आज मंगलवार है। आज का दिन मैं प्लानिंग और रिलैक्स के लिए रखता हूं। आज का दिन ही सही अर्थों में मेरे लिए सबसे क्रिएटिव होता है। क्योंकि इस दिन मैं पढाई भी करता हूं और पढने से एक सप्ताह तक तरोताजा महसूस भी करता हूं। पढने के सिलसिले में कुछ बातें मानस पटल पर ऐसे बैठ जाती है कि निकलने का नाम नहीं लेता है। अहा जिंदगी में अपनी जडों से दूर न हों, पढने के बाद मैं खुद काफी परेशान और विचारशील हो गया हूं। सोचने लगा कि क्या खुद नौकरी करके पेट पालना ही आज के मनुष्य का ध्येय रह गया है। आदमी अपने कुटुम्ब को भूल रहा है। अहां जिंदगी में इस संबंध में एक सुंदर लेख पढा। यह लेख मुझे काफी प्रभावित किया है। इसमें कहा गया है कि मनुष्य अकेले कुछ भी नहीं कर सकता है। समूह में रहना और सामूहिकता का बोध ही एक ऐसी खासियत है , जिसके चलते इंसानों ने इतनी तरक्की की है। इंसानों के अलावा भी कई जीव है, जो समूह में रहते हैं, लेकिन उनका समूह अमूमन अपने बुजुर्ग और बीमार लोगों का साथ छोड देता है। इंसानों के मामले में ऐसा नहीं है। आजकल के लोग भी अपने मां बाप, भाई बहन व सगे संबंधियों को भूलने लगे हैं। लोग आपसी सहयोग की नींव पर टिकी इमारत को खालिस मुनाफे की नजर से देखने लगे हैं। मतलब जहां फायदा नहीं, वहां पल भर भी समय नहीं गंवाते हैं आज के पढे लिखे महत्वाकांक्षी लोग। वे भूल जाते हैं कि जिस दरख्त की वे शाख हैं, उसकी जडों में कोई ऐसा भी है, वह अभी जिंदा है और आपको उंचाई पर पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका रही है। उनके साथ रहने से फायदा यह है कि वे आपसे अधिक दुनिया देखी है, जो अपने अनुभवों से सही गलत का रास्ता आपको बता सकते हैं और आनेवाली खतरों से सावधान भी कर सकते हैं। संभव है कि वह यह न बता पाएं कि आज के जमाने में क्या है सही, क्योंकि उसका जमाना कुछ अलग था और अब की रवायतें अलग हैं, लेकिन यह सही है कि जब आप हार थक कर आएंगे, वहीं सहारा देनेवाले और हिम्मत बढानेवाले होंगे आपके पास। लोग अक्सर भूल जाते हैं कि आज जिन लोगों की उम्र ने उन्हें असहाय बना दिया है, एक जमाना वह भी रहा होगा, जब उन सूखे दरख्तों में हरियाली रही होगी, जिनकी छांव में न जाने कितने लोग सुकून महसूस करते होंगे। आज बूढे हैं, कल वे जवान थे और उन्होंने भी अपने परिवार और समाज के लिए काफी कुछ किया होगा। मनुष्य का बचपन अक्सर शुरुआती चरणों में माता पिता के साए में बीतता है, नौजवानी में एक भरोसा रहता है कि कोई तो है, जिसे जरूरत के वक्त में ताका जा सके। फिर जीवन का वह उम्र आता है, जब उम्र जवाब देने लगती है। उस आनेवाले जेनरेशन का यह कर्तव्य बनता है कि जीवन संध्या में रोशनी करने का काम वो करें, जिनकी भोर को उन्होंने सुनहरा बनाया था। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि आप काम छोडकर घर बैठ जाएं। लेकिन हम इतना तो कर ही सकते हैं कि आप अवकाश में अपने घर जाएं, माता पिता और भाइयों के साथ कुछ समय बिताएं और संभव हो तो उनकी कुछ जरूरतों को पूरा करें। क्या आज हम कम उम्र में अच्छी नौकरी कर सकते हैं। बच्च्ो को अंग्रेजी स्कूल में पढा सकते हैं, लेकिन घर नहीं जा सकते। समय निकालेंगे, तो आप अवश्य जा सकते हैं। ऐसा करके न सिर्फ आप बीते कल को शुक्रिया कहेंगे, बल्कि आनेवाले कल की जिम्म्ेदार पीढी के मन में संस्कार के बीज बो सकेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें