आज से तीस
साल पहले उत्तर
भारत में इंजीनियरिंग
का इतना कzेज था
कि बिहार और
यूपी में सिर्फ
इंजीनियरिंग काWलेजों
में एडमि’ान
से ही दस
से पंदzह
लाख दहेज पक्का
हो जाता था
और इंजीनियर जमाई
पाकर वे घाटे
में नहीं रहते
थे और खुद
को खु’ानसीब
समझते थे कि
जमाई इंजीनियर साहब
हैं! इसका सकारात्मक
प्रभाव यह पडा
कि हर मां
बाप बेटे को
इंजीनियर बनाने के लिए
जमीन तक बेचने
लगा! उस समय
यही सुनने में
आ रहा था
कि दक्षिण भारतीय
लोग बिzलिएंट
होते हैं और
यही कारण है
कि वहां के
अधिकतर स्टूडेंट इंजीनियर या
साइंटिस्ट होते हैं!
अब सुनने में
आ रहा है
कि उत्तर भारत
ने दक्षिण भारत
को इस मामले
में पछाड दिया
है और इंजीनियरिंग
करनेवालों की संख्या
अब यहां ज्यादा
है!सुनकर काफी
खु’ाी मिली
कि अब हम
भी आगे बढ
रहे हैं, लेकिन
यह क्या आज
सरकारी चपरासी का दहेज
इंजीनियर से ज्यादा
है और खुद
मां बाप भी
अब अपने बच्चे
को इंजीनियर नहीं
बनाना चाहते हैं!
सैकडों उदाहरण उनके सामने
हैं! जब इस
मामले में गहराई
से जानने की
को’िा’ा
किया तो पता
चला कि दक्षिण
भारतीय अब इंजीनियरिंग
छोडकर कोई और
पे’ाा अपना
लिए हैं और
इंजीनियरिंग काWलेजों
का बzांच
अब उत्तर भारत
’िाफट हो रहा
है! यही कारण
है कि आज
के इंजीनियर आपको
हर उस गांव
में मिल जाएंगे,जहां अभी
बिजली और सडक
तक नहीं पहुंच
पाई है! यह
अलग बात है
कि वे इंजीनियरिंग
में अच्छी खासी
रकम खर्च करके
अभी बैंक क्लर्क
की तैयारी कर
रहे हैं और
इंटरव्यू में प्लेसमेंट
का न होने
का रोना रो
रहे हैं!
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