शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

नौकरी से पहले नौकरी के बाद


जब मैं पढाई कर रहा था
पापा पढा रहे थे
दोस्‍त क्रिकेट खेल रहे थे
मुझे भी खेलने की इच्‍छा हो रही थी
पापा बोले कि पढाई कर लो
फिर खूब खेलना नौकरी के बाद।
बाल मन सहसा ही यह कह उठा
क्‍या होता है नौकरी के बाद
कैसे मिलती है ये नौकरी
क्‍यों करते हैं लोग नौकरी।
मां बताई कि नौकरी जीवन की सच्‍चाई है
आगे बढने की सीढी है
अच्‍छी शादी की निशानी है।
नहीं करनी है हमें शादी
वो हमें कर देगी बर्बादी
मां से कर देगी अलग
हो जाउंगा लोगों से विलग।
मां गंभीर बन गई मेरी बातों से
पापा परेशान हो गए मां को देखकर
इन परिस्‍थितियों का फायदा उठाकर
चला गया मैं क्रिकेट खेलने
उन दोनों में लंबी बातचीत चली
क्‍या हुई हमें पता नहीं।
 सोते वक्‍त मां ने पूछी
किसने बताया तुम्‍हें ये सब
चाची और चाचा बात कर रहे थे ये सब
मां को जान में जान में जान आई
बोली कि पापा भी तो नौकरी करते हैं
दादी और दादा भी तो साथ रहते हैं।
 कहां हैं किसी से अलग
नौकरी के बाद खेती भी करते हैं अलग
खानपान भी है औरों से अलग
बातों में गहराई है अलग
भीड में दिखते हैं सबसे अलग।
उसके बाद नौकरी करने की इच्‍छा होने लगी
भीड से अलग दिखने की लालसा होने लगी
  पढाई करने में मन लगने लगा
बाद में नौकरी भी मिल गई।
नौकरी के बाद
नहीं रहा पहले की तरह नजारा
मैं नहीं रह सका सबका प्‍यारा
लोगों की उम्‍मीदे मुझसे बढ गई
मैं उम्‍मीदों के नीचे दब गया।
पत्‍नी कहती है कि क्‍या कमाते हो
बॉस कहते हैं कि तुम क्‍या करते हो
बेटा कहता है कि कम पैसे में कैसे मैं पढूंगा
चिंटू पढाई में आगे निकल जाएगा
मैं आपकी तरह पीछे ही रह जाउंगा।
शारीरिक स्‍थिति ऐसी है कि कुछ अतिरिक्‍त नहीं कमा सकता
पैसे इतने कम हैं कि एक बच्‍चे नहीं पढा सकता
लोगों के साथ दोडना तो दूर साथ नहीं चल सकता।  
बीबी कहती है कि इस नौकरी से तो बेगार भला
इतने कम पैसे में किसका होगा उपकार भला।
नौकरी के बाद अब इस कदर मुहाल हो चुकी है जिंदगी
जी तो रहा हूं लेकिन जीने की लालसा नहीं
रो तो रहा हूं लेकिन रोने की इच्‍छा नहीं
चल तो रहा हूं लेकिन चलने की इच्‍छा नहीं
नौकरी तो कर रहा हूं लेकिन नौकरी करने की इच्‍छा नहीं।
खुद को वक्‍त के हवाले छोडकर
सुख के सारे सपने भूलकर
मां बाप और बंधु बांधव को छोडकर
अपनी गांव की मिटटी को भूलाकर
नौकरी इसलिए कर रहा हूं
कि कहते हैं नौकरी करते ही प्राण चल जाए
तो बेटे को नौकरी मिल जाती है।
बीवी को पेंशन मिल जाती है
घर में काफी धन आ जाते हैं
पडोसी भी कुछ दिन रोने के बाद
प्रशंसा करने लगते हैं और कहते हैं कि
अच्‍छा था वह बंदा
मरने के बाद भी घर में सबकुछ दे गया।  
एक मेरा है रिटायर्ड बुढा
नौकरी के समय और नौकरी के बाद भी कंगाली लेकर आया है
खुद को पेंशन से खाता है बच्‍चों से मजदूरी करवाता है।
हैकडी अलग दिखाता है और खेती भी खुद करता है।
कोई चिंता नहीं है उन्‍हें अपने बच्‍चे की
काश वे भी नौकरी करते हुए मर जाते तो
नहीं देखने पडते ये दिन।
कहीं लौटा दे मुझे ससुर के नौकरी वाले दिन।






   
  


  


  

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