मेरी क़िस्मत की लकीरें, मेरे
हाथों में न थीं,
तेरे माथे पर कोई, मेरा मुक़द्दर देखता।।
चोट खाते हैं ज़हर पीते हैं
छोड़कर गाँव की फिज़ा जो लोग
शहर की बस्तियों में जीते हैं
बच्चा खो जाए ग़म तो होता है
आज बच्चे का खो गया बचपन
इस बड़े ग़म में आज कौन रोता है
जो मिले उसके संग होती है
ज़िंदगानी अज़ीज़ बच्चों की
जैसे पत्नी का रंग होती है
बच्चा स्कूल रोज़ जाता है
बस्ता दिल से लगा के रखता था
आजकल पीठ पर उठाता है
ज़रा सा ग़म हो तो होते हो नीम जान मियाँ
हमारे सर से गुज़रते हैं आसमान मियाँ
लिपटी हुई है वक़्त से मायूसियों की धूप
कितनी उदासी आज की इस दोपहर में है
तेरे माथे पर कोई, मेरा मुक़द्दर देखता।।
चोट खाते हैं ज़हर पीते हैं
छोड़कर गाँव की फिज़ा जो लोग
शहर की बस्तियों में जीते हैं
बच्चा खो जाए ग़म तो होता है
आज बच्चे का खो गया बचपन
इस बड़े ग़म में आज कौन रोता है
जो मिले उसके संग होती है
ज़िंदगानी अज़ीज़ बच्चों की
जैसे पत्नी का रंग होती है
बच्चा स्कूल रोज़ जाता है
बस्ता दिल से लगा के रखता था
आजकल पीठ पर उठाता है
ज़रा सा ग़म हो तो होते हो नीम जान मियाँ
हमारे सर से गुज़रते हैं आसमान मियाँ
लिपटी हुई है वक़्त से मायूसियों की धूप
कितनी उदासी आज की इस दोपहर में है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें