आज सभी लोग परेशान हैं, क्योंकि लोगों के पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। किसी पास पैसे नहीं हैं, तो किसी के पास समय नहीं है। तभी तो किसी गीतकार ने लिखा है कि कभी किसी को मुकद़र जहां नहीं मिलता, किसी को जमीं तो किसी को आसमा नहीं मिलता। यह सब जानते हुए भी हम विवेकशील प्राणी इन दोनों को एक साथ पाना चाहते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि हम परेशान हो जाते हैं। कानपुर में मरे एक काबिल दोस्त समय का रोना लेकर रोज आते हैं ऑपिफस और अपना गुस्सा सहयोगियों पर उतारते हैं। उनके पास अतिरिक्त काम करने के लिए समय नहीं है, लेकिन अगर दूसरे को कुछ अतिरिक्त जिम्म्ेदारी मिल जाए तो परेशान हो जाते हैं। समझ में नहीं आता उनकी परेशानी को। मैं जब भी देखता हूं वह फेसबुक पर बैठकर तीन चार घंटे यूं ही जाया कर देते हैं, लेकिन काम करने के लिए समय नहीं है उनके पास। सिर्फ परेशान होने के लिए उनके पास काफी समय है। यह तो एक उदाहरण भर है। सच्चाई तो यह है कि सृष्टि बनाने वाले ने जीवन को कुछ ऐसा बनाया था कि वह अपनी राह खुद आगे बनाता जाए। यही वजह है कि तमाम युद्धों, महामारियों,प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद मनुष्य ने अपने समाज को और अधिक संपन्न और व्यापक किया है। मगर कुछ है, जो सृष्टिकर्ता की मंशा को भी पराजित कर दे रहा है। इनमें से एक है शहरी जीवन का तनाव। मुंबई, दिल्ली, चेन्नै और बेंगलुरु जैसे शहरों में तनाव इस कदर बढ़ गया है कि वहां रोज आत्महत्याएं हो रही हैं। नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं कि अकेले इन चारों शहरों में 35 बड़े शहरों की कुल आत्महत्याओं में से 43 पर्सेंट आत्महत्याएं होती हैं। यह बहुत अजीब है। सिर्फ शहर में ही क्यों, खुदकुशी का कहीं भी आत्महत्या होना असंतुलन को दिखाता है। बाहरी असंतुलन पर हमारा कोई जोर नहीं, मगर सवाल यह है कि हम भीतरी संतुलन को क्यों गड़बड़ाने देते हैं। एक दोस्त मेरे पास आए और बोले कि मैं जिंदगी से परेशान हो गया हूं। इस कारण आत्महत्या करने जा रहा हूं। मैने कुछ नहीं कहा तो वे गुस्सा गए और बोले तुम भी उन्ळीं लोगों के साथ हो। मैंने उन्हें समझाया कि सिर्फ मरने से यदि समस्या का समाधान हो जाता तो रोज लाखों में लोग मरते। परेशानी आदमी खुद लाता है। अगर अपेक्षा कम कर दी जाए तो परेशानी अपने आप भाग जाती है। किसी ने सही ही कहा कि अब तो ये घबरा के कहते हैं कि मर जाएंगे। मरकर भी चैन नहीं पाया तो कहां जाएंगे। यदि बैचैन आत्मा है, तो उसे शांति कहीं नहीं मिल सकती है। अगर आप गांव में रहे होंगे तो आप भी मेरी बातों को सही मानेंगे। वहां तो मैं अक्सर सुनता था कि फलां जीवित भी काफी बदमाश था और मरने के बाद भी भूत बनकर काफी परेशान कर रहा है। उस समय मैं इन बातों पर अधिक ध्यान न देता था, क्यों कि ये बात हमें पच नहीं पा रही थी। लेकिन अब उन बातों से सीख लेकर अपनी जिंदगी को पटरी पर दौडा रहा हूं। एक घर खरीदा हूं। छोटी है, लेकिन काफी खुश हूं। लेकिन पत्नी दुखी रहती है। अब उनकी बात है। मैं क्या कर सकता हूं। लेकिन मेरे पास इस समय काफी समय है। इस कारण ब्लॉग लिख रहा हूं और काफी दिनों तक जिंदा रहने के लिए कुछ पैसे जमा कर रहा हूं।
1 टिप्पणी:
झा जी आप तो छा गए। ऐसे ही लिखते रहिए और हमेशा खुश रहिए...
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