शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

आप ही बताइये न

जब मैं बच्चा था, तो इस बात से हमेशा परेशान रहता था कि पिताजी तीन सहोदर भाई होने के बावजूद कैसे अलग हैं। जब वे अलग खाते हैं, तो दूसरे भाई की याद नहीं आती है? क्या हमलोग भी अलग होंगे और अलग-अलग खाना पकाएंगे? मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। उस समय मैं यही सोच रहा था। हम पांच भाई हमेशा साथ रहेंगे। हमारी इजाजत के बिना हमें कोई नहीं अलग कर सकता। अब हालात ये हैं कि एक शहर में चार भाई रहते हुए भी अलग-अलग हैं। जाहिर है खाना भी अलग ही बनाते हैं। अब उनके दुख से हमें कम दुख होता है और धीरे-धीरे हमलोगों में खासी दूरी बन गई है। लेकिन पढ़े-लिखे हैं, तो जब भी मिलते हैं खाने-पीने का खूब आनंद लेते हैं। सभी नौकरी करते हैं। इस कारण हमलोग गांव में अलग भी नहीं हुए हैं। घर जाने पर साथ खाना खाते हैं और भरपूर आनंद भी उठाते हैं। लेकिन अब डर यह नहीं सताता है कि कैसे अलग रहेंगे? वक्त का तकाजा है या हम खुद बदल गए हैं। यह मैं नहीं बता सकता। यदि संभव हो, तो आप ही बताइये न। प्लीज कृपा होगी।

1 टिप्पणी:

sunil ने कहा…

इसमें कोई अचरज वाली बात नहीं है ...बिल्कुल वक्त का तकाजा है। उम्र के हर पड़ाव पर नई जिम्मेदारियां सामने आती हैं और नए रिश्ते बनते हैं। उन सब रिश्तों के बीच ऐसा भी नहीं है कि पुराने खत्म हो जाते हैं, हां रिश्तों की प्राथमिकता जरूर बदल जाती है।