सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

अपनी पहचान खुद बनो

संसार का नियम है कि खुद को बदलो अन्‍यथा टूट जाओगे। लेकिन जो पहले से टूटा हुआ हो, उसे बदलने से क्‍या फायदा। मेरे साथ भी इसी तरह की बातें लागू होती है। मैं अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीता हूं। मजा आता है मुझे। यदि कोई बदलने के लिए कहता है, तो उनके कहने से नहीं बदलता, लेकिन हां, उससे दूर अवश्‍य हो जाता हूं। इसे आप घमंडी स्‍वभाव कह सकते हैं। एक दिन की बात है। कॉलेज में पढाई कर रहा था। पढने में औसत था। एक लडकी के प्रति अनायास ही आकर्षित हो गया। उसे पाने के लिए अपना सबकुछ बदल दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली। उसी दिन से कसम खयया कि मैं अब लोगों को खुश रखने के लिए नहीं बदलूंगा। नए दोस्‍त बनाने के लिए नहीं बदलूंगा अपने आपको। खुद की एक पहचान बनाउंगा, जो हमारी पहचान होगी। इसे पालन करने में अनेक तरह की समस्‍याएं भी आई। जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था, तो हालत यह थी कि मेरे साथ कोई भी रूम पार्टनर नहीं रहना चाहता था। इसका प्रमुख कारण यह था कि मैं शारीरिक रूप से अक्षम था। लोग हमें जानते नहीं थे।मेरा वहां कोई नहीं था। आर्थिक कंडीशन ऐसी नहीं थी कि अकेले रह सकूं। अंत में मैंने खुद को मजबूत बनाने के लिए बदला और कम से कम 18 घंटे की पढाई दो महीने तक की। हालात ऐसे हो गए कि आसपास मेरा नाम हो गया कि यह लडका काफी पढता है। इतनी पढाई कोई नहीं कर सकता। आप यकीन न मानिए लेकिन हकीकत यह है कि मेरे कई अच्‍छे दोस्‍त हो गए और मेरा रूम पार्टनर भी मिल गया। इससे आत्‍मविश्‍वास काफी बढ गया और उसके बाद से पीछे मुडकर नहीं देखा। आज तक यह जारी है::::::::::       

कोई टिप्पणी नहीं: