शनिवार, 24 जनवरी 2015

आज से तीस साल पहले उत्तर भारत में इंजीनियरिंग




आज से तीस साल पहले उत्तर भारत में इंजीनियरिंग का इतना zेज था कि बिहार और यूपी में सिर्फ इंजीनियरिंग काWलेजों में एडमिान से ही दस से पंदz लाख दहेज पक्का हो जाता था और इंजीनियर जमाई पाकर वे घाटे में नहीं रहते थे और खुद को खुानसीब समझते थे कि जमाई इंजीनियर साहब हैं! इसका सकारात्मक प्रभाव यह पडा कि हर मां बाप बेटे को इंजीनियर बनाने के लिए जमीन तक बेचने लगा! उस समय यही सुनने में रहा था कि दक्षिण भारतीय लोग बिzलिएंट होते हैं और यही कारण है कि वहां के अधिकतर स्टूडेंट इंजीनियर या साइंटिस्ट होते हैं! अब सुनने में रहा है कि उत्तर भारत ने दक्षिण भारत को इस मामले में पछाड दिया है और इंजीनियरिंग करनेवालों की संख्या अब यहां ज्यादा है!सुनकर काफी खुाी मिली कि अब हम भी आगे बढ रहे हैं, लेकिन यह क्या आज सरकारी चपरासी का दहेज इंजीनियर से ज्यादा है और खुद मां बाप भी अब अपने बच्चे को इंजीनियर नहीं बनाना चाहते हैं! सैकडों उदाहरण उनके सामने हैं! जब इस मामले में गहराई से जानने की कोिा किया तो पता चला कि दक्षिण भारतीय अब इंजीनियरिंग छोडकर कोई और पेाा अपना लिए हैं और इंजीनियरिंग काWलेजों का zांच अब उत्तर भारतिाफट हो रहा है! यही कारण है कि आज के इंजीनियर आपको हर उस गांव में मिल जाएंगे,जहां अभी बिजली और सडक तक नहीं पहुंच पाई है! यह अलग बात है कि वे इंजीनियरिंग में अच्छी खासी रकम खर्च करके अभी बैंक क्लर्क की तैयारी कर रहे हैं और इंटरव्यू में प्लेसमेंट का होने का रोना रो रहे हैं!

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