शुक्रवार, 8 जनवरी 2010
हंगामा क्यों बरपा
मेरा एक घनिष्ठतम दोस्त है। जाहिर है हमारे विचार भी उनसे काफी मिलते हंै। अंतर यह है कि वह सिगरेट नियमित लेकिन शराब कभी-कभी पीता है। कभी-कभी इसलिए कि उन्हें पत्नी से डर लगता है या उनके शब्दों में वह पत्नी की इज्जत करता है। इससे पहले मैं यही सोचता था कि शराबी किसी के नहीं होते हैं। नशे में वे खुद का भी खयाल नहीं करते हैं। लेकिन अब मुझे अपना विचार बदलना पड़ रहा है। मुझे लगता है कि शराबी के प्रति मैं काफी सख्त हो गया था। वे इस तरह के नहीं हैं, जैस मैं सोच रहा था। उनके पास भी दिल होता है। वे भी दूसरे की भावनाओं को समझ सकते हैं। फिर क्यों हम हंगामा करते हैं। क्या एक घूंट पीने से उसका ईमान घट गया? हमलोग भी तो कुछ न कुछ पीते ही हैं। कोई जाम पीता है, तो कोई नजरों से पीता है। कोई जाम और नजर दोनों पीता है। भाई मेरी तो भविष्य में यही तमन्ना है कि मैं पानी, जाम और नजर तीनों को पीऊं। और यह गजल गाऊं कि हंगामा क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है। लोग हमको कहे काफिर, अल्लाह की मर्जी है।
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1 टिप्पणी:
बहुत घाघ टाइप से लिखे हैं गुरु। निशाना कहां है, सब समझ में आता है। वैसे यह बात सौ फीसदी सच है।
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