गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

जर्नलिस्ट की व्यथा

बचपन से ही जर्नलिस्ट बनने का षौक था लेकिन अखबार में काम करते ही कब षाॅक में बदल गया, पता ही नहीं चला! जब इसके बारे मेें सच्ची जानकारी मिली तो आगे बढने का सपना ही टूट गया! उस दिन से हर दिन घुट घुटकर जी रहा था और लगभग 13 साल सच्चे और ईमानदार जर्नलिस्ट की तरह अखबार मालिकों की सेवा करता रहा!यह सोचकर कि साल में एक बार पैसे तो कुछ बढेंगे!

बचपन से ही जर्नलिस्ट बनने का षौक था लेकिन अखबार में काम करते ही कब षाॅक में बदल गया, पता ही नहीं चला! जब इसके बारे मेें सच्ची जानकारी मिली तो आगे बढने का सपना ही टूट गया! उस दिन से हर दिन घुट घुटकर जी रहा था और लगभग 13 साल सच्चे और ईमानदार जर्नलिस्ट की तरह अखबार मालिकों की सेवा करता रहा!यह सोचकर कि साल में एक बार पैसे तो कुछ बढेंगे! यह अलग बात है कि महंगाई एक साल में इससे कई गुणा बढ जाती थी! लेकिन कोई विकल्प भी नहीं था मेरे पास! इस मामले में अन्य दोस्तों से कुछ अलग मिजाज का था, जो हमेें खास तो बनाता था, लेकिन सैलरी के मामले में दोस्तों से काफी पीछे भी धकेलता था! कभी सपने मेें भी नहीं सोचा था कि खास बनकर भी दोस्तों से सैलरी के मामले में इतना पिछडूंगा! लेकिन सच्चाई यही थी! अंदर से काफी असुरक्षित हो गया और जिन दोस्तों से बेडरूम की बातें भी षेयर करते थे, उन्हें सैलरी के मामले में गोल मटोल जवाब देने लगा!

