आजकल सरस्वती वंदना है, तो भीड नहीं रहती है और इसके उलट यदि चार बोतल बोधका लगाया जाता है, तो दो साल के बच्चे भी मस्त और व्यस्त हो जाते हैं! मां सरस्वती पर क्या गुजर रही होगी, यही सोचकर परे’ाान हो जाता हूं! फिर सोचता हूं कि मां सरस्वती भी खुद को हालात के अनुरूप बदल ली होगी! क्योंकि इस समय ज्यादातर उनके स्टूडेंट बोधका टाइप के हैं, जिन्हें पढाई कम बोधका पर खास नजर रहता है और सभी को मां सरस्वती की दया से नहीं कुछ तो एमबीए और इंजीनियरिंग की डिगzी मिल ही जाती है! मां सरस्वती भी जानती है कि अगर इन्हें डिगzी नहीं भी दूंगी, तो लक्ष्मी की दया से ये इन्हें खरीद लेगा और हमारी रही सही इज्जत भी चली जाएगी! इससे तो अच्छा यही है कि सभी को डिगzी दे दो और बाद में नौकरी के लिए तरसा दो! इससे लक्ष्मी की साख भी प्रभावित होगी और मेरा पूजा भी सभी धूमधाम से करेगा और चार बोतल बोधका के लिए प्रोफे’ानल स्टाइल में चंदा भी मांगेगा!
आज सरस्वती पूजा है!
जब मैं तीन
साल का था,
तो बाबा चाWक और
पेंसिल के साथ
मुझे प्रणाम करने
को कहे थे
और बताए थे
कि मां सरस्वती
की पूजा करने
से लोग इंटेलिजेंट
होता है और
उनकी सभी मनोकामनाएं
पूरी होती है!
इंटेलिजेंट बना कि
नहीं, ये विचारने
का समय नहीं
है! लेकिन यह
धारणा इंटर तक
बना रहा! इलाहाबाद
आने के बाद
सरस्वती मां को
भूल गया! पता
चला कि सरस्वती
बिहार की देवी
है और बिहारी
लोग पूजते हैं!
समझ में नहीं
आ रहा था
कि बाबा सही
थे या यूपी
के भैया लोग
सही बोल रहे
हैं... इलाहाबाद के कुछ
हाWस्टल में
इनकी पूजा होती
थी और हम
सभी बिहारी लोग
वहां पूजा करने
जाते थे और
भैया लोग प्रासाद
लेने जाते थे!
दिल्ली में बिहारियों
की संख्या काफी
थी, तो यहां
फिर पूजा करने
लगा! कानपुर आने
के बाद फिर
माहौल ठंडा पड
गया और उसके बाद
से लगभग मां
सरस्वती को भूल
गया! फिर जब
अब इस बार
बिहार में हूं,
तो फिर पूरानी
धारणा बलवती हो
रही है और
दादा जी का
डाWयलाWग
बेटा वैभव को
बता रहा था,
लेकिन वैभव बोला
कि मुझे पहले
कzेजी बैलून
खरीद दो, तब
पूजा करूंगा......पता
नहीं यह जेनरे’ान क्या
करेगा.....एक बात
और कि उस
समय सभी स्टूडेंट
को सरस्वती वंदना
रटा हुआ रहता
था और पूजा
में सिर्फ यही
बजता था और
पंडित जी तैयार
होकर उच्च स्वर
में माइक पर
पूजा करते थे
और हमलोगों से
फीडबैक लिया करते
थे कि माइक
में आवाज सही
आ रहा था
कि नहीं! सकारात्मक
बातों से खु’ा होते
थे और नकारात्मक
बातों से अपराधगzस्त हो
जाते थे!उस
समय साउंड बाWक्स पूजा
या किसी उत्सव
में ही बजाया
जाता था और
इसके लिए अच्छी
खासी रकम खर्च
करना पडता था!
लेकिन अब हालात
पूरी तरह से
बदल गए हैं!
आज इसका कzेज पहले
से अधिक बढ
गया है और
पहुंच भी, लेकिन
सभी प्रोफे’ानल
हो गया है!
मां सरस्वती भी
यह जान चुकी
है कि यदि
प्रोफे’ानल नहीं
रहेंगे, तो ये
लोग हमें भूल
जाएंगे! आजकल गिव
एंड टेक का
जमाना है! आज
की लैला भी
उसी मजनू को
दिल देती है,
जो उन्हें होटल
में खाना खिालाने
की कुव्वत रखता
हो और कार
व महंगे फोन
देने में समर्थ
हो! आजकल यदि
सरस्वती वंदना गाया जाता
है, तो भीड
नहीं रहती है
और इसके उलट
यदि चार बोतल
बोधका लगाया जाता
है, तो दो
साल के बच्चे
भी मस्त और
व्यस्त हो जाते
हैं! मां सरस्वती
पर क्या गुजर
रही होगी, यही
सोचकर परे’ाान
हो जाता हूं!
फिर सोचता हूं
कि मां सरस्वती
भी खुद को
हालात के अनुरूप
बदल ली होगी!
क्योंकि इस समय
ज्यादातर उनके स्टूडेंट
बोधका टाइप के
हैं, जिन्हें पढाई
कम बोधका पर
खास नजर रहता
है और सभी
को मां सरस्वती
की दया से
नहीं कुछ तो
एमबीए और इंजीनियरिंग
की डिगzी
मिल ही जाती
है! मां सरस्वती
भी जानती है
कि अगर इन्हें
डिगzी नहीं
भी दूंगी, तो
लक्ष्मी की दया
से ये इन्हें
खरीद लेगा और
हमारी रही सही
इज्जत भी चली
जाएगी! इससे तो
अच्छा यही है
कि सभी को
डिगzी दे
दो और बाद
में नौकरी के
लिए तरसा दो!
इससे लक्ष्मी की
साख भी प्रभावित
होगी और मेरा
पूजा भी सभी
धूमधाम से करेगा
और चार बोतल
बोधका के लिए
प्रोफे’ानल स्टाइल
में चंदा भी
मांगेगा! समाज में
मेरा मान भी
बढेगा! तभी तो
पहले जहां पांच
हजार में पूजा
हो जाता था,
अब पचास हजार
में भी नहीं
होते हैं!
बीजेपी का हाइप
तो नहीं ओबामा
एजेंडा
अमेरिका तो बनियों
का सरदार है!
हम आज मेक
इन इंडिया का
नारा लगा रहे
हैं, लेकिन अमेरिका
मेक इन अमेरिका
भूल चुका है
और उससे आगे
की सोच रहा
है और हम
मेक इन इंडिया,
मेड इन इंडिया
की रट लगाए
हुए हैं! मुझे
तो कभी कभी
यह डर सता
रहा है कि
कहीं इंजीनियरिंग और
एमबीए की तरह
मेक इन इंडिया
का हसz न
हो जाये!
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