मुश्किल है शादी का फैसला
क्या वाकई युवाओं के लिए विवाह का निर्णय लेना मुश्किल हो रहा है? दिल्ली स्थित एक पी.आर. कंपनी से जुडी गौरी कहती हैं, मैं 24 की हूं। मेरा मानना है कि पहले करियर जरूरी है। शादी से डर यह है कि ससुराल में एडजस्ट कर पाऊंगी कि नहीं। अरेंज मैरिज नहीं करूंगी। वैसे मेरे पुरुष मित्र भी हैं, मगर अभी तक कोई ऐसा नहीं मिला, जिस पर भरोसा कर सकूं। देहरादून में मेडिकल छात्रा 19 वर्षीय नताशा के विचार अलग हैं। कहती हैं, एक उम्र के बाद भावनात्मक साझेदारी जरूरी है। मैं अभी इतनी परिपक्व नहीं हूं कि फैसले खुद ले सकूं। इसलिए शादी का फैसला मम्मी-पापा पर छोडूंगी। करियर तो जरूरी है। मैं नहीं समझती कि युवा शादी या कमिटमेंट से बचते हैं। करियर के चलते शादी में देरी जरूर होती है। शादी को लेकर लडकों के भय अलग तरह के हैं। दिल्ली में एक कॉल सेंटर में कार्यरत रोहित अपनी पीडा बयान करते हैं, मम्मी-पापा ने मेरे लिए लडकी पसंद की। चट मंगनी पट ब्याह वाली बात हो गई। मंगेतर की जिद थी कि अपने लिए वह खुद खरीदारी करेगी। मैंने उसकी बात मानी, अब पछता रहा हूं। मेरा पूरा बजट बिगड गया। उसे समझाया, लेकिन वह नहीं समझी। मेरी जिम्मेदारियां बहुत हैं। शादी के बाद भी उसका यही स्वभाव रहा तो कैसे निभा पाऊंगा। पुणे स्थित मल्टीनेशनल कंपनी के 25 वर्षीय कंप्यूटर इंजीनियर अंकित का कहना है कि उन्हें कंपनी तीन वर्ष के लिए यू.एस. भेज रही है, जिसमें शर्त है कि इस दौरान वह शादी नहीं कर सकेंगे। कहते हैं, शादी का फैसला माता-पिता ही लें तो बेहतर है। मैं ऐसी लडकी से शादी नहीं करना चाहता, जो मेरे घरवालों के साथ न निभा सके। पैरेंट्स ही बहू चुनेंगे तो बाद में मुश्किल नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता के.जैन कहती हैं, मैंने शादी नहीं की है, लेकिन 50 की उम्र में कमी खलती है। शादी न करने का बडा नुकसान यह है कि भावनात्मक साझेदारी नहीं हो पाती। बहन-भाई या मित्र सभी अपने घर-परिवार में व्यस्त हैं। शाम को घर लौटने पर घर खाली लगता है। बिजली, फोन, गैस जैसे तमाम बिल खुद भरने पडते हैं। अकेले महानगरों में जीवनयापन वाकई मुश्किल है। अभिनेत्री प्राची देसाई की मां अमिता का कहना है कि आज युवाओं के पास मनचाहा करियर है, लेकिन मनचाही जिंदगी नहीं है। कहती हैं, मेरी बेटी प्राची ग्लैमर वर्ल्ड में है। वह मेरी हर बात मानती है, फिर भी मैं अपने विचार उस पर नहीं थोप सकती। माता-पिता के साथ मेरे भी मतभेद होते थे, पर वह समय अलग था। नई पीढी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है। शादी अब कमिटमेंट से ज्यादा कंपेनियनशिप है। प्राची का करियर ऐसा है कि शादी से बाधा हो सकती है। यदि वह 30 की उम्र में यह फैसला ले तो आश्चर्य नहीं होगा। मैंने दोनों बेटियों प्राची, ईशा के साथ नौकरी की। पति अकसर बाहर रहते थे। प्राची पंचगनी में पढती थी, घर पर मैं अकेले मैनेज करती थी। मेरी बेटियां भी सब संभाल सकेंगी, कहना मुश्किल है।
करियर है प्राथमिकता
एक ग्लोबल स्वीडिश सर्वे बताता है कि भारतीय युवा की प्राथमिकता सूची में काम, करियर और उच्च जीवन स्तर सर्वोपरि है। भारतीय समाज की धुरी है परिवार, लेकिन आज का युवा परिवार व बच्चे की चाह से दूर जा रहा है। कई लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि शादी से इतर भी जिंदगी है। ये यूरोपीय युवाओं की तुलना में करियर को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। यह सर्वे एशिया सहित यूरोप व उत्तरी अमेरिका के17 देशों में 16 से 35 वर्ष की आयु के बीच किया गया था। इसके अनुसार 17 फीसदी जापानी व 27 प्रतिशत जर्मन जहां अपनी निजी जिंदगी व काम से खुश हैं, वहीं50 फीसदी से भी ज्यादा भारतीय युवा जिंदगी व करियर से खुश हैं। सर्वे कम से कम यह तो दर्शाता है कि देर से शादी बडी चिंता का विषय नहीं है।
रिश्ते बदलाव के दौर में
हाल ही में डॉ. शेफाली संध्या की पुस्तक लव विल फॉलो : ह्वाई द इंडियन मैरिज इज बर्रि्नग आई है। यह भारत व विदेशों में रहने वाले दंपतियों पर 12 वर्र्षो के शोध के बाद लिखी गई है। इसके मुताबिक 25 से 39 वर्ष की आयु वाले भारतीय जोडों में तलाक के केस बढे हैं। 80-85 फीसदी मामलों में यह पहल स्त्रियां कर रही हैं। 94 फीसदी मध्यवर्गीय युगल मानते हैं कि वे शादी से खुश हैं, लेकिन ज्यादातर का कहना है कि दोबारा मौका मिले तो वे मौजूदा साथी से शादी नहीं करेंगे। एक तिहाई भारतीय सेक्स लाइफ से संतुष्ट नहीं हैं। दिल्ली की वरिष्ठ मैरिज काउंसलर डॉ. वसंता आर. पत्री कहती हैं, सामाजिक मूल्य बदले हैं तो वैवाहिक रिश्ते भी बदले हैं। तलाक भी इसलिए बढे हैं, क्योंकि लडकियां आत्मनिर्भर हैं। पहले शादियां इसलिए चलती थीं कि लोगों के पास कोई विकल्प नहीं था। खामोशी से सब कुछ सहन करने वाली पीढी अब नहीं है।
विवाह आउटडेटेड नहीं
इसमें कई तरह की समस्याएं हैं, फिर भी मैं विवाह संस्था का समर्थन करता हूं, तब तक करता रहूंगा, जब तक कि इससे बेहतर कुछ और नहीं मिल जाता। आप क्या सोचते हैं। जहां तक मेरा अनुभव कहता है कि विवाह सभी को करनी चाहिए। इस संबंध में शिशिर का कहना है कि शादी तभी करनी चाहिए, जब कमाई अच्छी हो। कमाई की भी अलग परिभाषा है इनके पास। ये कहते हैं कि आज के युवा का बेसिक नीड मोबाइल, लेपटॉप है, लेकिन हमारे पिता के समय यह जरूरी नहीं थी। यही अंतर हो जाता है आज पैरेंट़स के साथ तालमेल बनाने में। आज अगर आप इस तरह के बेसिक नीड को पूरा नहीं कर पाएंगे, तो आपकी शादी सफल नहीं हो सकती है।
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