हालात ने हलाल किया

ऐसी बात नहीं कि मैं जान बूझकर ऐसा कर रहा था! इसमेें बदलते हालात ने उत्प्रेरक का काम किया और मैं रासायनिक बंधन की तरह इससे चिपकता चला गया! हुआ यूं कि जब हम सभी दोस्तों ने आइआइएमसी पास किया तो उस समय बहुत सारे दोस्त बहुत ही मेधावी और मेहनती थे! मैं उसके सामने अपने को कमतर आंकता था! यही कारण है कि वे लोग नौकरी के लिए चार महीने पहले से जुट गये थे और मैं बेखबर होकर सो रहा था! यह भी बात नहीं थी कि मैं आर्थिक रूप से संपन्न था! पिताजी मरने ही वाले थे, क्योंकि उनका दोनों ही किडनी खराब था! भैया पैसे भेजते थे, जिसपर भाभी की टेढी नजर हमेषा लगी रहती थी! इसके अतिरिक्त सबसे बडा फैक्टर यह था कि जिसके साथ मैं चार साल तक रूमेट रहा और जो रिलेषन में भंाजा लगता था!उस समय उसकी नौकरी हो गयी थी और अगर मैं नौकरी ज्वाइन नहीं करता तो सोषल स्टेटस को धक्का लगना लाजिमी था! लेकिन बचपन से एक आदत रही है कि आषावाद की अपेक्षा नैराष्यवाद हम पर अधिक प्रभावी रहा है! एक तरह से कहें तो मेरा जीवन दीपक की तरह रहा है! जिस तरह दीपक विपरीत हालात में भी जलना जारी रखता है, उसी तरह आर्थिक और षारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद कभी भी हिम्मत नहीं हारा और हमेषा कही न कहीं रास्ता निकलता ही गया! जर्नलिस्ट बनकर पता चला कि स्वाभिमान षब्द मीडिया संस्थानों के लिए नहीं बने हैं! सपने देखना जर्नलिस्ट का काम नहीं रहा है और लोगों के सामने रोना भी जर्नलिस्ट के लिए नहीं है! क्योंकि यही इनका मुख्य वर्क होता है! दूसरे के दुखों को अपने से जोडकर लिखना ही सच्चे जर्नलिस्ट की निषानी है! अगर वे सुखी रहेंगे तो अपनी लेखनी जड तक नहीं पहुंचा पाएंगे! और कोई भी जर्नलिस्ट पैसा कमाने के लिए काम करता है! उसके लिए देष हित, समाज हित और परिवार हित कोई मायने नहीं रखता है! यही कारण है कि हर जर्नलिस्ट को ये तीनों चीजें कभी भी नसीब नहीं होती है और वे इनमें से सभी के जानकार होते हैं! यह एक कटू सत्य है! बेचारे कम से कम 12 घंटे आॅफिस में समय बिताते हैं और वहां से आने के बाद आर्थिक हालात को सुधारने में लगा देते हैं! कुछ जर्नलिस्ट भाग्यषाली होते हैं कि उन्हें पैसा खूब मिलता है लेकिन उनके पास समय का घोर अभाव होता है! वे मानसिक दिवालियेपन का षिकार हो जाते हैं! मेरे बहुत सारे दोस्त हैं, जो कापफी पैसा कमाते हैं और अपार्टमेंट मेें रहते हैं! कार भी है उनके पास और बच्चे पब्लिक स्कूलों में पढते हैं! वे सिर्फ उनका सपना पूरा करने के लिए कमाते हैं! वे अंदर से इतने कमजोर हो गये हैं कि दस साल में ही कई तरह की बीमारियां उन्हें जकड रखा है, लेकिन लोगों को दिखाने के लिए अभी भी हैंडसम बने हुए हैं! बच्चा और बीवी के बाद उनके पास टाइम नहीं है अन्य लोगों से बात करने के लिए! बीवी और बच्चे को कोई विकल्प नहीं है! इस कारण नहीं जाते हैं! एक हमारे सीनियर जर्नलिस्ट हैं! वे बोल रहे थे कि मेर बच्चे मुझे नहीं पहचानते हैं! क्योंकि जब वे स्कूल जाते हैं, तो मैं देर रात तक काम करके आता हूं! इस कारण सोया रहता हूं और जब वे स्कूल से आते हैं, तो मैं आॅफिस चला जाता हूं! आता हूं, तो वे सोये हुए मिलते हैं! बीवी भी कुछ दिन मेरे मना करने के बावजूद खाना के लिए इंतजार की, लेकिन अब वह भी डेली के रूटीन से तंग आकर खाना खाकर सो जाती है! हालात ऐसे बन गये हैं कि खुद खाना लेकर खाता हूं और चुपचाप सो जाता हूं! आॅफिस से आने के बाद कल का डर इतना सताता है कि सुंदर बीवी के साथ हम बिस्तर होने के बावजूद उसे छूता तक नहीं हूं! कभी जब रात को सहवास की इच्छा भी होती है, तो यह सोचकर रूक जाता हूं कि सुबह पांच बजे उसे उठकर बच्चे को स्कूल छोडना है और नाष्ता और खाना भी बनाना है और दो किलोमीटर दूर जाकर सब्जी भी लाना है, क्योंकि सब्जी पचास पैसे कम मेें वहां मिलते हैं!यही हालत बीवी की है! वह बोल रही थी कि जब सोते समय आपकी यादों मेें खोयी रहती हूं और आपको अपने पास न पाकर खुद के भाग्य पर रोती हूं और यही सोचते सोचते सो जाती हूं! कभी जब बच्चे पूछते हैं कि मम्मी पापा रात को क्यों काम करते हैं, तो उन्हें गर्व से बताती हूं कि आपके पापा नौकरी नहीं देष की सेवा करते हैं और इसके लिए रात को जगना जरूरी होता है! बच्चे भी खुष होकर जब पापा की तरह बनने के बारे कहता है, तो आग बबूला हो जाती हूं और कहती हूं कि यह प्रोफेषन तुम्हारे लिए ठीक नहीं है! तुम कोई और सर्विस करना, जिसमें रात को सोने के लिए समय और पर्व त्यौहार मेें घर जाने के लिए अवकाष मिले! बच्चे भी डर से चुप हो जाते हैं और सभी लोग नींद की आगोष में खामोष हो जाते हैं! नींद खुलने के बाद उन्हें अपने बगल में पाती हूं, जो गहरी नींद में सोये रहते हैं! इस कारण जगाने से डरती हूं कि उन्हें नींद ही बडी नसीब से आती है! अगर ये भी इनसे छिन लूंगी तो इनके पास कुछ भी नहीं बचेगा और फिर! नहीं मैं बता नहीं सकती कि मैं परेषान हो जाती हूं यह सोचकर! यह लिखने का मेरा मतलब यही था कि ये लोग बडे जर्नलिस्ट हैं, जिनके पास सिर्फ पैसा है! इस कारण मैं छोटा जर्नलिस्ट बनना ही उचित समझा! पैसे तो बहुत कम मिले लेकिन उनसे समय अधिक मिलता था! यह अलग बात है कि समय का सही सदुपयोग मैं नहीं कर पाया लेकिन सोने में हमने कहीं भी कोताही नहीं बरती! अंदर से काफी कमजोर हो गया था! सपने देखना ही छोड दिया था! जिसे मैं स्टूडेंट लाइफ में कभी भाव नहीं दिया! वह सब भी मुझसे ज्यादा कमाने लगे और मैं सैलरी के मामले में सबसे पिछडता ही चला गया! हर दिन नौकरी छोडने का प्लान बनाने लगा लेकिन कोई विकल्प न मिलने के कारण फिर नौकरी करने लगा! इससे मेरा व्यक्तित्व कमजोर होने लगा और जो कुछ भी पहले जानता था,उसी के बल पर नौकरी खींच रहा था! वैसे भी इस प्रोफेषन को मैं षौक से नहीं पकडा था! हालात ने हमें इस ओर धकेल दिया था! 

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