मंगलवार, 27 जनवरी 2015

सुपरमैन वैभव

आजकल के बच्चे इतने इंटेलिजेंट होते हैं कि अगर उन्हें सही ’िाक्षा दी जाए तो सुपरमैन बन सकता है...

वैभव टीवी देख रहा था! कभी डोरे माम तो कभी कार्टून चैनल ही देखता था! अगर कोई पूछता कि तुम क्या बनना चाहते हो, तो तपाक से बोलता कि मैं सुपरमैन बनना चाहता हूं! उसके घर में सभी लोग काफी खु’ा हो जाते और दादा जी को समझ में नहीं आता कि इस बच्चे को कैसे आगे बढाया जाए! दरअसल,वे पुराने खयालात के आदमी थे! उनके समय में टीवी का प्रचलन नहीं था! रेडियो भी सभी के घरों में नहीं रहता था! जिसके घर में रेडियो रहता था, उसे अमीर और रसूखदार माना जाता था! जब किसी लडके की ’ाादी के बात होती थी, दहेज में रेडियो अव’य मांगा जाता था!
दादा जी कहते हैं कि उस समय इस तरह 24 घंटा न्यूज सुनने को नहीं मिलते थे, फिर भी हमलोगों को यह याद रहता था कि किस राज्य में किस दल की सरकार है और कौन इसका मुखिया है! वे कहते हैं कि आज का वातारण और सुविधा हमलोगों से भिन्न है, फिर आज का बच्चा उतना तेज नहीं हैं, जितना हमलोग हुआ करते थे! दादा जी अपने जमाने में बहुत तेज स्टूडेंट थे! उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उनकी पढाई खेती पर निर्भर थी! कहते हैं कि उस समय कोई स्कूल का कपडा नहीं होता था! लोगों को पहनने के लिए कपडे तक नहीं होते थे और किसी तरह स्कूल जाते थे! आज का जमाना तो पूरी तरह बदल गया है! हमलोगों के समय में अंगzेजी स्कूल भी नहीं होता था, फिर भी अंगzेजी अच्छी थी और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आज का बच्चा मुझसे बेहतर अंगzेजी न लिख सकता है और न ही बोल सकता है! खैर वह जमाना दूसरा था! फिर वह वैभव को समझाने लगे कि वैभव सुपर मैन कोई नहीं होता है, जो तुम बनना चाहते हो! बनना हो, तो आईएएस बनो, इंजीनियर बनो या डाWक्टर! मुझे इनमें से कुछ नहीं बनना है! बनना है तो सिर्फ सुपर मैन! समझे आप... सुपर मैन बनकर आपको आका’ा में लेकर उड जाउंगा और भगवान की पूजा आप रोज करते हैं, तो भगवान के पास पहुंचा दूंगा और फिर मम्मी को बहुत सारा सामान बाजार से खरीद दूंगा! दादा जी सीरियस हो गये और सोचने लगे कि सुपर मैन का यही अर्थ होता है ? यस दादा जी, सुपर मैन का मतलब ही यही होता है कि कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं हो! दादाजी अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए बोले कि यस सुपरमैन का मतलब यही होता है! इस कारण तुम पढकर आईएएस बन जाओ! इस पर तापाक से वैभव बोला कि हमारी उमz नहीं है अभी दादा जी आईएएस बनने का! उमz तो खेलने का है! दादी ने हमें यही बताई!उसका उत्तर सुनकर दादा और दादी दोनों खु’ा हो गये और एक साथ बोले कि मेरा पोता है सुपरमैन!

रविवार, 25 जनवरी 2015

एक संन्यासी को इस तरह के सम्मान से बचना चाहिए



आज न्यूज में देखा कि रजत ’ार्मा को भी सम्मान मिल गया! मुझे लगा कि मोदी साहब कुछ अलग करेंगे, लेकिन माफ करिएगा कि मुझे खराब लग रहा है! क्योंकि रजत ’ार्मा खुलेआम जेटली को दोस्त कबूल चुके हैं और इसका नजारा आप लोग भी इंडिया टीवी में देखे होंगे! फिर कल सुना कि बाबा रामदेव को सम्मान दिया गया, लेकिन वे लौटा दिए! सम्मान लौटाने के बाद मैं बाबा का मुरीद हो गया! यदि वे सम्मान ले लेते, तो उन्हें वो नहीं मिलता, जो उन्हें अब मिलेगा! सही कहा उसने कि एक संन्यासी को इस तरह के सम्मान से बचना चाहिए! सम्मान तो जनता का प्यार है, जो उसे मिल रहा है! काा रजत ’ार्मा भी एक उदाहरण पेा करते......

