बुधवार, 9 नवंबर 2011

अंधा ने अंधी के इज्‍जत को तार तार कर द‍िया

प‍िछले द‍िनों अखबार में एक खबर छपी थी क‍ि एक अंधा ने अंधी के इज्‍जत को तार तार कर द‍िया। इस तरह की घटना पहली बार सुना था। इस कारण इसे सबसे पहले पढा क‍ि आख‍िर यह संभव कैसे हुआ। कहानी यह थी क‍ि एक अंधे की शादी अंधी लडकी से हुई और दोनों काफी खुश थे। कि‍सी कारणवश उसे बाहर जाना पडा। अपनी पत्‍नी की रक्षा की ज‍िम्‍मेदारी  उन्‍होंने अपने अंधे दोस्‍त को  सौंपकर चला गया। उसके अंधे दोस्‍त ने उनकी पत्‍नी की इज्‍जत लूट ली। जो अखबार में एक सनसनीखेज खबर बन गई। उस दि‍न से मैं काफी परेशान हूं क‍ि आखि‍र यह अन्‍य खबर से अलग क्‍यों दि‍ख रहा है। इस समय मुझे प्रश्‍न मन में आ रहे हैं, जो परेशान कि‍ए हुए है।  प्रश्‍न इस प्रकार है

क्‍या अंधा को अंधा दोस्‍त ही  मि‍ला अपनी पत्‍नी की देखभाल करने के  ल‍िए। 

अंधा ने उस अंधी लडकी की इज्‍जत क्‍यों लूटी। 

काफी सोचने के बाद मैं इस नि‍ष्कर्ष  पर पहुंचा क‍ि मेरे अंधे भाई सोचे होंगे क‍ि आंख वाले दोस्‍त इससे भी खतरनाक होते हैं, क्‍योंक‍ि वे आंखों से शारीरि‍क सुंदरता देख सकते हैं।  और सुंदरता तो इतनी बला होती है क‍ि जि‍सने भी नजर डाली, बूरी नजर डाली। कम से कम उसकी पत्‍नी बूरी नजर से तो बच ही गई।  महिलाओं के बारे में…ऊंची-ऊंची बातें…घर में, परिवार में, सड़क पर दफ्तर में, मंच पर…। मगर, अकेले में नारी के प्रति विपरीत सोच, अर्थात हर आंख निहारती है देह। लैला-मजनूं व हीर-रांझा की प्रेम कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह गई हैं। प्रेम की परिभाषा बदल चुकी है। नारी को देवी का दर्जा सिर्फ भाषणों में ही दिया जा रहा है। यदि ऐसा न होता तो हर विज्ञापन में अद्र्धनग्न नारी न दिखती। नेताओं की पार्टी में अद्र्धनग्न युवतियों को नहीं नचाया जाता। बलात्कार की घटना में अप्रत्याशित वृद्धि नहीं होती। टेलीविजन पर चल रहे कार्यक्रम को पिता-पुत्री साथ बैठकर देखने से परहेज नहीं करते। लेकिन यह हो रहा है…। वहीं, सोलह की उम्र में पैर रखते ही छात्र-छात्राओं में दोस्ती के प्रति बेचैनी नहीं बढ़ती। चंद दिनों में ये प्रेमी-प्रेमिका भी न बनते? मगर, यह भी हो रहा है…। क्योंकि प्रेम तो कहीं है ही नहीं, प्रेम तो हवश का रूप ले चुका है। उसे तो चाहिए बस देह सुख। तभी तो, बच्ची बन रही ‘बच्ची’ की ‘मां’…। ये सभी काम आंखवाले देख रहे हैं और कर रहे हैं। इस मामले में इसे आंख वाले से अधिक वरीयता मि‍लनी चाहि‍ए। मुझे लगता है क‍ि इसी कारण उन्‍होंने अपने अंधे दोस्‍त पर वि‍श्‍वास  कि‍या होगा। लेकि‍न यह क्‍या उन्‍होंने आंखवालों की तरह हरकत कर दी। अब कि‍स पर वि‍श्‍वास कि‍या जाए। सुना है क‍ि डायन भी दस घर छोडकर डायन करती है। आजकल सभी अपनी जात‍ि की रक्षा के लि‍ए संसद तक  मार्च करते हैं और बल‍िदान तक देने के लि‍ए तैयार रहते हैं। यद‍ि कि‍सी  जात‍ि पर  उनकी ही जात‍ि के लोग अत्‍याचार करता है, तो कुछ भी नहीं होता है। अगर पंडीजी के बेटे ने भगवान को गाली दे दी, तो चलेगा, लेकिन यही बात मुस्‍लि‍म कर दे तो दंगा फैल जाएगा। वास्‍तव में अब मानवीयता नाम की चीज नहीं रह गई है। रि‍लेशन की पर‍िभाषा भी आधुनि‍क तरीके से तर्क सहि‍त अपने फायदे के लि‍ए बनाई जा रही है।  आज कहीं हवशी पि‍ता अपनी बेटी की आबरु लूट रहे हैं, तो कहीं मां अपने बेटे के साथ संबंध बना रही है। इस मामले में भाई बहन भी पीछे नहीं हैं। आजकल इस तरह की खबरें न्‍यूज पेपर में छपती रहती है और समाज के लोग अब इस तरह की घटना के आदी हो गए हैं। अब उन्‍हें इस तरह की घटना सामान्‍य लग रही है, जबक‍ि एक एक इस तरह की कल्‍पना करने से पाप लगता था। कहने का आशय यह है क‍ि इस वातावरण में आप  कि‍सी पर भी व‍ि‍श्‍वास नहीं कर सकते हैं। लेकि‍न व‍िश्‍वास पर दुनि‍या कायम है। 

बेवफाई का अहसास इन ,
हवावों में क्यों है तारी ।

क्या किसी भरोसे को फिर,
तोड़ने की है बारी ।

पहले के जख्म अभी सूखे भी नही ,
फिर क्या दूसरे जख्मों की है तय्यारी ।

करते रहे इलाज जिस्म के दागों की ,
आखिर में पता चला ये,,तो दिल की है बीमारी।

        ‍       
     

कोई टिप्पणी नहीं: