गुरुवार, 29 जुलाई 2010
पागल बुढि़या कुछ भी बोलती रहती है
जून में कुछ दिनों के लिए घर गया था। काफी खुश था घर जाकर। पड़ोसी में एक बूढ़ी है। उम्र होगी करीब सत्तर वर्ष। वह काफी परेशान थी। कसम खाई थी कि अब किसी बच्चे को नहीं पढ़ने देगी। इस कारण उसे कुछ लोग पागल भी कह रहे थे। मुझे आश्चर्य हुआ यह सुनकर कि आजकल सभी शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं और यह दादी शिक्षा की कब्र खोद रही है, जबकि वह पेशे से खुद टीचर थी। एक समय उनकी खूब चलती थी। मुझे याद है कि संस्कृत के श्लोक रटाने के लिए वह बहुत मारी थी। उसका बेटा महेश भी मेरे साथ पढ़ता था। उसे भी खूब मार पड़ी थी। अंत में मैं यह श्लोक सुना दिया और उसे याद नहीं हुआ। उसे इस कारण छोड़ दिया गया कि वह संस्कृत में कमजोर था, लेकिन मैथ में तेज था। उसकी मां गर्व से कहती थी कि संस्कृत में क्या रखा है। मैथ पढ़कर बेटा इंजीनियर बनेगा। हुआ वही, बेटा इंजीनियर बन गया, लेकिन अपनी मां को यहीं छोड़ गया है। मां इसलिए परेशान थी। मैं उन्हें मजाक के लहजे में कहा कि आप मुझे संस्कृत के श्लोक के लिए बहुत पीटी थीं आपको याद है? वह बोली कि मुझे वह घटना भी याद है और श्लोक भी। काश, उस समय मैं इसका महत्व समझती और उसे भी तुम्हारी तरह रटा देती तो आज यह दिन नहीं देखने पड़ते। मुझे हंसी आ गई और वह रोने लगी। अब आप सोच रहे होंगे कि श्लोक क्या था। साधारण है, आप सभी जानते हैं। उस समय तो मैं उसे रट लिया था और व्यावहारिक जीवन में कभी जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन उसके बाद मैं भी सोचने के लिए मजबूर हो गया। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि एक श्लोक का इतना महत्व हो सकता है। अंत में मैं लाचार होकर उनसे पूछा कि विद्या तो उसके पास है ही, फिर श्लोक का क्या महत्व? वह गंभीर होकर बोली कि जब हनुमान के दिल में ही सीता और राम थे, तो फिर राम-राम की रट क्यों लगाते थे। श्लोक है : विद्या ददाति विनयम, विनया ददाति पात्रत्रामपात्रत्वधनआप्नोति धनात धर्म: तत: सुखम। आधुनिक शिक्षा तो वह ग्रहण कर लिया लेकिन बुनियादी शिक्षा ही वह भूल गया। कुछ दिन पहले उसके पास गया तो मुझे वहां से इस कारण भेज दिया कि तुम यहां एडजस्ट नहीं कर सकती। बताओ, यदि सही विद्या होती, तो इस तरह की बातें वह करता? मैं निरुत्तर था और वह बार-बार यही प्रश्न कर रही थी। इसी बीच भतीजा आया और बोला कि चलिए यह पागल बुढि़या कुछ भी बोलती रहती है।
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2 टिप्पणियां:
शिक्षा आज चरित्र का निर्माण नहीं पतन कर रही है और ऐसा किया जा रहा है भ्रष्ट मंत्रियों द्वारा क्योकि भ्रष्टाचारियों को सिर्फ चरित्रवान लोगों से डर होता है इसलिए ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी ....अच्छी प्रेरक प्रस्तुती शिक्षा का पहला उद्देश्य चरित्र निर्माण होना चाहिए ...
शिक्षा तो शिक्षा हम ही कोन सा चरित्र निर्माण पर जोर दे रहे हैं । पहले हमें अपना आचरण सुदारना होगा तब तो बच्चे हमारा अनुकरण करेंगे ।
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