शनिवार, 30 मार्च 2013

भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार


भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया है। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े। हमारे धर्म शास्त्रों में भी यही लिखा है कि यदि आपके घर कोई अतिथि आ जाए तो यथासंभव उसका सम्मान करना चाहिए क्योंकि अतिथि देवता के समान होता है। ऐसा करने से भगवान शंकर उसी प्रकार प्रसन्न होते हैं जिस तरह भील दम्पत्ति पर हुए थे। यह अवतार वर्तमान परिदृश्य में अतिथि की भूमिका का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। 

जब भील दम्पत्ति के अतिथि बने शिव

अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक- आहुका भील दम्पत्ति रहते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए। उन्होंने भील दम्पत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की। घर में स्थान की न्यूनता के कारण भील संकोच में पड़ गया। आहुका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुषबाण लेकर बाहर रात बिताने और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा। इस तरह आहुक धनुषबाण लेकर बाहर चला गया। प्रात:काल आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक का मार डाला है। इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए। तब आहुका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें। अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं। जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।

कोई टिप्पणी नहीं: