चुंबन से आत्मिक प्रेम बढेगा और धर्मगुरु एक दूसरे धर्म के बारे में गलत
बातें कम फैलाएंगे। इसमें उन्हें किसी प्रकार की परेशानी भी नहीं होगी,
क्योंकि पुरुष धर्मगुरु दूसरे पुरुष के होठ चुसेंगे। लेकिन डर लगता है
कि यदि बाबा रामदेव किसी का होठ चुसेंगे, तो उन पर क्या गुजरेगी।
आजकल सभी फिल्मों में लीप लॉक अनिवार्य सा हो गया है। कोई भी फिल्म इसके बिना हिट नहीं होती है। यह बात हमारे धर्म गुरु को भी अच्छी लगी। इस समय हालात ये हैं कि उन्हें कोई भाव नहीं दे रहा है। अपनी चर्चा के लिए उन्होंने लीप लॉक का हिट फिल्मी फार्मूला अपनाया। यह सीन काफी हिट रहा और यूरोपीय देशों में एक इतालवी कंपनी के ' अनहेट ' सीरीज के विज्ञापन इधर कुछ ज्यादा ही चर्चा में हैं। इनमें एक - दूसरे से तीखी घृणा के लिए पहचाने जाने वाले लोगों को - जो प्राय : पुरुष ही हैं - फोटोशॉप के जरिये तैयार की गई नकली तस्वीरों में एक - दूसरे को होंठों पर चूमते दिखाया गया है। कुछेक पश्चिमी और कुछ अरबी समाजों में मुलाकात के वक्त गाल से गाल सटाने की परंपरा है। जब - तब भावातिरेक में लोग एक - दूसरे को गाल पर चूम लेते हैं , लेकिन होठों पर चुंबन का वहां एक स्पष्ट सांस्कृतिक संदर्भ है। ईसाई परंपरा में पति अपनी नवविवाहिता पत्नी को सार्वजनिक रूप से सिर्फ एक बार होंठों पर चूमता है। बाकी सभी संदर्भों में होठों पर चुंबन निजी दायरे की चीज समझी जाता है और इसे यौन संसर्ग के एक हिस्से की तरह देखा जाता है। स्वाभाविक था कि यूरोप में इस पूरी सीरीज पर , और खासकर इसकी उस तस्वीर पर तीखी प्रतिक्रिया देखी गई , जिसमें मौजूदा पोप को मिस्र के एक कट्टरपंथी मौलवी के साथ होंठ से होंठ मिलाए दिखाया गया था। लोगों के विरोध से विज्ञापन जारी करने वाली कंपनी बुरी तरह डर गई और उसने अनहेट सीरीज से इस तस्वीर को हटा देने का फैसला कर लिया। लेकिन इस सीरीज के बाकी सारे हिस्से आज भी ज्यों के त्यों हैं। विज्ञापन की नई थ्योरी में चर्चित होना ही सब कुछ समझा जाता है , भले ही चर्चा की वजह सही हो या गलत। लेकिन विज्ञापन बनाने वालों में सबसे ज्यादा शातिर लोग अपनी चर्चा के फॉर्म्युले में कोई फिलॉसफिकल एंगल भी जोड़ना चाहते हैं , ताकि उनके प्रॉडक्ट के बारे में होने वाली बात ज्यादा दीर्घजीवी हो सके। मसलन , अनड्रेस ( निर्वस्त्र होने ) की तर्ज पर बनाए गए शब्द अनहेट को इसके साथ छपने वाली तस्वीरों से जोड़कर देखें तो एकबारगी ऐसी गफलत हो सकती है कि इसमें लोगों से एक - दूसरे के प्रति जाति , नस्ल , धर्म आदि पर आधारित घृणा को छोड़कर विश्वशांति की तरफ बढ़ने की अपील की गई है। कहना कठिन है कि शांति के ऐसे चाकलेटी फॉर्म्युले लोगों को करीब लाते हैं , या उन्हें खिझाकर एक - दूसरे से और ज्यादा दूर धकेल देते हैं।मुझे तो लगता है कि इससे लोग काफी करीब आएंगे। क्योंकि चुंबन से आत्मिक प्रेम बढेगा और धर्मगुरु एक दूसरे धर्म के बारे में गलत बातें कम फैलाएंगे। इसमें उन्हें किसी प्रकार की परेशानी भी नहीं होगी, क्योंकि पुरुष धर्मगुरु दूसरे पुरुष के होठ चुसेंगे। लेकिन डर लगता है कि यदि बाबा रामदेव किसी का होठ चुसेंगे, तो उन पर क्या गुजरेगी।
