शुक्रवार, 15 जनवरी 2010
तिल खाने से तेल हो जाएगा
कल मकर संक्रान्ति थी। सभी लोग काफी खुश थे। मैं भी उनमें से एक था। अखबार में नौकरी करता हूं। इस कारण ऑफिस में छुट्टïी नहीं थी। घर से निकलने में दुख भी नहीं हो रहा था। क्योंकि मैडम यहां नहीं हैं। रास्ते में आते वक्त सोचने लगा कि एक औरत के रहने से जिंदगी कैसे बदल जाती है। क्योंकि उसी समय याद आ गई वह पुरानी घटना, जिस समय मेरी पत्नी काफी दुखी होकर हमें ऑफिस के लिए विदा कर रही थी। उस दिन दशहरा था। इस कारण हमें छुट्टïी नहीं थी। उस दिन हमें भी आने में काफी दुख हुआ था और आज उसके न होने से ही हालात बदल गए हैं। क्या उसके न होने का इतना बड़ा फर्क पड़ता है? अब हमारी खुशी उसी पर अवलंबित हो गई है? यह सोच ही रहा था कि मोबाइल की घंटी बजी और रौब से बोली कि कल आप किसी के यहां तिल तो नहीं खा लिए थे? मैं प्रश्न से हैरान था। फिर भी बात बढ़ाते हुए पूछा कि खाने से तिलचट्टïा बन जाऊंगा। नहीं, लेकिन नहीं खाना चाहिए। क्योंकि आज के दिन जिस किसी का तिल खाएंगे, उसी के हो जाएंगे। आइडिया मजेदार लगा। लेकिन दुख यह था कि हमें कोई भी तिल खाने के लिए नहीं बुलाया। लेकिन यह प्रश्न अभी भी हास्यास्पद लग रहा है कि ऐसा होता है? यदि ऐसा होता तो बचपन में उसकी मां के तिल तो खूब चुराके खाया था, लेकिन नहीं वह हमारी बन पाई और न ही उसकी मां की टेढ़ी नजर सीधी हुई। काश तिल में ऐसी शक्ति होती तो आजतक उसकी भक्ति में लगा रहता और और...। फिर सोचने लगा कि तिल खिलाकर बॉस को अपने पाले में कर लेता, बहुत सारी संपत्ति अपने नाम कर लेता और और बहुत कुछ कर लेता। फिर दादी की बात याद आई कि वह भी हमलोगों को तिल खिलाती थी और हमें यह वचन देना पड़ता था कि हम आपके बने रहेंगे। लेकिन वे पहले हमें धोखा दीं और इस संसार से चल बसीं। वैसे भी जिंदा रहती तो दुखी ही रहती। क्योंकि हमारे पड़ोसी की मां भी अपने बच्चे को तिल खिलाकर यही वचन कह रही थी और वे भी निभाने का वादा कर रहे थे। अभी हालात ये हैं कि वह भूखी मर रही है और बेटे को देखने के लिए टाइम नहीं है। इस संबंध में मां से जब पूछा तो मां ने बताई कि वह आज ही तिल खिलाने के लिए आई थी और वही वचन दोहरा रही थी। क्या विश्वास इतना सख्त होता है कि हालात भी उन्हें नहीं डिगा सकता? तभी तो देश के अंदर ही इंडियाऔर भारत है। एक तरफ सर्दी में खास तरह की व्यवस्था की जाती है और लोग कड़ाके की सर्दी आने का इंतजार करते हैं, ताकि जिंदगी का लुत्फ उठाया जा सके। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें खाना तो दूर, पहनने के लिए एक कपड़े तक नहीं हैं। यदि रोड या पुल के किनारे वे अपना बसेरा बनाए भी हैं, तो सरकार की टेढ़ी नजर है और सौंदर्य के नाम पर उन्हें घर से बेघर करके मरने के लिए छोड़ दिया गया है। लेकिन फिर भी वे आपका तिल नहीं खाएंगे। भले ही उन्हें भूख है। आप इस पर हंसिए या आश्चर्य व्यक्त किजिए। हमारे भारत में हकीकत यही है। तभी तो भारत को विविधता का देश कहा जाता है।
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2 टिप्पणियां:
आपने जो तिल का ताड़ बनाया है, वह या तो पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी कर सकते थे या फिर आप...
आप कहां तिल के चक्कर में फंस गए? आप तो हमेशा दिल से दिल मिलाने वाले शिख्शयत रहे हैं..
-एस राजेश
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