स्टीफन हाकिंस



 स्टीफन हाकिंस को ले सकते हैं, उन्हें किससे प्रेरणा मिलती है और उनका कौन मार्गदर्ाक बनता है ?उत्तर होगा कोई नहीं! क्योंकि स्टीफन हाकिंस जो भी कर रहे हैं, वे अपनी आत्मबल और खुद का अस्तित्व बचाने के लिए कर रहे हैं!मैं भी जब छोटा था, तो तालाब में नहाने के लिए दोस्तों के साथ जाते थे! पापा घर में डांटते थे कि तुम इसमें मत नहाओ! तुम्हें डूबने की आांका अधिक है, क्योंकि तुम ’ारीर से विकलांग हो! ल्ेकिन उस समय मुझे लग रहा था कि मैं भले ही ’ारीर से विकलांग दिखूं, लेकिन मैं वह सभी कर सकता हंू जो मेरे दोस्त कर रहे हैं! कहीं से मुझे कोई प्रेरणा देनेवाला नहीं था, कोई आगे बढानेवाला नहीं था और न ही रास्ता दिखानेवाला था!

 कल मैं टीवी पर एक न्यूज देख रहा था, उसमें यह दिखाया जा रहा था कि धनबाद की एक टीचर है, जिनके दोनों हाथ नहीं है! लेकिन अपनी जीवटता और उत्साह से टीचर हैं! वह पैरों से लिख रही है! देखकर आचर्य लगा और यह सोचने के लिए मजबूर हो गया कि इस तरह के लोग भी हैं, जमाने में जो आत्मबल के कारण आगे बढ रहे हैं! सोच रहा था कि आखिर यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें किससे प्रेरणा मिली होगी और उसे किस तरह का सपोर्ट मिला होगा? मैं अनुभव से यह कह सकता हूं कि इस तरह के लोगों को कोई सपोर्ट नहीं करता है! ये खुद ही सर्पोटर होते हैं और खुद ही संरक्षक भी! इन्हें भगवान से ऐसी ’ाक्ति मिली हुई होती है कि इन्हें किसी से प्रेरणा लेने की जरूरत नहीं पडती है, क्योंकि इस तरह का कारनामा करनेवाला वह पहला होता है और उसके पास इस तरह का कोई अनुभव नहीं होता है! उदाहरण के लिए स्टीफन हाकिंस को ले सकते हैं, उन्हें किससे प्रेरणा मिलती है और उनका कौन मार्गदर्ाक बनता है ?उत्तर होगा कोई नहीं! क्योंकि स्टीफन हाWकिंस जो भी कर रहे हैं, वे अपनी आत्मबल और खुद का अस्तित्व बचाने के लिए कर रहे हैं!मैं भी जब छोटा था, तो तालाब में नहाने के लिए दोस्तों के साथ जाते थे! पापा घर में डांटते थे कि तुम इसमें मत नहाओ! तुम्हें डूबने की आांका अधिक है, क्योंकि तुम ’ारीर से विकलांग हो! ल्ेकिन उस समय मुझे लग रहा था कि मैं भले ही ’ारीर से विकलांग दिखूं, लेकिन मैं वह सभी कर सकता हंू जो मेरे दोस्त कर रहे हैं! कहीं से मुझे कोई प्रेरणा देनेवाला नहीं था, कोई आगे बढानेवाला नहीं था और न ही रास्ता दिखानेवाला था! खुद ही संरक्षक था और खुद ही मार्गदर्ाक! इसका मतलब यह नहीं कि परिवार वाले मेरे सपोर्टर नहीं थे और मेरी अच्छी देखभाल नहीं हो रही थी! बल्कि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मुझे अन्य भाई बहनों से अधिक प्यार मिलता था और अच्छी सुविधा भी, जिसका मैंने काफी उपयोग किया! परिवार का सपोर्ट ही था कि मुझे पंदzह साल तक यह पता नहीं चला कि मैं विकलांग हूं और यह काम नहीं कर सकता हूं! जब मुझे इसका अहसास हुआ, तो उसके बाद हमेाा मेरे लिए स्पीड बzेकर का काम किया! बचपन में अनजाने में ही हमने वे कारनामे कर दिए, जो अब सोचता हूं,तो असंभव लगता है!