आजकल सभी फिल्मों में लीप लॉक अनिवार्य सा हो गया है। कोई भी फिल्म इसके बिना हिट नहीं होती है। यह बात हमारे धर्म गुरु को भी अच्छी लगी। इस समय हालात ये हैं कि उन्हें कोई भाव नहीं दे रहा है। अपनी चर्चा के लिए उन्होंने लीप लॉक का हिट फिल्मी फार्मूला अपनाया। यह सीन काफी हिट रहा और यूरोपीय देशों में एक इतालवी कंपनी के ' अनहेट ' सीरीज के विज्ञापन इधर कुछ ज्यादा ही चर्चा में हैं। इनमें एक - दूसरे से तीखी घृणा के लिए पहचाने जाने वाले लोगों को - जो प्राय : पुरुष ही हैं - फोटोशॉप के जरिये तैयार की गई नकली तस्वीरों में एक - दूसरे को होंठों पर चूमते दिखाया गया है। कुछेक पश्चिमी और कुछ अरबी समाजों में मुलाकात के वक्त गाल से गाल सटाने की परंपरा है। जब - तब भावातिरेक में लोग एक - दूसरे को गाल पर चूम लेते हैं , लेकिन होठों पर चुंबन का वहां एक स्पष्ट सांस्कृतिक संदर्भ है। ईसाई परंपरा में पति अपनी नवविवाहिता पत्नी को सार्वजनिक रूप से सिर्फ एक बार होंठों पर चूमता है। बाकी सभी संदर्भों में होठों पर चुंबन निजी दायरे की चीज समझी जाता है और इसे यौन संसर्ग के एक हिस्से की तरह देखा जाता है। स्वाभाविक था कि यूरोप में इस पूरी सीरीज पर , और खासकर इसकी उस तस्वीर पर तीखी प्रतिक्रिया देखी गई , जिसमें मौजूदा पोप को मिस्र के एक कट्टरपंथी मौलवी के साथ होंठ से होंठ मिलाए दिखाया गया था। लोगों के विरोध से विज्ञापन जारी करने वाली कंपनी बुरी तरह डर गई और उसने अनहेट सीरीज से इस तस्वीर को हटा देने का फैसला कर लिया। लेकिन इस सीरीज के बाकी सारे हिस्से आज भी ज्यों के त्यों हैं। विज्ञापन की नई थ्योरी में चर्चित होना ही सब कुछ समझा जाता है , भले ही चर्चा की वजह सही हो या गलत। लेकिन विज्ञापन बनाने वालों में सबसे ज्यादा शातिर लोग अपनी चर्चा के फॉर्म्युले में कोई फिलॉसफिकल एंगल भी जोड़ना चाहते हैं , ताकि उनके प्रॉडक्ट के बारे में होने वाली बात ज्यादा दीर्घजीवी हो सके। मसलन , अनड्रेस ( निर्वस्त्र होने ) की तर्ज पर बनाए गए शब्द अनहेट को इसके साथ छपने वाली तस्वीरों से जोड़कर देखें तो एकबारगी ऐसी गफलत हो सकती है कि इसमें लोगों से एक - दूसरे के प्रति जाति , नस्ल , धर्म आदि पर आधारित घृणा को छोड़कर विश्वशांति की तरफ बढ़ने की अपील की गई है। कहना कठिन है कि शांति के ऐसे चाकलेटी फॉर्म्युले लोगों को करीब लाते हैं , या उन्हें खिझाकर एक - दूसरे से और ज्यादा दूर धकेल देते हैं।मुझे तो लगता है कि इससे लोग काफी करीब आएंगे। क्योंकि चुंबन से आत्मिक प्रेम बढेगा और धर्मगुरु एक दूसरे धर्म के बारे में गलत बातें कम फैलाएंगे। इसमें उन्हें किसी प्रकार की परेशानी भी नहीं होगी, क्योंकि पुरुष धर्मगुरु दूसरे पुरुष के होठ चुसेंगे। लेकिन डर लगता है कि यदि बाबा रामदेव किसी का होठ चुसेंगे, तो उन पर क्या गुजरेगी।
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