों के साथ मुगदर से लड़ता है। मुगदर भी हाथ से छूट कर समुद्र में समा जाता है। तट पर पहुंचते-पहुंचते सुबह हो गयी। वह तट पर शिकार मछली के कंकाल के साथ पहुंचता है, कंकाल की लम्बाई अठारह फीट थी। अंत में बूढ़े संतियागो एवं बालक मनोलिन के बीच कारूणिक बातचीत है। मनोलिन बूढ़े को समझता है कि उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। उपन्यासकार हेमिंग्वे कर्मवाद की महान शिक्षा देते हैं। मनोलिन इस घटना के बाद अपने विषय में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता है, परिवारवालों की परवाह नहीं करता, उसे बूढ़े मछुआरे से बहुत कुछ सीखना है। वह अगले दिन से मछली मारने समुद्र में बूढ़े के साथ जायेगा।
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5 टिप्पणियां:
Bhut bdhiya novel hai achhha lga pdh kr thnks sir jee
Great novel.
is my favorite novel,,,,,it,s a great work,,,,
Great novel sir
बेहतरीन
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