बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

मैं सि‍मट कर रह गया हूं।

 एक बार एक संन्यासी ऊंचे पहाड़ पर स्थित मंदिर दर्शन के लिए बीच रास्ते में थककर एक छायादार जगह पर खड़े होकर सुस्ताने लगा। तभी उसने देखा कि एक ग्रामीण महिला अपने कंधे पर अपने बच्चे को उठाये सीढ़ी चढ़ती आ रही है। उसके चेहरे से पसीना छल-छला रहा है, पर वह गीत गा रही है। सन्यासी ने उस महिला से कहा आओ थोड़ी देर छांव में आराम कर लो तुमने इतना बोझा भी उठा रखा है। वह महिला बोली महाराज यह बोझ नहीं मेरा बेटा है। यह मेरी जिम्मेदारी है यह भगवान का वरदान है। जब आप अपनी जिम्मेदारी को भगवान का नाम लेकर उठाते है तो वह बोझ नहीं लगता बल्कि आत्मिक खुशी देता है। अपने को जिम्मेदार महसूस करना अपने अस्तित्व का मान बढ़ाना है।
आज दीपावली है, लेकिन मन नहीं लग रहा है। क्‍योंक‍ि मैं अपने घर पर नहीं हूं। यहां अपना मकान भी है और सारी आधुन‍िक सुवि‍धाएं भी, पत्‍नी भी हैं और बच्‍चे भी। लेकि‍न मां नहीं है। वह घर पर हैं। हमें उनसे मि‍लने के लि‍ए टाइम नहीं है। जब मैं बच्‍चा था तो यही सोचता था क‍ि बडे होने के बाद आदमी के पास खुशी के अनेक मौके होते हैं और आदमी मन के मालि‍क होते हैं। अब जब पुरानी बातें सोचता हूं तो दुखी हो जाता हूं। पत्‍नी बहुत अच्‍छी है, खयाल भी रखती है और प्‍यार भी करती है, लेकि‍न वो नहीं मि‍ल पाता है, जो मां देती थी। यह सोचकर कभी कभी बैचेन हो जाता हूं क‍ि आदमी आखिर क्‍या करे। जब पढाई कर रहा था तो सोचता था क‍ि नौकरी के बाद जि‍दगी बेहतर होगी और शादी के बाद झक्‍कास, लेकि‍न मैं गलत था।  जहां मैं रह रहा हूं, सभी अपने होते हुए भी अपने नहीं हैं। क्‍योंक‍ि उनकी संस्‍कत‍ि हमसे नहीं मि‍लती और मेरा रहन सहन उसे नहीं समझ में आता है। क्‍या इसी के लि‍ए इतना पढा और बेहतर नौकरी की। हम इस समय पेंडुलम की तरह हैं। काश आज मैं घर पर परहता,!  जम्‍मेदारि‍यों का बोझ आदमी को अंधा बना देता है। आज जि‍म्मेदारी इतनी बढ गई है क‍ि मैं सि‍मट कर रह गया हूं। खुद को अकेला महसूस कर रहा हूं। शायद यही सत्‍य है।  बर्बादि‍यों का जश्‍न मना रहा हूं। इस डर से क‍ि हो सकता है, अभी जो नसीब है, वह भी आगे न मि‍ल‍े। अक्सर अपनी जिंदगी में हम लोगों से सुनते आये है कि हम जिम्मेदारी के कारण जिंदगी का मजा नही ले पाते है।  यह बात बिल्कुल सही नही है।विश्व में अधिक ऊंचाई में पहुंचने वाले सभी लोग जिम्मेदार होते है या मै कहूंगा कि जो लोग जिम्मेदार होते है वही ऊंचाईयों को छू सकते है। अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर या देश के ऊंचे पदों पर बैठे राजनीतिज्ञ या अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से कभी नहीं भागते। किसी जहाज का कप्तान, किसी संयुक्त परिवार का मुख्या या किसी बड़े उद्योग का चेयर मैन बनना जितनी जिम्मेदारी का काम है, उतनी ही उनकी शान है, उनकी इज्जत है। मैने अपनी जिंदगी में कई लोग ऐसे देखे है जो दूसरों के बोझ को हल्का करते है और साथ ही साथ खुश भी रहते है। कम उम्र में उनकी इन आदतों को समझ नही पाया था पर अब उनके व्यक्तित्व को नमन करता हूँ। यही सोचकर आगे  बढ रहा हूं। नमस्‍कार आपको दीपावली की शुभकामनाएं।

1 टिप्पणी:

Asha Joglekar ने कहा…

यह मेरी जिम्मेदारी है यह भगवान का वरदान है। जब आप अपनी जिम्मेदारी को भगवान का नाम लेकर उठाते है तो वह बोझ नहीं लगता बल्कि आत्मिक खुशी देता है। अपने को जिम्मेदार महसूस करना अपने अस्तित्व का मान बढ़ाना है।
जिम्मेदारी को अपना चहेता काम बना लीजिये । हर समय जो आप चाहें वही कर पायें ऐसा नही होता बेहतर होता है कि जो हम कर रहे हैं उसी को करना चाहें भी ।
सुंदर आलेख । आशा है आपकी दीपावली मंगल मय रही होगी ।