मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

बुजूर्ग बोझ नहीं है



जब मैं बच्‍चा था
दिल का सच्‍चा था
खेला करता था
अपने दरवाजे पर ।
किसी तरह का कोई गम नहीं था
भविष्‍य की कोई योजना नहीं थी
पढाई का कोई टेंशन नहीं था ।
पैरेंट़स और दोस्‍त ही अपने थे
जो पढाई करने के लिए कहते थे
वे हमें दुश्‍मन लगते थे।
काफी कष्‍ट होता था हमें
सोचता कि वे हमसे बात न करें
हमें पढने के लिए न कहें
हमसे संबंध विच्‍छेद कर लें
लेकिन वे हमें पढने के लिए फिर से कहते
क्‍योंकि वे कहते कि हम अपने हैं।
उनकी बातों में हमें आत्‍मीयता नहीं लगती
मुझे लगता कि वे झूठ बोल रहे हैं।
लेकिन उनकी कमी महसूस हो रही है
तब जब वे नहीं हैं।
ऐसा क्‍यों होता है अक्‍सर कि
न रहने पर उनकी सभी बातें याद आती हैं
उनके साथ रहने को जी करता है।
उनके साथ खाने की इच्‍छा होती है
बातें करने की इच्‍छा होती है
लेकिन जब साथ रहते हैं तो
शहद की मक्‍खियों की भांति 
उन्‍हें घर से बाहर इसलिए निकाल देते हैं
क्‍योंकि वे बुजूर्ग हैं
काम करने लायक नहीं हैं
उनकी दिनचर्या अलग है
आधुनिक तिकडम नहीं है उनके पास
सिर्फ सच्‍ची श्रद़धा है अपने बच्‍चों के प्रति
जबकि उन्‍हीं की मार और वचन के बदौलत
आज हम अपने पैरों पर खडे होते हैं।
आखिर हम कब तक भूलते रहेंगे अपनों को
कब तक उन्‍हें बुजूर्ग होने पर बोझ समझेंगे
कब हम उसे परिवार का हिस्‍सा समझेंगे
कब उनसे प्‍यार करेंगे, जो उन्‍होंने हमसे किया था।


शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

नौकरी से पहले नौकरी के बाद


जब मैं पढाई कर रहा था
पापा पढा रहे थे
दोस्‍त क्रिकेट खेल रहे थे
मुझे भी खेलने की इच्‍छा हो रही थी
पापा बोले कि पढाई कर लो
फिर खूब खेलना नौकरी के बाद।
बाल मन सहसा ही यह कह उठा
क्‍या होता है नौकरी के बाद
कैसे मिलती है ये नौकरी
क्‍यों करते हैं लोग नौकरी।
मां बताई कि नौकरी जीवन की सच्‍चाई है
आगे बढने की सीढी है
अच्‍छी शादी की निशानी है।
नहीं करनी है हमें शादी
वो हमें कर देगी बर्बादी
मां से कर देगी अलग
हो जाउंगा लोगों से विलग।
मां गंभीर बन गई मेरी बातों से
पापा परेशान हो गए मां को देखकर
इन परिस्‍थितियों का फायदा उठाकर
चला गया मैं क्रिकेट खेलने
उन दोनों में लंबी बातचीत चली
क्‍या हुई हमें पता नहीं।
 सोते वक्‍त मां ने पूछी
किसने बताया तुम्‍हें ये सब
चाची और चाचा बात कर रहे थे ये सब
मां को जान में जान में जान आई
बोली कि पापा भी तो नौकरी करते हैं
दादी और दादा भी तो साथ रहते हैं।
 कहां हैं किसी से अलग
नौकरी के बाद खेती भी करते हैं अलग
खानपान भी है औरों से अलग
बातों में गहराई है अलग
भीड में दिखते हैं सबसे अलग।
उसके बाद नौकरी करने की इच्‍छा होने लगी
भीड से अलग दिखने की लालसा होने लगी
  पढाई करने में मन लगने लगा
बाद में नौकरी भी मिल गई।
नौकरी के बाद
नहीं रहा पहले की तरह नजारा
मैं नहीं रह सका सबका प्‍यारा
लोगों की उम्‍मीदे मुझसे बढ गई
मैं उम्‍मीदों के नीचे दब गया।
पत्‍नी कहती है कि क्‍या कमाते हो
बॉस कहते हैं कि तुम क्‍या करते हो
बेटा कहता है कि कम पैसे में कैसे मैं पढूंगा
चिंटू पढाई में आगे निकल जाएगा
मैं आपकी तरह पीछे ही रह जाउंगा।
शारीरिक स्‍थिति ऐसी है कि कुछ अतिरिक्‍त नहीं कमा सकता
पैसे इतने कम हैं कि एक बच्‍चे नहीं पढा सकता
लोगों के साथ दोडना तो दूर साथ नहीं चल सकता।  
बीबी कहती है कि इस नौकरी से तो बेगार भला
इतने कम पैसे में किसका होगा उपकार भला।
नौकरी के बाद अब इस कदर मुहाल हो चुकी है जिंदगी
जी तो रहा हूं लेकिन जीने की लालसा नहीं
रो तो रहा हूं लेकिन रोने की इच्‍छा नहीं
चल तो रहा हूं लेकिन चलने की इच्‍छा नहीं
नौकरी तो कर रहा हूं लेकिन नौकरी करने की इच्‍छा नहीं।
खुद को वक्‍त के हवाले छोडकर
सुख के सारे सपने भूलकर
मां बाप और बंधु बांधव को छोडकर
अपनी गांव की मिटटी को भूलाकर
नौकरी इसलिए कर रहा हूं
कि कहते हैं नौकरी करते ही प्राण चल जाए
तो बेटे को नौकरी मिल जाती है।
बीवी को पेंशन मिल जाती है
घर में काफी धन आ जाते हैं
पडोसी भी कुछ दिन रोने के बाद
प्रशंसा करने लगते हैं और कहते हैं कि
अच्‍छा था वह बंदा
मरने के बाद भी घर में सबकुछ दे गया।  
एक मेरा है रिटायर्ड बुढा
नौकरी के समय और नौकरी के बाद भी कंगाली लेकर आया है
खुद को पेंशन से खाता है बच्‍चों से मजदूरी करवाता है।
हैकडी अलग दिखाता है और खेती भी खुद करता है।
कोई चिंता नहीं है उन्‍हें अपने बच्‍चे की
काश वे भी नौकरी करते हुए मर जाते तो
नहीं देखने पडते ये दिन।
कहीं लौटा दे मुझे ससुर के नौकरी वाले दिन।






