लोग हमें कामयाब समझकर खुश हो रहे थे और मेरी तरह बनने के लिए कह रहे थे, तो मैं कामयाबी का अर्थ समझ रहा था और बर्बादियों का जश्न मनाने में मशगूल था।
उस समय अक्सर मैं भ्रम में रहता था कि आदमी खुशी और कामयाबी में से किसे वरीयता दे? जब बच्चा था, तो पापा यही बताए थे कि यदि तुम अपने उद्देश्यों में कामयाब हो जाओ, तो खुशियां अपने आप आ जाएगीं। पापा ही नहीं, टीचर और अन्य सभी लोग भी यही कहते थे। इस कारण उस समय संदेह की गुंजाइश ही नहीं थी। उस समय कामयाबी एक सपना था, तो खुशी हकीकत। मुझे याद है कि उस समय मैं छोटी-छोटी चीज मिलने पर भी काफी खुश हो जाता था। उस समय मुझे यह पता नहीं था कि यही स्वर्णिम समय है खुशी पाने का। कामयाब व्यक्ति को देखकर अनेक तरह की कल्पना करता रहता था उस समय। कामयाब बनने के लिए दिनरात लग गया अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में। मेहनत का नतीजा या किस्मत कहिए कि लगभग पच्चीस की उम्र में देश के प्रतिष्ठित अखबार में नौकरी भी मिल गई। उस दिन काफी खुश था इसे पाकर। मुझे लगा कि अब हमें खुशियां ही खुशियां मिलेगी। याद है मुझे कि जब नौकरी मिली थी, तो गांव के सभी लोग काफी खुश थे। मैं भी उन लोगों के बदले व्यवहार से खुश था। मुझे लगा कि मंजिल मिल गई। अब सिर्फ परमानेेंट खुशियां आनी हंै।
सपना हो न सका अपना
नौकरी के दूसरे दिन से ही सपना देखना शुरू कर दिया। हर रोज वही ऑफिस और बॉस का मनहूस चेहरा। ऑफिस में उनका चेहरा देखना लाचारी था, लेकिन कमबख्त रात के अंधेरे में भी वही ऑफिस और बॉस सपने में दिखाई दे रहा था। एक बार लाइट जलाकर सो गया, तो नींद में सपने देखने लगा। मुझे लगा कि शायद लाइट का फायदा उठाकर वे हमारे कमरे में घुस गए हों। इस कारण उस दिन से लाइट बंद करके सोता हूं। लेकिन सपना आना बंद नहीं हुआ। लोग हमें देखकर काफी खुश थे और परिवार वाले की अपेक्षा मुझ पर बढ़ गई थी। लेकिन उस समय मेरी हालत न भागा जाए है हमसे और न ठहरा जाए है हमसे जैसी थी। यदि मैं नौकरी छोड़ता तो लोगों की नजरों में नाकामयाब कहलाने का डर था। इसकी संभावना मात्र से ही रूह कांप उठती थी। इसके विपरीत नौकरी में रहकर अंदर से और कमजोर हो रहा था। उस समय मुझे यह अहसास दिलाया गया कि मुझे कुछ भी नहीं आता है। इससे काफी परेशान हो गया। एक सीनियर ने हमें बताया कि इस तरह की स्थिति हर नए लोगों के साथ होती है। तुम अपवाद नहीं हो। विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन दिलासा के लिए न मानने के सिवा कोई और विकल्प नहीं था। उस समय खुशी शब्द ही भूल गया। स्वयं को एक लाश के समान समझता था। दुनिया हमें खुशनसीब और कामयाब समझ रही थी। और हम कामयाबी का मतलब धीरे-धीरे समझ रहे थे। वक्त का एक-एक लम्हा काटना मुश्किल हो रहा था। इस आशा से काम करता जा रहा था कि सब कुछ सीखने के बाद खुशियां ही खुशियां आएंगी। उसी समय सही अर्थों में कामयाब कहलाऊंगा। लेकिन अब पता चला कि आदमी कभी भी पूर्ण नहीं होता है, उसे हर दिन सीखने पड़ते हैं। स्वयं को दिलासा देने के लिए उन सभी लोगों से मिला, जिन्हें मेरे साथ सभी लोग कामयाब कहते हैं। उनसे संबंध बढ़ाया और दिल की बात जानने की कोशिश की। लेकिन कहीं भी कामयाब व्यक्ति को अपनी जिंदगी से खुश नहीं देखा। इसके विपरीत वे हमसे ज्यादा तनाव में थे। जब सत्यम के सीईओ को जेल जाने की खबर पढ़ी, तो पक्का विश्वास हो गया कि कामयाबी और खुशी एक साथ कभी नहीं मिल सकती है।
यदि आप कामयाब हो रहे हैं, तो कुछ पलों के लिए खुशियां अवश्य आएंगी और फिर विलुप्त हो जाएगी। खुशी पाने के लिए फिर से कामयाब होना पड़ेगा। यह जिंदगी में अनवरत जारी रहेगी। अब मैं यह समझ रहा हूं कि कामयाबी का कोई अंत नहीं है। खुशियां भी इन्हीं पीछे-पीछे चलती है। यदि आपको सही में खुश रहना है, तो संतुष्टï होना पड़ेगा। यदि आप संतुष्टï हैं, तो जिंदगी की गाड़ी के पहिए भले ही लोगों की नजर में पंक्चर है, लेकिन यह तय है कि उसी गाड़ी से आप जिंदगी का नैया पार लगा लेंगे। जबसे मुझे इस बात का अहसास हुआ है, तब से काफी खुश हूं। भले ही आप मुझे कायर समझिए, अब कामयाबी के लिए मैं नहीं दौड़ सकता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें