शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

जब मुझे प्रेमचंद पर गुस्सा आया

बचपन में हमलोग लताम (अमरूद) बहुत ही चुराते थे। इसके चलते कितनी ही बार डांट और मार पड़ चुकी थी। गांव में लताम बाबा के यहां बहुत लताम था। इस कारण उसे लताम बाबा कहते थे। एक दिन गलती से मैं उनके चंगुल में फंस गया और वे काफी पीटे थे। यह बात मैं घर में इस कारण नहीं बताया कि भैया और भी मारते। उस दिन कसम खाई थी कि बड़ा होने पर इसका बदला अवश्य लूंगा। लेकिन यह क्या जब मौका मिला, तो मैं उन्हें देखकर रोने लगा।
हुआ यूं कि रोड पर शाम को पांच दोस्त बातें कर रहे थे। अंधेरा था। उन पांचों में से एक मैं भी था। उस समय लगभग सात बज रहे होंगे। ठंड भी ज्यादा थी। सभी लोग घर में थे। रोड पर हमलोगों के अलावा अंधेरा और कभी-कभी गाडिय़ां चल रही थीं। देहात में शाम सात बजे बस भी नहीं चलती है। हमलोग बात कर ही रहे थे कि किसी के गिरने की आवाज आई। आवाज से हमलोग चौंके और दौड़े। वहां जाने के बाद पता चला कि लताम बाबा दूध लेकर आ रहे थे, और अंधेरे में गिर पड़े। देखते ही मुझे बचपन की यादें तरोताजा हो गई लेकिन उनकी हालत देखकर कलेजा मुंह को आ गया। बदला लेने की भावनाएं भी मर गई। उन्हें कहा कि क्या जरूरत है आपको इस उम्र में भी दूध लाने की। यदि अंधेरे में गए ही थे, तो टॉर्च तो साथ में ले लिए होते। इस पर वह कुछ नहीं बोले और चलते बने। चोट उन्हें जोर से लगी थी। मुझे लगा कि कल वे डॉक्टर से दिखा लेंगे।
दूसरे दिन जब उनके घर गया, तो उनकी पतोहू उन्हें गालियां दे रही थी। सुनने में यहां तक आया कि वह मारती भी है। उस समय चेतावनी दे रही थी कि इस बार गलती होने पर आपका खाना ही बंद कर दिया जाएगा। लताम बाबा हमें देख रहे थे और मैं कल रात की घटना याद कर रहा था। मुझे लगा कि शायद उन्हें कल वाली घटना न बताई गई हो। उन्हें बताने ही जा रहा था कि उनका पोता बोला कि देखिए इस बूढ़े के चक्कर में मां आज ब्राह्मण को नहीं खिला पाई। बाबा रात को दूध ही गिरा दिए। इसलिए मां गुस्सा कर रही है। इस पर अपने बच्चे की हां में हां मिलाते हुए वह बोली कि हे भगवान, मेरा न खिलाने का सभी पाप इन्हें ही लग जाना। मैं यही सोचने लगा कि यह कौन सा धर्म है। फि‍र दरिद्रनारायण की कहानी याद आ गई, जिसमें भगवान को खुश करने के लिए दूर दूर से लोग आ रहे है। चढावे में पैसे के साथ ही बहुमूल्‍य उपहार भी दे रहे हैं। लेकिन फि‍र भी उन्‍हें भगवान का आशीर्वाद नहीं मिल रहा है, क्‍योंकि वे लोग जिसे भीखारी सझकर लात मार रहे थे, असल में भगवान वहीं दरिद्रनारयण का रूप लेकर थे। उस रात नहीं सोया और जब अपनी मां से इस संबंध में बात की, तो वह बोली कि बेचारे की यही हालत हर दिन होती है। सिर्फ एक पापी पेट पालने के लिए उन्हें यह करना पड़ता है। जबकि एक समय उनकी तूती बोलती थी और गांव वाले काफी इज्जत करते थे। कुछ वर्षों के बाद घर गया तो मां बोली कि आज भोज है, क्योंकि लताम बाबा मर गए हैं। मुझे उस समय प्रेमचंद की कफन कहानी याद आ गई। यह कहानी प्रेमचंद कब लिखे थे, हमें पता नहीं है, लेकिन आज हालात वही है, लेकिन पात्र और तरीका बदल गया है। आज के पढ़े-लिखे बुजुर्ग के पास पैसे हैं, तो उन्हें प्यार करने वाला और देखने वाला कोई नहीं है। कफन कहानी में दारू की भट्टी पर खाते हुए बाप-बेटा यह कह रहा था कि वह मरी भी तो खूब खिला-पि‍लाकर। आज गांव वाले भी परोक्ष रूप से यही कह रहे होंगे। क्योंकि खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना था। फिर जब पता चला कि उसकी पतौहू पढ़ी-लिखी है, तो प्रेमचंद पर काफी गुस्सा आया कि शायद कफन से ही वह इस तरह के कार्य करने के लिए प्रेरित हुई होगी। मुझसे रहा नहीं गया और उनसे इस बारे में पूछा, तो वह बताई कि
कफन पढऩे के बाद मैं बहुत रोई थी। बेचारी औरत भूखे और प्यासे मर गई। उसके ससुर और पति मौज कर रहे थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कोई भी औरत इस तरह की हालत बर्दास्त नहीं कर सकती है। वहां सुनने वाले उन्हें शाबाशी दे रहे थे, तो हमारी आत्मा यह कह रही थी कि तुम्हारा भी तो तरीका बेहतर नहीं था। प्रेमचंद के कहानी लिखने का तो उद्देश्य यह नहीं था। वह तो समाज को सीख देना चाहते थे, न कि किसी और से बदला लेने के लिए। सच कहिए तो लताम बाबा की दुर्दशा और पतोहू के व्यवहार को देखकर हमें प्रेमचंद पर काफी गुस्सा आ रहा है।

2 टिप्‍पणियां:

Digpal Singh ने कहा…

प्रेमचंद जी पर गुस्सा करना अच्छी बात नहीं

राकेश कुमार ने कहा…

विजय बाबू,प्रेमचंद की तरह आप भी समाज की विद्रुपता का चित्रण ब्ल़ाग के माध्यम से जग जाहिर करने में लगे हुए हैं और वह भी टेक्नो-फैशन युग में जहां अधिकांश लोग सिर्फ सेक्स, चकाचौंधी और महानगरीय जिंदगी की एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर आदि की बातें लिखकर स्वयं को लेखनी का पुरोधा समझते हैं। वैसे में गांव की तकरीबन सत्य घटनाओं को आधार बनाकर वृद्धों की उपेक्षाओं का मार्मिक चित्रण दिल को छू जाता है और आज के समय में बूढ़े मां-बाप रूपी ईश्वर को उपेक्षित कर और दरिद्र नारायण को दुत्कार कर पत्थरों के ईश्वर को पूजने के लिए तीर्थाटन करना हमारी समझ से भी परे है।

लताम बाबा का रात के अंधेरे में धड़ाम गिरना और फिर उनकी बहू द्वारा लतियाना तकरीबन हर घर की बहुओ और तत्संबंधी बूढ़ों की बड़ी सामान्य कहानी बन चुकी है। पढे-लिखे बहुओ और बेटे की बात तो कुछ और ही निराली होती जा रही है क्योंकि अब उनके बीच हम और वो की बात सामान्य हो गयी है और वो के अलावे चाहे मां हो या बाप, उनकी जगह अब नहीं है। हां, यह बात जरूर सही होता दिख रहा है कि पत्नी की मां औऱ बाप पति के लिए असलियत के मां-बाप से ज्यादा बढ़कर,जबकि स्वयं के मां-बाप नकली होते दिख रहे हैं।
खैर, यह बात दीगर है कि आप जैसे लोगों की इस संदर्भ की लेखनी कहीं न कहीं ,कभी न कभी युवा बहुओं और बेटों की मानसिकता में जरूर परिवर्तन लाएगा। बस जरूरत इसे जारी रखने की है। शुभकामनाओं के साथ.....