   
  


  


  

दादी कहां गई मेरे सोने के बाद


मां के जाने के बाद, सूर्य उदय होने के बाद
स्‍टेशन से आने के बाद
एक ही प्रश्‍न था कि
दादी कहां गई मेरे सोने के बाद।

वाइफ कल ही कह रही थी
कि कल वैभव पूछेगा दादी कहां गई मेरे सोने के बाद।   
 उसे कह दिया कि कुछ भी जवाब दे देना
लेकिन पता नहीं था कि यह प्रश्न मुझसे ही पूछ बैठेगा
 कहां गई और क्‍यों गई मेरे सोने के बाद।

छोटा बच्‍चा का सरल चेहरा देखकर
दादी के प्रति असीम प्रेम को देखकर
रोते हुए अपने बेटे को देखकर
कलेजा मुंह को आ गया
कुछ समझ नहीं पा रहा था मां के जाने के बाद। 

कहा कि चलो घूमकर आते हैं, खूब मस्‍ती करते हैं
रसगुल्‍ला खाते हैं, साइकल चलाते हैं
वह खुश होकर बोला कि दादी को भी साथ लेकर चलते हैं
फिर सहसा प्रश्न किया कि दादी कहां गई मेरे सोने के बाद।
लाख कोशिशों के बावजूद उसे समझा नहीं पा रहा था

 सारी उर्जा लगाकर भी सही उत्‍तर नहीं सूझ रहा था
कभी मां पर गुस्‍सा करता कि क्‍यों आई वह यहां 
तो कभी वैभव पर गुस्‍सा करता कि क्‍या रखा है दादी में।

लेकिन मैंने ही इन्‍हें दादी के प्रति प्‍यार सिखाया
वह नादान तो जानता भी नहीं था अपनी दादी को
सिर्फ अपनी मां और पिता उसे अपना लगते थे।
एक दिन गुस्‍सा में उसे स्‍वार्थी भी कहे थे 
 देखो लाख बताने के बावजूद दादी को नहीं जानता। 

वाइफ बोली कि चेहरा देखने के बाद पहचानेगा दादी को 
बच्‍चा अक्‍ल नहीं जानता लेकिन चेहरा पहचानता है
फिर हमें अपनी बचपन की यादें ताजा हो गई 
एक दिन चाची मां की साडी पहनकर बाहर गई 
मैं रो रोकर लोगों को परेशान कर दिया
मुझे लगा कि मेरी मां जा रही है
मैं चुप तभी हो पाया जब खुद मेरी मां आई।
      
वह बोली कि कुछ लाकर देगी तभी पहचानेगा दादी को 
अपनी गोद में बैठाकर टहलाएगी तभी जानेगा दादी को 
रात में सोते वक्‍त कहानी सुनाएगी तभी चाहेगा दादी को 
बच्‍चे तो बच्‍चे हैं, वे उन्‍हें ही जानते हैं, जो उन्‍हें कुछ देता है
प्‍यार से उसे पुचकारता है और टॉफी व मीठाई देता है।

बगल वाले मामा को भी मैं इसलिए चाहता था कि 
वह बिस्‍कुट लाते थे और हमें चॉकलेट देते थे
मां कहती थी कि यह स्‍वार्थी हो गया है 
मामा के सामने मां को भी नहीं पहचानता है
फिर मामा बोलते कि यह बाप पर गया है 
यह सुनकर पापा खुश हो जाते तो 
मेरी दादी रूष्‍ठ होकर बोलती कि 
नहीं बाबु सहाब यह नाना पर गया है 
इस बीच मैं चॉकलेट चट कर जाता 
फिर मां के गोद में बैठ जाता
मामा के बुलाने पर भी नहीं आता।

मां के आने से कुछ दिन पहले ही तो दादी के बारे में बताया था
उसे दादी से प्रेम करने के लिए सिखाया था
बडी मेहनत लगी थी उसे दादी के लिए प्रेम बढाने में
अब जब दादी के प्रति प्रेम का अंकुरन हो ही रहा था
कि दादी उससे अलग होकर गांव चली गई
वह अब भी बिलख बिलखकर रो रहा है
 सभी से यही प्रश्न कर रहा है कि
दादी कहां गई मेरे सोने के बाद   
आ भी जाओ दादी मेरे बुलाने के बाद। 
  








  

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

कुछ दिन पहले ही घर में मां आई थी


कुछ दिन पहले ही घर में मां आई थी
वैभव खुश था अपनी दादी को पाकर
वाइफ खुश थी अपनी सास से मिलकर
मां भी खुश थी नए वातावरण और नए लोगों से मिलकर
मैं खुश था सभी को देखकर।
सोच रहा था कि काश यह उत्‍सव हमेशा बनी रहे
सभी में खुशियों की चमक इसी तरह चमकती रहे।
लेकिन कुछ दिनों के बाद ही मैं परेशान हो गया मां से
मां भी परेशान होगी मेरे व्‍यवहार से
पत्‍़नी परेशान हो रही थी हम दोनों के व़यवहार से।
आपने क्‍यों बताया अपनी मां को
वह नारज होकर रो रही है।
मैं निरुत्‍तर था वाइफ के सामने
चाहकर भी कुछ नहीं कह पा रहा था
वो मौन को मेरा पाखंड समझ रही थी
मैं अपनी भावनाओं को काबू में रखकर कुछ बोलना चाहता था
लेकिन वह लगातार बोलती जा रही थी।
सफाई में कहा उनसे जाने का समय पूछ लिया।
कौन सा बडा अपराध किया।
अगर नहीं पूछता तो वह समय पर घर नहीं जा सकती
क्‍योकि बिहार जाने के लिए चार महीने पहले ही रिजर्वेशन बनाना पडता है।
वह नाराज इसलिए हो गई थी कि तुम घर जाने से दो दिन पहले रिजर्वेशन बनाते
मैं उन्‍हें यह समझा नहीं पाया कि रिजर्वेशन चार महीने पहले बनते हैं।
इसी बात पर तकरार थी।  
हम दोनों एक ही जगह रहना चाहते थे
लेकिन परिस्‍थितियां और वक्‍त हमें अलग करने पर तुली हुई थी।
मां को अपने गांव जाना था और मुझे बच्‍चे को पालने के लिए नौकरी करनी थी।
अंत में दुखी मन से मैं भी उसे विदा कर दिया और वह भी बुझी मन से गांव चली गई
कल फोन किया तो बोल रही थी कि पोते की याद आ रही है
उसे जल्‍द यहां लेते आना, मन नहीं लग रहा है उसके बिना
मैं सोचा कि उसके जाने के बाद भी तुम्‍हें मन नहीं लगेगा
इसलिए क्‍यों बुलाती हो तुम इन्‍हें।
लेकिन फिर सोचा कि मिलना बिछडना तो संसार का नियम है
तात्‍कालिक कष्‍ट के बाद सभी एक दूसरे को भूल जाते हैं
जैसे पिताजी के मरने के बाद अब हम उसे भूल गए हैं।  