मैं दोस्तों के साथ कबडडी खेलता था और किसी से भी कम नहीं था! हुआ यूं कि एक दिन मैं भी बोला कि कबडडी खेलूंगा! खेलने के दौरान मेरी टीम हार गयी और हार का ठीकरा मुझ पर डाला गया कि इन्होंने कुछ नहीं किया! लेकिन मेरा आत्मविवास सातवें आसमान पर था और मैं कहीं से भी यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि मैं इनलोगों से किसी भी तरह का ककमजोर हूं! हमने फिर से मैंच खेला और जीतकर ही दम लिया! सबसे बेहतर परपफाWरमेंस मेरा रहा! मुझे अपनी उपयोगिता और काबिलियत दिखानी थी! उस समय मेरा कोई मार्गदर्ाक नहीं था और कोई बनाया हुआ सीधा रास्ता भी नहीं था! खुद रास्ता बनाना था औार खुद ही उसे पार भी करना था!इसे पार करने में हमें किसी प्रकार की परेाानी भी नहीं हो रही थी, क्योंकि यह मेरा फैसला था!उसी समय मुझे यह अहसास हुआ कि अगर आप खुद कोई फैसला लेते हैं, तो सफलता के चांसेज कई गुना अधिक बढ जाते हैं! इस तरह के अनुभव का अभी तक उपयोग कर रहा हूं और आगे भी बढ रहा हूं! कबडउी खेलने के दौरान मुझे लगा कि मैं खडा नहीं हो सकता हूं, लेकिन आसउट कर सकता हूं! मैं घुटने के बल पर चलता था और इतनी स्पीड थी कि विरोधी टीम हमें छू भी नहीं पाता था और जो मुझे टारगेट करके पकडने आते थे, तो उसके टांग पर हमारी नजर रहती थी और हमेाा उसका टांग पकडने की कोिाा करता था और हमेाा सफल रहता था! वह गिर जाता था और हमारे टीम के सभी सदस्य उसे पकडकर आउट कर देते थे! यह एक अलग तरह का अनुभव था और इस खासियत की वजह से हमें सभी टीम में जगह मिल जाता था!                
जब मैं तैराक बन गया
घर से मनाही के बावजूद नहाने जाता था और जैसे सभी दोस्त तैरने के लिए मेहनत करते थे, मैं भी करता था! इसका सकारात्मक प्रभाव यह पडा कि मैं भी उन्हीं की तरह तैराक बन गया और कभी वह जीतता था, तो कभी मैं! सभी को आचर्य लगता था कि यह लडका कैसे तैर रहा है और मैं काफी खुा होता था कि लोग मुझे देख रहे हैं! यह एक अलग तरह का अनुभव था! इसके अलावा मुझे जब कोई देखते थे, तो मैं हमेाा बचने की कोिाा करता था, क्योंकि वे हमेाा हमें हीन या दया की भाव से ही देखते थे! ल्ेकिन नदी में तैरते हुए देखते थे, तो काफी खुा होता था! मैं बैटिंग भी करता था और अपनी टीम में बाWलिंग और फील्डिंग भी करता था! एक रनर रखता था, जो मेरे लिए दौडता था! उसके रन आउट के चांस अधिक होते थे, इस कारण हम रन लेने का जोखिम कम लेते थे और टीम का स्कोर बढाने के लिए चौका और छक्का पर ध्यान देते थे! इसका लाभ यह मिला कि जब तक मैं कzीज पर रहता था, तो तेंदुलकर की तरह जीत पक्की रहती थी और इसमें कई बार सफल भी रहा! लेग साइड इतना मजबूत था कि अगर गलती से बाWल लेग साइड आता था, तो वो बाWल चार या सिक्स के लिए जरूर जाता था! इसी तरह के कई अनुभवों के माध्यम से मैंे यह कह सकता हूं कि इस तरह के लोग खुद से आगे बढते हैं! उन्हें कोई सहारा नहीं होता है, जो टूट जाते हैं, वे पिछड जाते हैं!   

