बुधवार, 20 मार्च 2013

गम से ही जीवन का सपना सजा लिया


अभी कुछ दिनों पहले ही घर से आया हूं। घर लगभग दो वर्ष के बाद गया था। पंद्रह दिन घर में बिताए। अब गांव के माहौल भी बदल गए हैं। वे लोग शहरी सभ्‍यता अपना रहे हैं। किसी को किसी से उस तरह का संबंध नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था। दुख हुआ मुझे यह देखकर लेकिन कुछ कर भी नहीं सकता था। नौकरी छोडने का मन जब से नौकरी ज्‍वाइन किया हूं, तब से है लेकिन अभी तक छोड नहीं पाया हूं। इसके उलट जब भी छूटने की आशंका होती है तो भगवान को मनाने लगता हूं। शादी भी हो गई है और एक बच्‍चा भी है। लोग कह रहे हैं कि बडा ही खुशहाल परिवार है। पडोसी भी कहते हैं कि अच्‍छी नौकरी है। लेकिन मेरा मन नौकरी नहीं करने की है। कोई विकल्‍प भी नहीं मिल रहा है। यह सोचकर कभी हताश और परेशान हो जाता हूं। स्‍वाभिमानी इतना हूं कि किसी से एक रुपया मांग नहं सकता हूं और इतनी सामर्थ्‍य नहीं है कि बहुत सारा पैसा कमा सकूं। बीवी कहती है कि इतने पैसे तो मेरा भाई दो दिनों में कमा लेता है तो भाभी कहती है कि इतने कम पैसों में आप कैसे रहते हैं। जबकि हकीकत यह है कि हमारे परिवार मजे से रह रहे हैं। उन्‍हें किसी प्रकार की दिक्‍क्‍त नहीं है। परेशानी सिर्फ मुझे है नौकरी करने में। आज ही स्‍टीव जॉब्‍स की जीवनी पढ रहा था। दिल को काफी सुकून मिला। अंत में यह शेर पढकर कुछ परेशानी कम करहा हूं कि

परेशानियों के दम पर टिकी है ये जिंदगी
इस गम से ही जीवन का सपना सजा लिया। 

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