बुधवार, 30 दिसंबर 2009
आखिर प्रह्लाद तो पितृहन्ता ही है
कुछ महीने पहले ही बेटा हुआ है। उस दिन से अभी तक मुझे बच्चों से संबंधित जो कुछ भी पढऩे को मिलता है, उसे अवश्य पढ़ रहा हूं। अंदर एक अलग अनुभूति हो रही है। अब पिता होने से जहां काफी खुश हैं, वहीं अनेक पुरानी बातें याद आती है और रात भर उसी में तर्क-वितर्क करके समय काट रहा हूं। कुछ दिनों पहले एकाएक यह मन में यह बात आई कि क्या हिरण्य कशिपू आदर्श पिता थे? यदि मैं उसकी जगह होता, तो क्या उसे अपनी मर्जी से चलने देता? यदि आज की बात की जाए, तो कौन पिता बेटे को अपनी मर्जी से चलने की इजाजत दे रहे हैं। प्रह्लाद को भले ही लोगों ने सिर आंखों पर बिठा लिया हो, लेकिन है तो वह पितृहन्ता ही। अब सिर्फ समय बदल चुका है। आजकल के पिता भी हिरण्य की तरह हैं और जो पुत्र या पुत्री प्रह्लाद की तरह बनना चाहता है, उसे भी घर से बेघर किया जा रहा है। एक पिता की नजर से देखिए, तो इसमें उसकी गलती भी नहीं है। आखिर हम सभी तो अपनी ही तरह अपने बच्चे को देखना चाहते हैं, बल्कि अपने से बेहतर देखना चाहते हैं। तभी तो यक्ष को उत्तर देते हुए युद्धिष्ठिर ने कहा कि आसमान से बड़ा पिता होता है, क्योंकि आसमान बड़ा होते हुए भी अपने आगोश में सबको समा लेता है। सबका अस्तित्व आसमान में ही टिका होता है, लेकिन एक पिता हमेशा अपने से बड़ा पुत्र को देखना चाहता है। यदि यह सही है, तो हिरण्य भी तो अपने से मजबूत और सक्षम पुत्र को बनाना चाहा होगा। यह तो आप भी मानेंगे कि उन्होंने अपने बेटे को सारी सुविधाएं दी थीं और पढऩे के लिए टीचर भी रखे थे। यदि पुत्र मोह नहीं होता, तो वे इस तरह की सुविधाएं क्यों देते। हालात तभी बिगडऩा शुरू हुआ, जब पिता के अनुरूप उन्हें शिक्षा नहीं मिल रही थी। दरअसल, कशिपू भी अपने बेटे को अपने से अधिक शक्तिशाली और दुष्टï बनाना चाहते थे, लेकिन उनका बेटा उनकी बात नहीं मान रहा था। उन्होंने वही कुछ किया, जो आज के आधुनिक पिता कर रहे हैं। आज भी पिता अपने अधूरे सपने पुत्र के माध्यम से साकार करना चाहते हैं। यदि उनके बच्चे उनके अनुरूप नहीं पढ़ते हैं, तो उन्हें भी मानसिक प्रताडऩा झेलने पड़ते हैं और पैरेंट्स से डांट पड़ती है। लेकिन हमने बहुत कम सुना है कि बेटा ने पिता की बलि दे दी है। इसके विपरीत आए दिन यह खबर अखबार में जरूर पढऩे को मिलती है कि दसवीं क्लास के लड़के ने फांसी लगा ली और चिट्टी में खुद को पैरेंट्स के अनुरूप प्रदर्शन न करने के लिए क्षमा मांग रहा है। इन दिनों सोच बदलने की है। एक पिता की तरह सोचें, तो बच्चे पितृहन्ता नहीं बन रहे हंै, जिसका हम आए दिन गुणगान कर रहे हैं। बल्कि वह खुद को आपके अनुरूप न चल पाने के कारण मर जाना बेहतर समझ रहा है। उस समय हिरण्य को भी यह पता नहीं था कि वह बेटे को अपने विचार थोप रहे हैं। वह भी आपकी ही तरह अपने बेटे को बनाना चाह रहा था। रावण भी तो अपने बेटे को शक्तिशाली बनाने के लिए ढेर सारे प्रयत्न किए। रावण खुशनसीब था कि उनका बेटा उनके पदचिह्नïों पर चला, लेकिन बेचारा कशिपू को उनके बेटे ने ही मरवा दिया। हिरण राक्षस था, तो अपने बेटे को इंसान बनाने के लिए क्यों प्रयत्न करेगा। मैं तो उन्हें गलत नहीं मानता। यदि मैं भी हिरण्य की जगह होता, तो वही करता। लेकिन बेटे को तो राम की तरह आदर्श पुत्र बनना चाहिए था। कम से कम यदि आदर्श बेटा नहीं बन सकता तो पिता का हत्यारा तो नहीं बनता। यदि हमलोग भी चाहते हैं कि बेटा पितृहन्ता न बने, तो उनकी भावनाओं को समझिए और उन्हें वह करने दीजिए, जो वह करना चाहता है। उन्हें अपना लक्ष्य चुनने के लिए खुद कहिए। उनके लक्ष्य पर सही गलत उन्हें समझाएं। यदि प्यार से इस तरह स्वयं को बदलेंगे, तो आपका संतान अवश्य ही बेहतर बनेगा। एक बात और, जब आज के आधुनिक पुत्र शक्तिशाली होते हुए भी प्रह्लाद नहीं बन रहा है, तो अभी तक हिरण्य कशिपू क्यों बने हैं? सोचिए जरूर, मौका है खुद को बदलने का। अन्यथा इंसान के लिए इशारा ही काफी है?
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1 टिप्पणी:
बिल्कुल तार्किक तौर पर कसा हुआ आलेख है सर जी। मन को छू गया। आपकी लेखनी बहुत मजबूत है और विचारों का प्रवाह भी उल्लेखनीय है।
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