   
  

बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

औरत पुरानी नहीं

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

अपनी पहचान खुद बनो

संसार का नियम है कि खुद को बदलो अन्‍यथा टूट जाओगे। लेकिन जो पहले से टूटा हुआ हो, उसे बदलने से क्‍या फायदा। मेरे साथ भी इसी तरह की बातें लागू होती है। मैं अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीता हूं। मजा आता है मुझे। यदि कोई बदलने के लिए कहता है, तो उनके कहने से नहीं बदलता, लेकिन हां, उससे दूर अवश्‍य हो जाता हूं। इसे आप घमंडी स्‍वभाव कह सकते हैं। एक दिन की बात है। कॉलेज में पढाई कर रहा था। पढने में औसत था। एक लडकी के प्रति अनायास ही आकर्षित हो गया। उसे पाने के लिए अपना सबकुछ बदल दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली। उसी दिन से कसम खयया कि मैं अब लोगों को खुश रखने के लिए नहीं बदलूंगा। नए दोस्‍त बनाने के लिए नहीं बदलूंगा अपने आपको। खुद की एक पहचान बनाउंगा, जो हमारी पहचान होगी। इसे पालन करने में अनेक तरह की समस्‍याएं भी आई। जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था, तो हालत यह थी कि मेरे साथ कोई भी रूम पार्टनर नहीं रहना चाहता था। इसका प्रमुख कारण यह था कि मैं शारीरिक रूप से अक्षम था। लोग हमें जानते नहीं थे।मेरा वहां कोई नहीं था। आर्थिक कंडीशन ऐसी नहीं थी कि अकेले रह सकूं। अंत में मैंने खुद को मजबूत बनाने के लिए बदला और कम से कम 18 घंटे की पढाई दो महीने तक की। हालात ऐसे हो गए कि आसपास मेरा नाम हो गया कि यह लडका काफी पढता है। इतनी पढाई कोई नहीं कर सकता। आप यकीन न मानिए लेकिन हकीकत यह है कि मेरे कई अच्‍छे दोस्‍त हो गए और मेरा रूम पार्टनर भी मिल गया। इससे आत्‍मविश्‍वास काफी बढ गया और उसके बाद से पीछे मुडकर नहीं देखा। आज तक यह जारी है::::::::::       

शनिवार, 29 सितंबर 2012


क्या भूलूँ क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से 
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
जिंदगी इम्‍तहान लेती है। जब दो क्‍लास में था, तभी ये शब्‍द मेरे कानों में गुंजे थे, लेकिन उसका अर्थ अब समझ में आ रहा है। नौकरी करते हुए दस वर्ष बीत गए हैं। इध से न जाने अतीत की बातें खूब याद आ रही है। कभी कभी तो ऐसा होता है कि रात भर सोचते सोचते सुबह हो जाती है। अगणित अवसादों के क्षण हैं। दुख की दिल भारी कर जाती है। वैसे तो हर व्‍यक्‍ति संघर्ष करता है और संघर्ष करके जीवन को सुवासित बनाता है, लेकिन मुझे अन्‍य लोगों से अधिक ही संघर्ष करना पड रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि शारीरिक रूप से अक्षम होने के कारण लाख कोशिशों के बावजूद खुद को संभाल नहीं पाता हूं मैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मैं अपने से कई लोगों से दूर होता जा रहा हूं। कल पटना से सुपर थर्टी के संस्‍थापक आनंद आए थे। वे अच्‍छे दोस्‍त हैं और जरूरत के समय हमेशा सहयोग करते हैं। मैं उन्‍हें देखा हूं, क्‍योंकि वे पब्‍लिक फीगर हैं, लेकिन वे मुझे सिर्फ नाम से जानते हैं। कानपुर आने से पहले और जाने के बाद भी वे लगभग दस बार फोन किए होंगे, मुझसे मिलने के लिए, लेकिन मैं उनसे जानकर भी इस कारण नहीं मिला कि मुझे डर था कि यदि वे मुझे देख लेंगे, तो बाद मेरे संबंध पहले की तरह नहीं रह पाएंगे। आप कह सकते हैं कि आपको जाना चाहिए, क्‍योकि वे शक्‍ल देखकर नहीं अपितु आपके विचारों का दोस्‍त है। लेकिन न जाने हमें इतना डर लगता है कि मैं चाहकर भी नहीं जाता हूं। भविष्‍य में कई अनहोनी घटना घटी है, जिसे यदि याद करूं, तो समय ही बर्बाद हो जाए। अंत में हारकर बचचन जी की पंक्‍ति ही सहारा देती है
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को 
किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से 
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
दोनों करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे 
अपने को आज़ाद करूँ मैं!

क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!

सोमवार, 27 अगस्त 2012

होके मायूस न आंगन से उखाड़ो पौधे, धूप बरसी है तो बारिश भी यहीं पर होगी।


मिल ही जाएगी ढूंढने वाले को बहार,
हर गुलिस्तां में खिजां हो यह जरूरी नहीं।

-'इकबाल'

1. खिजां - पतझड़ की ऋतु 'इकबाल' 

*****

मेरे दिले-मायूस में क्यों कर न हो उम्मीद,
मुरझाए हुए फूलों में क्या बू नहीं होती।

-'अख्तर' अंसारी

*****
मेरे दोस्तों की दिलआजारियों में,
मेरी बेहतरी की कोई बात होगी।

-अब्दुल हमीद 'अदम'

1.दिलआजारी- कोई ऐसी बात कहना या करना, जिससे किसी का दिल दुखे, सताना, कष्ट देना 
हजार बर्क गिरें, लाख आंधियां उठें,
वह फूल खिल के रहेंगे, जो खिलने वाले हैं।
-'साहिर' लुधियानवी

1.बर्क - बिजली
होके मायूस न आंगन से उखाड़ो पौधे,
धूप बरसी है तो बारिश भी यहीं पर होगी।

उसके दामन में अगर शब हैं, सितारे भी तो हैं,


अदा परियों की, सूरत हूर की, आंखें गिजालों की,
गरज माँगे कि हर इक चीज हैं इन हुस्न वालों की।

-हाफिज जौनपुरी

1.हूर - स्वर्ग में रहने वाली सुन्दर स्त्री, स्वर्गांगन 2. गिजाल - हिरण का बच्चा, मृगशावक

*****

अदा निगाहों से होता है फर्जे-गोयाई,
जुबां की हद से जब शौके-बयां गुजरता है।

1 फर्जे-गोयाई- बात कहने का फ़र
ज़

*****
अश्क बनकर आई हैं वह इल्तिजाएं चश्म तक,
जिनको कहने के लिए होठों पै गोयाई नहीं।

-आनन्द नारायण मुल्ला
 
1.इल्तिजाएं - प्रार्थनाएं, दरखास्त
2.चश्म - आँख, नेत्र 3.गोयाई - बोलने की ताकत

*****

असर न पूछिए साकी की मस्त आंखों का,
यह देखिये कि कोई होशमंद बाकी है।
-हफीज जौनपुरी

उम्मीद वक्त का सबसे बड़ा सहारा है,
गर हौसला है तो हर मौज में किनारा है।

-'साहिर' लुधियानवी
इक नई बुनियाद डालेंगे तजस्सुम की 'शफा'
हर गुबारे-कारवां में कारवाँ ढूढ़ेंगे हम।
-'शफा' ग्वालियरी 

1. तजस्सुम - खोज, तलाश।



*****

उसके दामन में अगर शब हैं, सितारे भी तो हैं,
गर्दिशे-अफलाक से मायूस होना छोड़ दे।

1.गर्दिशे-अफलाक - दैवी प्रकोप, आसमान से आने वाली मुसीबत

*****

एक हैं दोनों, यास हो कि उम्मीद,
एक तड़पाए, एक बहलाए।
-तमकीन सरमस्

1.यास - निराशा, नाउम्मेदी

कांटों पर अगर चलना ही पड़े,
मायूस न हो जाना राही,
जब फूल हों दिल के दामन में,
फिर क्या है जो इन्सां कर न सके।

खिजां अब आयेगी तो आयेगी ढलकर बहारों में,
कुछ इस अन्दाज से नज्मे-गुलिस्तां कर रहा हूँ मैं।
-'शफक' टौंकी

1.खिजां - पतझड़ की ऋतु 2. नज्म - प्रबन्ध, व्यवस्था 

जो गम हद से जियादा हो, खुशी नजदीक होती है,
चमकते हैं सितारे रात जब तारीक होती है।

-'अपसर' मेरठी

1.तारीक - अंधेरी
दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।
-फैज अहमद 'फैज'
नई सुबह पर नजर है मगर आह यह भी डर है,
यह सहर भी रफ्ता-रफ्त कहीं शाम तक न पहुंचे।

-शकील बंदायुनी
1.सहर - सुबह, प्रातः 2.रफ्ता-रफ्त - अहिस्ता-अहिस्ता, धीरे -धीरे