गुरुवार, 29 जुलाई 2010

मन का सुख

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजीसे पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कमपड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आतीहै ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंनेछात्रों से कहा कि वेआज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबलटेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समानेकी जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ...आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरुकिये h धीरे- धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समागये , फ़िरसे प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालनाशुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी परहँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अबतो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ॥ अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे सेचाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थितथोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान ,परिवार , बच्चे , मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं ,छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , औररेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस कीगेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहींभर पाते , रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछेपडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातोंके लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है येतुम्हें तय करना है । अपनेबच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ ,घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अपकरवाओ ... टेबल टेनिसगेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है ..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यहनहीं बतायाकि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच हीरहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिनअपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनीचाहिये ।

1 टिप्पणी:

समय चक्र ने कहा…

उम्दा प्रस्तुति...