शनिवार, 24 जनवरी 2015

भारत में एक ही सरदार रहेंगे


हमें मेक इन इंडिया को भी गौर से देखना चाहिए और ठोक बजाकर अमेरका से सौदा करना चाहिए! तभी मोदी सच्चे अर्थों में बनिया कहलाएंगे और सन W सरदार कहलाने के भागी बनेंगे अन्यथा भारत में एक ही सरदार रहेंगे और उन्हें अमर रखने के लिए स्टेच्यू पर सभी पैसे खर्च करने पडेंगे! और सभी लोग सन W सरदार बनकर मेड इन स्टेच्यू W सरदार ही बनने में ही मस्त रहेंगे! मेक इन इंडिया जय जवान जय किसान की तरह नारा बनकर ही रह जाएगा और निर्मल गंगा लगातार स्वच्छता अभियान मेें निर्बल ही बनती जाएगी और बेचारा लोग मरने के बाद भी गंगा में पानी के अभाव में zेन से मलबे के रूप में फेंके जाएंगे! क्योंकि यह तो तय है कि जिंदा लोग भले ही zंगा नहाने वहां नहीं जाएं, लेकिन मरने के बाद लोगों को स्नेह दिखाने के लिए वे अपने पैरेंटस को गंगा में डुबकी जरूर लगाएंगे! यह मानव स्वभाव है कि आदमी जिंदा रहते भले ही अपनी परंपरा की खिल्ली उडाए, लेकिन अंत में वह उसी परंपरा का पक्षपाती हो जाता है, जिसे वह उमz भर नकराता रहता है! यदि ऐसा नहीं होता तो कफन में प्रेमचंद यह कहते हुए नहीं मिलते कि समाज जिंदा व्यक्ति को तो नंगा देख सकता है, लेकिन मरने के वक्त उसे कफन मिले, यह उसे बर्दास्त नहीं है! प्रेमचंद के स्टाइल में यदि कहें, तो भले ही जिंदा लोग गंगा का पानी पीने से खुद को परहेज करे, लेकिन भगवान को पिलाने और मरने वक्त पानी में गंगा का जल ही मांगेगे, यह तय है! और उसके बेटे उन्हें गंगा में डुबकी जरूर लगवाएंगे, क्योंकि वे भी जिंदा में उन्हें भूख से अपनी हाल पर मरने के लिए छोड दिए थे और मरने के बाद लोगों को खु करने के लिए वे सभी करेंगे, जो उन्हें जिंदा रहने पर नसीब नहीं हुआ था, कुछ आंसू भी बहाएंगे और अपनी गलतियों पर परदा भी डालेंगे, तभी समाज उन्हें माफ कर सकेगा! और उनकी व्यवस्था को देखकर समाज के लोग उनका जयजयकार करेंगे और वे फूले नहंीं समाएंगे! अगर किसी कारणव गंगा में उनकाारीर प्रवाह नहीं कर पाएंगे, तो उनका अस्थि गंगा में जरूर प्रवाहित करेंगे, यह तय है! इस तरह की धार्मिक भावना और लोगों की धारणा को समझते हुए उमा भारती पहले ही मास्टरी दिखाते हुए कह चुकी हैं किाव को गंगा में प्रवाहित किया जाए या नहीं, यह संत तय करेंगे! उन्हें पता है कि संत की संतगिरी पुरानी परंंपरा को जीवित रखने में ही है! इस कारण वे इस तरह के जोखिम नहीं ले सकते कि गंगा में प्रवाहित किया जाए! इससे गंगा की महत्ता कम हो जाएगी और संत के गंगा स्नान की महत्ता भी!इससे गंगा स्नान पर सवालिया निाान भी लग जाएगा और गंगा में प्रवाहित होने के बाद मोक्ष की प्राप्ति भी संदेह के घेरे में जाएगी और मोदी साहब का सरकासरी तोता यानी कि सीबीआई को यह पता लगाने के लिए कह दिया जाए कि गंगा स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है कि नहीं ? इनके दोनों हाथों में लडडू होंगे! अगर मोक्ष की प्राप्ति होती होगी, तो मोदी को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि देखिए, नेहरू कितने चालाक थे, तभी तो वे अपना अस्थि गंगा में विसर्जित करके खेतों में विसर्जित करने के लिए कह रहे थे, क्योंकि उन्हें मालूम था कि गंगा से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है! इसके उलट अगर सही निकला तो गंगा सिर्फ हिंदुओं के लिए सुरक्षित हो जाएगा, क्योंकि मोक्ष हिंदू के लिए अनिवार्य हो जाएगा और गंगा का पानी उसे ही नसीब हो पाएगा, जो हिंदू बनेंगे! इससे हिंदू राज्य बनने में सहयोग मिलेगा, जो उनका हिडन एजेंडा है!