मर्यादा जीवन भर
पूजी, बदले मे वनवास मिला...
बड़ी सती थी
जिसको कहते जग का तब उपहास मिला...
शिव का आधा अंग
बनी, पर बदले मे थी आग मिली...
सत्यमूर्ति बन
भटक रहा था, बुझी पुत्र की साँस मिली...
इंद्रिय सारी
जीत चुका था, उसको पुत्र वियोग मिला...
विष प्याला
उपहार मिला था कृष्ण भक्ति का जोग लिया...
दानवीर, आदर्श
सखा, पर छल से था वो वधा गया...
ज्ञान मूर्ति इक
संत का शव भी, था शैय्या पर पड़ा रहा...
धर्म हेतु उपदेश
दिया पर पूरा वंश विनाश मिला...
हरि के थे जो
मात पिता उनको क्यूँ कारावास मिला...
मात पिता का
बड़ा भक्त था, बाणों का आघात हुआ...
ऐसे ही ना जाने
कितने अच्छे जन का ह्रास हुआ....
थे ऐसे भी जो
पाप कर्म की परिभाषा का अर्थ बने...
जो अच्छाई को
धूल चटाते, धर्म अंत का गर्त बने...
जो अत्याचार
मचाते थे, दूजो की पत्नी लाते थे...
वो ईश के हाथों
मरते थे, फिर परम गति को पाते थे...
अब ये बतलाओ
सत्य बोल मैं कौन सा सुख पा जाऊँगा...
मैं धर्म राह पे
चला अगर,दुख कष्ट सदा ही पाऊँगा...
नाम अमरता नही
चाहिए, चयन सुखों का करता हूँ...
मैं अच्छा कैसे
बन जाऊं, मैं अच्छाई से डरता हूँ....
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